तलाकशुदा भारतीय मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार

तलाकशुदा भारतीय मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार

प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं का भरण-पोषण का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट (SC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC)-125, मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 ।

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

भरण-पोषण हेतु कानूनी प्रावधानों का विकास क्रम, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं का भरण-पोषण के संबंध में कोर्ट के निर्णय ।

24/02/2024

चर्चा में क्यों:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट (SC) की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने यह जांचने का फैसला किया है कि क्या एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को अपने पूर्व पति के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है।

मामले से संबंधित पृष्ठभूमि:

  • एक मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी पूर्व पत्नी को ₹10,000 अंतरिम गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती दी थी।
  • उन्होंने तर्क दिया कि इस स्थिति में भरण-पोषण का नियम मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का रख-रखाव) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों की सहायता से तय किया जाएगा।
  • उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि तेलंगाना HC ने यह नहीं माना कि 1986 अधिनियम के प्रावधान, जो कि एक विशेष अधिनियम है, सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधानों पर लागू होंगे जो कि सामान्य अधिनियम है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने उसी समय मुस्लिम व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि 1986 का अधिनियम अब यह नहीं कहता है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी, 1973 की धारा 125 के तहत याचिका दर्ज नहीं कर सकती है।
  • कोर्ट ने इस सवाल पर फैसला सुरक्षित रख लिया है कि इन दोनों में से कौन सा कानून प्रभावी रहेगा।

भरण-पोषण हेतु कानूनी प्रावधानों का विकास क्रम:

CrPC की धारा 125:

  • मुस्लिम महिलाएँ अन्य समुदायों की महिलाओं की तरह आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती थीं।
  • सीआरपीसी की धारा 125 पत्नी, बच्चे या माता-पिता के भरण-पोषण के लिए एक धर्मनिरपेक्ष कानून बनाती है।
  • सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था।
  • इसके बाद, 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) को देश में लागू किया गया था।
  • मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम, 1985 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से सीआरपीसी की धारा 125 की पुष्टि हुई थी।

मुस्लिम स्त्री अधिनियम,1986 :

  • शाह बानो मामले के जवाब में, भारतीय संसद ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम बनाया, जिससे तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का दावा करने के लिये एक विशिष्ट तंत्र प्रदान किया गया।
  • इसने भरण-पोषण की अवधि को इद्दत अवधि तक सीमित कर दिया और राशि को महिला को दिये जाने वाले मेहर या दहेज़ से जोड़ दिया।
  • इद्दत एक अवधि है, आमतौर पर तीन महीने की, जिसे एक महिला को अपने पति की मृत्यु या तलाक के बाद पुनर्विवाह करने से पहले पालन करना होता है।

डेनियल लतीफी बनाम भारत संघ मामला, 2001:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1986 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा लेकिन मुस्लिम महिला के पुनर्विवाह तक भरण-पोषण पाने का अधिकार बढ़ा दिया। हालाँकि इसने भरण-पोषण की अवधि को घटाकर इद्दत पूरा करने तक कर दिया।

वर्ष 2009 में सुप्रीमकोर्ट का निर्णय:

  • वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएँ CrPC की धारा 125 के तहत इद्दत अवधि के बाद भी गुज़ारा भत्ता का दावा कर सकती हैं, जब तक कि वे पुनर्विवाह नहीं करती हैं।
  • इसने इस सिद्धांत की पुष्टि की कि CrPC प्रावधान किसी भी धर्म पर लागू होता है।

वर्ष 2019 में सुप्रीमकोर्ट का निर्णय:

  • पटना उच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के पास CrPC की धारा 125 और वर्ष 1986 अधिनियम दोनों के तहत गुज़ारा भत्ता मांगने का विकल्प है।

भरण-पोषण के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:

1986 के अधिनियम की धारा 3:

  • न्यायालय के अनुसार, वर्ष 1986 के अधिनियम की धारा 3 में एक गैर-अस्पष्ट खंड है। जो CrPC की धारा 125 जैसे अन्य कानूनों के तहत वैकल्पिक उपचारों पर रोक नहीं लगाता है।

एमिकस क्यूरे/न्याय मित्र प्रस्तुतीकरण:

  • एमिकस क्यूरे/न्याय मित्र ने न्यायालय की टिप्पणी से सहमति व्यक्त की और इस बात पर एक आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया कि क्या वर्ष 1986 का अधिनियम CrPC की धारा 125 के तहत अधिकार को समाप्त कर देता है।
  • एमिकस क्यूरे/न्याय मित्र वह व्यक्ति या संस्था है जो मामले में पक्षकार नहीं है लेकिन न्यायालय को निर्णय लेने में सहायता करने के लिये विशेषज्ञता या जानकारी प्रदान करता है।

संवैधानिक सिद्धांत:

  • न्यायाधीशों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्ष 1986 के अधिनियम की व्याख्या यह सुनिश्चित करने के लिये की जानी चाहिये कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएँ देश में अन्य तलाकशुदा महिलाओं के लिये उपलब्ध सभी भरण-पोषण के अधिकारों की हकदार हैं।
  • उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के साथ कम अनुकूल/प्रतिकूल व्यवहार करना अनुच्छेद 14, 15 और 21 सहित संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।

विधायी आशय:

  • याचिकाकर्त्ता के इस तर्क को खारिज़ करते हुए कि वर्ष 1986 के अधिनियम का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को CrPC की धारा 125 के तहत राहत की मांग करने से रोकना था, न्यायालय ने कहा कि यदि ऐसा विधायी आशय था, तो अधिनियम में इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया होगा।
  • ऐसी स्पष्ट भाषा की अनुपस्थिति का अर्थ है कि मुस्लिम महिलाओं पर धारा 125 के तहत राहत की मांग करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

अन्य निर्णय:

  • अर्शिया रिज़वी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 2022, रज़िया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 2022 और शकीला खातून बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 2023 जैसे फैसलों में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला के दावे के अधिकार की पुष्टि की है कि इद्दत अवधि पूरी होने के बाद भी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण/निर्वहन का प्रावधान है, जब तक कि वह विवाह/निकाह नहीं कर लेती।
  • मुजीब रहमान बनाम तस्लीना मामले, 2022 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने निर्णय किया कि 1986 अधिनियम की धारा 3 के तहत अनुतोष प्राप्त न होने तक एक विच्छिन्न विवाह/तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
  • यह आदेश तब तक क्रियान्वित रहता है जब तक कि धारा 3 के तहत संबद्ध व्यक्ति द्वारा देय राशि का भुगतान नहीं कर दिया जाता।
  • नौशाद फ्लोरिश बनाम अखिला नौशाद, केस 2023 में केरल उच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि एक मुस्लिम पत्नी जिसने खुला (पत्नी के कहने पर और उसकी सहमति से तलाक) की घोषणा करके तलाक लिया था, वह CrPC की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती है।
  • CrPC की धारा 125(4) के अनुसार, एक पत्नी की अपने पति के साथ रहने की अनिच्छा अनिवार्य रूप से उससे मुक्त होने के लिये खुला के माध्यम से तलाक के लिये दाखिल करने के समान है।

 

स्रोत: द हिंदू

-------------------------------------

मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारत में तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार से संबंधित कानूनी प्रावधानों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। प्रासंगिक कानूनों के विकास और उसके बाद की न्यायिक व्याख्याओं का विश्लेषण कीजिए।