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मातंगिनी हाजरा

04.10.2023

 

मातंगिनी हाजरा

 

खबरों में क्यों?

हाल ही में,भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महिला क्रांतिकारियों में से मातंगिनी हाजरा की 152वीं पुण्यतिथि पर उनके योगदान के बारे में याद किया गया।

          

मातंगिनी हाजरा के बारे में:

  • इनको 'गाँधी बुढ़ी' के नाम से भी जाना जाता था।
  • मातंगिनी हाजरा का जन्म 19 अक्टूबर 1869 को पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में हुआ था।
  • मातंगिनी हाजरा 73 वर्ष की थीं जब वह 29 सितंबर, 1942 में बंगाल के तमलुक में एक विरोध मार्च का नेतृत्व करते हुए उनको गोली गली जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
  • वह महात्मा गांधी के आदर्शों का समर्थन करती थीं।
  • गांधीवादी सिद्धांतों के प्रति उनके समर्पण के कारण ही लोग उन्हें प्यार से गांधी बुढ़ी' (ओल्ड लेडी गांधी) कहते थे।

 

प्रारंभिक जीवन के बारे में:

  • गरीबी के कारण 12 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया
  • उनकी शादी कम उम्र में हो गई थी और 18 साल की उम्र में वह विधवा हो गईं।
  • अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने खुद को सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।

 

राजनीतिक भागीदारी:

  • वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सक्रिय सदस्य बन गईं और उन्होंने खुद खादी कातना शुरू कर दिया।
  • उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया।
  • 1933: जब बंगाल के गवर्नर सर जॉन एंडरसन ने 1933 में ‘करबन्दी आन्दोलन’ को दबाने के लिए एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करने के लिए तमलुक का दौरा किया, तो मातंगिनी चतुराई से सुरक्षा से बचने में कामयाब रही और मंच पर पहुंची जहां उन्होंने एक काला झंडा लहराया।
  • उनकी बहादुरी के लिए उन्हें छह महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
  • 1942: 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, 73 वर्ष की आयु में, उन्होंने तमलुक पुलिस स्टेशन के अधिग्रहण की वकालत करते हुए लगभग 6,000 प्रदर्शनकारियों के एक बड़े जुलूस का नेतृत्व किया।

ब्रिटिश अधिकारियों के साथ आगामी संघर्ष में, उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई और वह भारतीय स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गईं ।