10.12.2025
स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिकार
प्रसंग
भारत में स्वास्थ्य के अधिकार से जुड़ी मुख्य चुनौती हेल्थकेयर सुविधाओं का तेज़ी से कमर्शियलाइज़ेशन और सरकारी खर्च काफ़ी नहीं होना है। इस दोहरी स्थिति ने आम लोगों के लिए बराबर पहुँच में बड़ी रुकावटें पैदा की हैं।
भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में चुनौतियाँ
पहुंच और सामर्थ्य का अंतर: डॉक्टरों और डायग्नोस्टिक सेंटरों की मांग और आपूर्ति के बीच गंभीर अंतर है।
- क्षेत्रीय असमानता: स्वास्थ्य सुविधाएं समान रूप से सुलभ नहीं हैं, जिससे अक्सर मरीजों को गंभीर चिकित्सा उपचार के लिए 100-150 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।
कमर्शियलाइज़ेशन और प्राइवेटाइज़ेशन: सरकार के पीछे हटने की इच्छा ने प्राइवेटाइज़ेशन को बढ़ावा दिया है।
- लाभ बनाम देखभाल: निजी अस्पताल अक्सर रोगी देखभाल से अधिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं, जिससे आम जनता के लिए सुविधाएं अफोर्डेबल नहीं रह जाती हैं।
ज़्यादा आउट-ऑफ़-पॉकेट खर्च (OOPE): दुनिया भर में भारत में OOPE की दरें सबसे ज़्यादा हैं।
- मुख्य खर्च: मरीज़ का ज़्यादातर खर्च दवाओं, डायग्नोस्टिक टेस्ट (जो अक्सर बिना ज़रूरत के लिखे जाते हैं), और आने-जाने के खर्च पर जाता है।
कम फाइनेंशियल एलोकेशन: पब्लिक हेल्थ के लिए भारत का फाइनेंशियल कमिटमेंट दुनिया में सबसे कम है।
- बजट में हिस्सा: यूनियन बजट का सिर्फ़ 2% हिस्सा ही हेल्थ सर्विसेज़ के लिए दिया जाता है।
- प्रति व्यक्ति खर्च: स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति सालाना सरकारी खर्च केवल $25 है ।
दवा का खर्च:
- प्राइस कंट्रोल: भारत में 80% से ज़्यादा दवाएँ प्राइस कंट्रोल सिस्टम से बाहर हैं।
- मार्केट की दिक्कतें: इससे रिटेल में ज़्यादा मार्कअप, गलत मार्केटिंग के तरीके, और गलत दवाओं के कॉम्बिनेशन बढ़ जाते हैं।
सरकारी योजनाएँ बनाम बुनियादी ढाँचा
आयुष्मान भारत योजना: सरकार आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के ज़रिए हेल्थ एक्सेस को सपोर्ट करती है, जो सेकेंडरी और टर्शियरी केयर हॉस्पिटलाइज़ेशन के लिए हर परिवार को हर साल ₹5 लाख देती है।
इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: इस फाइनेंशियल कवर के बावजूद, अक्सर प्राइवेट अस्पतालों में फंड जाता है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट लेवल पर वर्ल्ड क्लास सरकारी अस्पतालों की कमी है। मजबूत पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी प्राइवेट सेक्टर पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करती है।
आगे बढ़ने का रास्ता
सार्वभौमिक कवरेज और बुनियादी ढांचा:
- यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC) को तेज़ी से बढ़ाने की ज़रूरत है।
- हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तेज़ी से बनाना होगा और रुकावटों को कम करने के लिए प्रोसेस को आसान बनाना होगा।
कार्यबल और विनियमन:
- मेडिकल वर्कफोर्स: डॉक्टरों और हेल्थ प्रोफेशनल्स की संख्या बढ़ाने की तुरंत ज़रूरत है।
- प्राइस रेगुलेशन: एक्सप्लॉइटेशन को रोकने के लिए मेडिकल टेस्ट और डायग्नोस्टिक्स की कॉस्ट को रेगुलेट किया जाना चाहिए।
नीतिगत उपाय:
- प्राइस सीलिंग: प्राइवेट अस्पतालों पर प्राइस कैप लगाने पर विचार किया जा सकता है, लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा कि कम सुविधा वाले इलाकों में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को हतोत्साहित न किया जाए।
- बराबरी पर ध्यान: समाज में बराबरी लाने के लिए हेल्थ और एजुकेशन दोनों तक सबकी पहुँच को प्राथमिकता देना बहुत ज़रूरी है।
तकनीकी:
- डिजिटल हेल्थ: AI और ऑनलाइन प्राइमरी केयर जैसे सॉल्यूशन का इस्तेमाल करके दूर-दराज के इलाकों में पहुंच की कमी को काफी हद तक पूरा किया जा सकता है।
निष्कर्ष
हालांकि सरकारी योजनाएं फाइनेंशियल सुरक्षा देती हैं, लेकिन स्ट्रक्चरल कमियों को दूर किए बिना स्वास्थ्य का अधिकार पूरी तरह से हासिल नहीं किया जा सकता। पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना और कमर्शियल प्रैक्टिस को रेगुलेट करना ज़रूरी है ताकि यह पक्का हो सके कि हेल्थकेयर सिर्फ़ एक कमोडिटी नहीं, बल्कि एक सर्विस है।