पूर्वोत्तर में AFSPA का प्रभाव बढ़ा

 

पूर्वोत्तर में AFSPA का प्रभाव बढ़ा

GS-3: आतंरिक सुरक्षा

(IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA), केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA)।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

AFSPA के बारे में-प्रमुख प्रावधान, AFSPA के पक्ष और विपक्ष में तर्क, AFSPA से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश, आगे की राह।

08/04/2024

स्रोत: द हिंदू

न्यूज़ में क्यों:

हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA) के प्रभाव को आगामी छह माह के लिए बढ़ा दिया है।

AFSPA के बारे में:

  • AFSPA एक ऐसा कानून है, जिसे 'अशांत इलाकों' यानी 'डिस्टर्ब एरिया' में लागू किया जाता है।
  • 11 सितंबर, 1958 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित इस अधिनियम को सशस्त्र बल विशेष शक्तियाँ अधिनियम (AFSPA), 1958 के रूप में जाना जाता है। इसे सबसे पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में लागू किया गया था।

प्रावधान:

  • AFSPA सशस्त्र बलों और "अशांत क्षेत्रों" में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून के उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने, गिरफ्तारी करने और वॉरंट के बिना किसी भी परिसर की तलाशी लेने के लिए अनियंत्रित शक्ति प्रदान करता है।
  • यह केंद्र सरकार की स्वीकृति के बिना अभियोजन एवं कानूनी मुकदमों से सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • राज्य और केंद्र सरकार AFSPA के संबंध में अधिसूचना जारी कर सकते हैं। अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड राज्यों के लिए गृह मंत्रालय द्वारा समय-समय पर "अशांत क्षेत्र" की अधिसूचना जारी की जाती है।

अशांत क्षेत्र क्या है:

  • AFSPA की धारा 3 के तहत ऐसा क्षेत्र जहाँ नागरिक शक्ति की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक होता है तब उसे अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है।
  • अधिनियम में 1972 में संशोधन किया गया और किसी क्षेत्र को "अशांत" घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गईं हैं।
  • विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के सदस्यों के बीच मतभेद या विवादों के कारण कोई क्षेत्र अशांत हो सकता है।
  • केंद्र सरकार, या राज्य के राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक पूरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।
  • अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के अनुसार, एक बार 'अशांत' घोषित होने के बाद, क्षेत्र को लगातार तीन महीने की अवधि के लिये अशांत बनाए रखा जाता है। राज्य सरकार यह सुझाव दे सकती है कि राज्य में इस अधिनियम की आवश्यकता है या नहीं।
  • वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्रालय केवल नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के लिये AFSPA का विस्तार करने के लिये समय-समय पर "अशांत क्षेत्र" अधिसूचना जारी करता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • सशस्त्र बल विशेष अधिकार अध्यादेश को सर्वप्रथम 15 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किया था।
  • विभाजन-प्रेरित आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए इस अध्यादेश को वर्ष 1947 में "असम अशांत क्षेत्रों" में लागू किया गया था।
  • व्यापक अनुप्रयोग के बाद इस अध्यादेश को वर्ष 1958 में AFSPA द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। जम्मू और कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को शांत करने के लिए वर्ष 1990 में यह अधिनियम लागू किया गया था।

AFSPA के पक्ष और विपक्ष में तर्क:

पक्ष में तर्क:

सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना:

  • AFSPA को उन क्षेत्रों में लगातार सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए आवश्यक माना जाता है जहाँ इसे लागू किया जाता है।
  • सशस्त्र समूहों और विद्रोही गतिविधियों की उपस्थिति सार्वजनिक सुरक्षा और स्थिरता के लिये लगातार खतरा बनी हुई है।
  • AFSPA द्वारा प्रदान की गई कानूनी रूपरेखा के बिना, सुरक्षा बलों के लिये इन खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करना मुश्किल हो सकता है।

सुरक्षा बलों को सशक्त बनाना:

  • AFSPA सुरक्षा बलों को उग्रवाद और आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये आवश्यक कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
  • यह उन्हें अशांत क्षेत्रों में ऑपरेशन चलाने, गिरफ्तारियाँ करने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिये आवश्यक शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • सुरक्षा बलों को जटिल सुरक्षा चुनौतियों से कुशलतापूर्वक निपटने में सक्षम बनाने के लिये यह सशक्तिकरण महत्त्वपूर्ण है।

कर्मियों के लिए कानूनी सुरक्षा:

  • AFSPA अशांत क्षेत्रों में काम करने वाले सुरक्षा कर्मियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • जब वे चुनौतीपूर्ण और अक्सर खतरनाक परिस्थितियों में अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं तो ये सुरक्षा उन्हें कानूनी दायित्व से बचाती है।
  • ऐसे कानूनी सुरक्षा उपाय यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं कि सुरक्षाकर्मी अनुचित कानूनी परिणामों के भय के बिना अपना कार्य कर सकें।

मनोबल बढ़ाना:

  • AFSPA द्वारा प्रदान की गई कानूनी सुरक्षा सशस्त्र बल कर्मियों के मनोबल को बढ़ाने में सहायक होती है।
  • यह जानते हुए कि अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते समय वे कानूनी रूप से संरक्षित हैं, चुनौतीपूर्ण वातावरण में प्रभावी ढंग से प्रदर्शन करने के लिये उनके आत्मविश्वास और प्रेरणा को बढ़ा सकते हैं।
  • अशांत क्षेत्रों में सुरक्षा अभियानों की प्रभावशीलता और दक्षता बनाए रखने के लिये यह मनोबल बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।

विपक्ष में तर्क:

राज्य की स्वायत्तता का उल्लंघन:

  • AFSPA की धारा 3 केंद्र सरकार को संबंधित राज्य की सहमति के बिना किसी भी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र के रूप में नामित करने का अधिकार देती है।
  • इससे राज्यों की स्वायत्तता कमज़ोर होती है और केंद्र सरकार द्वारा शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है।

बल का अत्यधिक उपयोग:

  • AFSPA की धारा 4 अधिकृत अधिकारियों को विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करती है, जिसमें व्यक्तियों के विरुद्ध आग्नेयास्त्रों का उपयोग भी शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप संभावित मृत्यु हो सकती है।
  • यह प्रावधान सुरक्षा बलों द्वारा बल के अत्यधिक और असंगत उपयोग के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है।

नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन:

  • धारा 4 अधिकारियों को बिना वारंट के गिरफ्तार करने और बिना किसी वारंट के परिसर को ज़ब्त करने तथा तलाशी लेने की शक्ति भी देती है।
  • इससे व्यक्तियों की नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि यह मनमाने ढंग से हिरासत और तलाशी के विरुद्ध मानक कानूनी प्रक्रियाओं एवं सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर देता है।

जवाबदेही का अभाव:

  • AFSPA की धारा 7 के तहत सुरक्षा बलों के किसी सदस्य के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिये केंद्रीय या राज्य अधिकारियों से पूर्व कार्यकारी अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है।
  • यह प्रावधान सुरक्षा बलों द्वारा कथित मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी उत्पन्न करता है, क्योंकि यह उन्हें दण्ड से मुक्ति के साथ काम करने की अनुमति देता है।

दुर्व्यवहार के साक्ष्य:

  • वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त हेगड़े आयोग ने पाया कि जिन छह मामलों की उसने जाँच की, उनमें सभी सात मौतें न्यायेत्तर निष्पादन थीं।
  • इसके अतिरिक्त, इसने मणिपुर में सुरक्षा बलों द्वारा AFSPA के व्यापक दुरुपयोग को उजागर किया।

AFSPA से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1998 में नागा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में अपने निर्णय में AFSPA की संवैधानिकता की पुष्टि की थी।
  • इस ऐतिहासिक निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय निम्नलिखित दिशानिर्देश दिए हैं:
  • केंद्र सरकार के पास स्वतः संज्ञान (Suo-Motto declaration) घोषणा का अधिकार है, फिर भी ऐसी घोषणा जारी करने से पूर्व केंद्र सरकार के लिये राज्य सरकार से परामर्श करना बेहतर होता है।
  • AFSPA किसी क्षेत्र को 'अशांत क्षेत्र' के रूप में नामित करने का अप्रतिबंधित अधिकार नहीं देता है।
  • घोषणा की एक निश्चित समय-सीमा होनी चाहिये और उसकी स्थिति का नियमित आकलन होना चाहिये। छह महीने बीत जाने के बाद घोषणा की समीक्षा ज़रूरी है।
  • " AFSPA द्वारा दी गई शक्तियों को लागू करते समय, अधिकृत अधिकारी को सफल संचालन के लिये आवश्यक न्यूनतम बल का उपयोग करना चाहिये, और साथ ही सेना "क्या करें व क्या न करें" में उल्लिखित दिशानिर्देशों का कठोरता से पालन करना चाहिए।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि अधिनियम संविधान का उल्लंघन नहीं करता है, साथ ही धारा 4 व 5 के अंर्तगत दी गई शक्तियाँ न तो मनमानी हैं और न ही अनुचित हैं।

आगे की राह:

  • पूर्वोत्तर राज्यों में AFSPA के प्रावधानों की समीक्षा के लिए नवंबर 2004 में गठित न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए।
  • इस समिति ने सिफारिश की थी कि AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए एवं गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में उचित प्रावधान शामिल किये जाने चाहिए।
  • सशस्त्र बलों तथा अर्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने हेतु गैरकानूनी गतिविधियाँ अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिए और साथ ही प्रत्येक ज़िले में जहाँ सशस्त्र बल तैनात हैं, शिकायत कक्ष भी स्थापित किए जाने चाहिए।
  • सार्वजनिक व्यवस्था पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 5वीं रिपोर्ट में AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश पर अमल किया जाना चाहिए।  
  • सुरक्षा बलों को अधिक जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से प्रति छह माह में AFSPA की समीक्षा की जानी चाहिए। जैसा कि संतोष हेगड़े आयोग सिफारिशें की गयी थीं।
    • इस आयोग ने सुझाव दिया कि केवल AFSPA पर निर्भर रहने के स्थान पर आतंकवाद से निपटने के लिए गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम में उचित संशोधन किया जा सकता है।
    • यह भी सिफारिश की थी कि सशस्त्र बलों को "अशांत क्षेत्रों" में भी अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान की गई ज्यादतियों के आधार पर जाँच से छूट नहीं दी जानी चाहिए।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

मानवाधिकारों एवं शासन पर इसके प्रभाव के सन्दर्भ में AFSPA की निरंतरता के पक्ष और विपक्ष में तर्कों पर चर्चा कीजिए।