05.11.2025
संदर्भ
2025 में, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका में दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी का लाभ उठाने पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई, जिसमें प्रजनन स्वायत्तता, अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जनसंख्या नियंत्रण नीति पर संवैधानिक प्रश्न उठाए गए।
पृष्ठभूमि:
एक विवाहित जोड़े ने दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी की अनुमति सर्वोच्च न्यायालय से मांगी। सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अनुसार, यदि किसी जोड़े का पहले से ही जैविक, गोद लिया हुआ या सरोगेट बच्चा है, तो सरोगेसी की अनुमति नहीं है।
न्यायालय की टिप्पणियां:
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि जनसंख्या संबंधी चिंताओं को देखते हुए प्रतिबंध उचित प्रतीत होता है, लेकिन उन्होंने निर्णय से पहले सरकार से जवाब मांगा।
परिभाषा:
सरोगेसी में एक महिला इच्छुक माता-पिता के लिए गर्भधारण करती है और जन्म के बाद बच्चे को उन्हें सौंप देती है।
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सरोगेसी के प्रकार |
विवरण |
भारत में स्थिति |
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परंपरागत |
सरोगेट मां के अंडे का उपयोग किया जाता है; सरोगेट और बच्चे के बीच आनुवंशिक संबंध मौजूद होता है। |
अनुमति नहीं है |
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गर्भावधि |
भ्रूण का निर्माण इच्छित माता-पिता के शुक्राणु और अंडाणु का उपयोग करके किया जाता है; सरोगेट के साथ इसका कोई आनुवंशिक संबंध नहीं होता। |
सख्त चिकित्सा और कानूनी शर्तों के तहत अनुमति दी गई |
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परोपकारी |
सरोगेट को केवल चिकित्सा और संबंधित व्यय की प्रतिपूर्ति प्राप्त होती है; कोई वाणिज्यिक भुगतान की अनुमति नहीं है। |
अनुमत |
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व्यावसायिक |
सरोगेट को चिकित्सा लागत के अतिरिक्त वित्तीय मुआवजा भी मिलता है। |
पूरी तरह से प्रतिबंधित |
पात्रता:
निषेध:
याचिकाकर्ता का पक्ष:
सरकार का तर्क:
ये मामले इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि राज्य विनियमन को अनुचित रूप से व्यक्तिगत स्वायत्तता को सीमित नहीं करना चाहिए।
सरोगेसी पर प्रतिबंध की बहस प्रजनन स्वतंत्रता और राज्य नियंत्रण के बीच तनाव को दर्शाती है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला सहायक प्रजनन में संवैधानिक अधिकारों और नैतिक एवं सामाजिक सुरक्षा उपायों के बीच संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।