विषाक्त जलस्रोत

विषाक्त जलस्रोत

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3

(जल प्रदूषण)

14 अगस्त, 2023

भूमिका:

  • पहाड़ों के जलस्रोतों का पानी कृषि और बागवानी के अलावा पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। जंगली जानवर इन्हीं जलस्रोतों से अपनी प्यास बुझाते हैं। हालिया ख़बरों के अनुसार, भारत में निरंतर बाघ कम हो रहे हैं। इसकी कोई एक वजह नहीं है। मगर बाघों को जान का नया खतरा जंगल के जहरीले जलस्रोत के रूप में सामने आया है। उत्तराखंड के हल्द्वानी में एक बाघ की मौत होने के बाद जांच में मिले तथ्यों के आधार पर वैज्ञानिक इसके पीछे जहरीले पानी की आशंका जता रहे हैं।  
  • परीक्षण के बाद जिन जलस्रोतों में जहरीले रासायनिक तत्त्व पाए जाएंगे, वहां का पानी इस्तेमाल न करने की तख्ती लगा कर लोगों को सावधान किया जा सकता है, मगर जंगली और पालतू पशुओं को ऐसे जहरीले पानी से दूर रहने के लिए किस तरह सावधान किया जा सकता है?

विषाक्त जलस्रोतों के बारे में:

  • वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, जंगल के कुछ दूषित जलस्रोत ऐसे हैं, जिनमें जहरीले तत्त्व पाए गए हैं, जिनके पीने से किसी भी प्राणी की मौत हो सकती है।
  • इन जलस्रोतों के पानी के लगातार सेवन से जंगली जानवरों में त्वचा, कैंसर और पेट, सिर से संबंधित बीमारियां हो रही हैं
  • हाल ही में उत्तराखंड में जिस बाघ की मौत हुई उसके शव जांच से पता चला है कि बाघ के शरीर में भारी जहरीली धातुएं थीं, जो उसकी मौत की वजह बनीं।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, जलस्रोत में ऐसे जहरीले तत्त्व पाए गए हैं, जिनसे कैंसर होने का खतरा हो सकता है। इसके अलावा सिर, त्वचा, पेट, आंख से संबंधित समस्याएं इन जलस्रोतों के जहरीले जल से हो सकती हैं। विज्ञान की भाषा में आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, सीसा, मैगनीज, पारा, निकल, यूरेनियम आदि अगर जल में घुले हों, तो इनके लगातार सेवन से त्वचा रोग, कैंसर और पेट, सिर से संबंधित अनेक बीमारियां हो सकती हैं।

बाघ की मौतों से जुड़े मामले:

  • बाघों की सुरक्षा के नजरिए से उत्तराखंड का वातावरण सबसे मुफीद माना जाता है, लेकिन अब वहां भी वैसी हालात नहीं है। हर साल उत्तराखंड के जगलों में विकट आग लगती है, इससे हजारों जानवर और पक्षी मारे जाते हैं। हालांकि बाघ जंगल की इस आग से सुरक्षित रहते हैं।
  • उत्तराखंड में बीते दस सालों में 96 बाघों की मौत हुई। वहीं पर मध्यप्रदेश में 244, महाराष्ट्र में 168, कर्नाटक में 138 बाघों की मौत हुई। लेकिन जहरीला पानी पीने से बाघ की मौत से यह अशंका बढ़ी है कि अगर वन्य प्रशासन बाघों को जहरीले जलस्रोतों का पानी पीने से नहीं बचा पाता है, तो समस्या विकट हो सकती है।

अन्य समस्याएँ:

  • उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद की शोध रपट के अनुसार, जहरीले जलस्रोतों की पहचान से इस प्रदेश में पीने के पानी और कृषि-बागवानी की सिंचाई की समस्या और बढ़ जाएगी, क्योंकि प्रदेश के करीब बारह हजार जलस्रोत जलवायु परिवर्तन और अन्य कारणों से सूख चुके हैं।
  • गौरतलब है कि उत्तराखंड में करीब 2.6 लाख प्राकृतिक जलस्रोत हैं, इनमें से करीब बारह हजार से ज्यादा सूख चुके हैं और लाखों सूखने के कगार पर हैं। जो जलस्रोत जहरीले हुए हैं, उनके परीक्षणों से पता चला है कि इसकी वजह उद्योगों और मानव जनित प्रदूषण हो सकता है। उत्तराखंड में तराई के जलस्रोत अधिक तेजी से सूख रहे हैं।
  • आधुनिक विकास के कारण छोटी नदियां और चश्मे गंदे नालों में तब्दील होते जा रहे हैं। ऐसे जलस्रोतों में रासायनिक जहरीले तत्त्व बढ़ते जा रहे हैं। उत्तराखंड में राजमार्गों के निर्माण की वजह से जलदोहन तेजी से बढ़ा है। आलम यह है कि जलस्रोत अपने मूलस्वरूप और दिशा खोने लगे हैं। ये धीरे-धीरे कुंओं में तब्दील होते जा रहे हैं। इसलिए अकूत जलदोहन से बढ़ने वाली समस्याओं की गहन जांच होनी चाहिए।
  • इस समस्या को समग्रता में देखने की जरूरत है, क्योंकि झरने, चश्मे, खार, कुएं और अन्य जलस्रोतों में ही रासायनिक तत्त्व नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि भूजल स्तर भी लगातार नीचे जा रहा है। भूजल स्तर लगातार कम होना महज हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश की समस्या नहीं है। भारत के तकरीबन हर भूभाग में जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। नलकूप से पानी निकालना बहुत कठिन हो गया है। फिर, भूजल जहरीला भी हो रहा है। तमाम जंगली और पालतू जानवर और पक्षी जहरीला पानी पीने की वजह से मरते रहे हैं, लेकिन इस तरफ किसी ने गौर नहीं किया। जंगली इलाकों या गांवों की समस्याओं की खबर इसलिए भी नहीं बन पाती, क्योंकि ये दूरदराज में घटने वाली घटनाएं होती हैं, जहां मीडिया शायद कभी-कभार अपनी आंख घुमाकर देख पाता है।

समाधान:

  • यह जहरीला जल कृषि और बागवानी के लिए भी इस्तेमाल करना बहुत खतरनाक है। इसलिए वन्य प्रशासन को जंगली और पालतू पशुओं तथा पक्षियों को ऐसे जलस्रोतों से दूर रखने के लिए किस तरह के उपाय करने होंगे, इसे समझना होगा।
  • राष्ट्रीय पशु होने के कारण बाघ की सुरक्षा को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को सावधानी बरतनी चाहिए।
  • इस पर गहराई से जांच होनी चाहिए। इससे स्रोत के जहरीला होने के कारणों का पता चल पाएगा और उन कारणों को खत्म करने के लिए कारगर उपाय वन्य जीव सुरक्षा प्रशासन कर पाएगा।
  • जिस बाघ की मौत हुई, उसकी वजह बाघ संरक्षण की किसी भी धारा के अंतर्गत नहीं आती है, क्योंकि यह सबसे अलग है। यह समस्या महज बाघों से जुड़ी नहीं है, बल्कि कोई भी प्राणी जहरीले जल के असर से मौत का शिकार हो सकता है। बाघ संरक्षण क़ानून में सुधार की आवश्यकता है।
  • जलस्रोतों का जहरीला होना बहुत बड़ी समस्या है। इसलिए स्थानीय अधिकारियों को रणनीतिक एवं कारगर उपाय तलाशने होंगे।

वन्यजीवों की सुरक्षा हेतु भारत सरकार के प्रयास:

  • बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई कानून बनाए गए हैं। ये कानून बाघों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करते हैं।
  • राष्ट्रीय स्तर पर बाघों को शिकारियों से बचाने के लिए 4 सितंबर, 2006 को ‘वन्य जीवन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2006’ लागू किया गया।
  • इस अधिनियम में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और बाध तथा अन्य लुप्तप्राय प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्य जीव अपराध नियंत्रण) बनाने का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम की धारा 38 के अंतर्गत निर्धारित बाघ संरक्षण प्राधिकरण को अनेक शक्तियां प्रदान की गई हैं।
  • इनमें राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम की धारा 38 की उपधारा (3) के तहत बाघ संरक्षण को स्वीकृति प्रदान की जाती है।

निष्कर्ष:

  • पानी का जहरीला होना और उसके असर से इंसान और जीव-जंतुओं का बीमार होना और उनकी मौत की घटनाएं यों तो सालों से घट रही हैं, लेकिन बाघ की मौत ने इस समस्या को चर्चा में ला दिया। जाहिर है, अगर बाघ की मौत न हुई होती और पानी की जांच सरकारी विभाग से न होती, तो यह खबर भी दूसरी संवेदनशील खबरों की तरह दम तोड़ चुकी होती।
  • गौरतलब है कि अब उन जलस्रोतों की भी जांच हो जाएगी, जो अभी तक जांच के दायरे में नहीं थे। इससे जल प्रदूषण का असर इंसान और वन्य प्राणियों पर किस तरह पड़ रहा है, यह भी जांच से पता चल जाएगा। समस्या अगर शुरुआत में ही पकड़ में आ जाए और उसके उपाय पर गहराई से चिंतन हो, तो समस्या का समाधान आसान हो जाता है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

विषाक्त जलस्रोत न केवल वन्यजीवों के लिए खतरा बन गए हैं बल्कि इससे पर्यावरण में असंतुलन की स्थिति पैदा होने की संभावना भी बन चुकी है। विवेचना कीजिए।