वर्ल्ड फूड इंडिया 2023

वर्ल्ड फूड इंडिया 2023

प्रिलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

वर्ल्ड फूड इंडिया 2023, ऑपरेशन ग्रीन्स, मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव (एमएआई), राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम), ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार), जैविक कृषि, स्वयं सहायता समूह, फूड स्ट्रीट, फूड बास्केट ऑफ द वर्ल्ड, अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण का महत्त्व और चुनौतियां

7 नवंबर, 2023

चर्चा में क्यों:

'वर्ल्ड फूड इंडिया 2023' के दूसरे संस्करण का उद्घाटन 3 नवंबर, 2023 को नई दिल्ली स्थिति भारत मंडपम में किया गया, जहाँ भारत के प्रधानमंत्री ने स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करने के लिए एक लाख से अधिक एसएचजी(SHG) सदस्यों को बीज के लिए आर्थिक सहायता का भी वितरण किया।

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में वर्ल्ड फूड इंडिया का पहला संस्करण लॉन्च किया गया था।
  • इस कार्यक्रम में सात मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों सहित 14 देशों के प्रतिनिधिमंडलों ने भाग लिया।
  • इस कार्यक्रम में भागीदार देश के रूप में नीदरलैंड और फोकस देश के रूप में जापान की विशिष्ट भागीदारी रही।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को 'दुनिया के खाद्य केंद्र' के रूप में प्रदर्शित करना और 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाना है।
  • उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (IYM 2023) घोषित किया है।

वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 के बारे में:

  • वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 भारतीय खाद्य अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रवेश द्वार है, जो भारतीय और विदेशी निवेशकों के बीच साझेदारी की सुविधा प्रदान करता है।
  • वर्ल्ड फूड इंडिया कार्यक्रम वैश्विक खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माताओं, उत्पादकों, खाद्य प्रसंस्करणों, निवेशकों, नीति निर्माताओं और संगठनों के लिए अद्वितीय सम्मेलन के तौर पर उभरा है।

शुभंकर:

  • मिलइंड (एक प्रोबोट) वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 का शुभंकर है।

सूर्योदय क्षेत्र:

  • वर्ल्ड फूड इंडिया के अच्छे परिणामों के कारण खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को 'सनराइज़ सेक्टर' यानी सूर्योदय का क्षेत्र कहा जाता है।

महत्त्व:

  • भारत वैश्विक स्तर पर श्री अन्न (बाजरा) जो कि एक सुपर फूड है का लाभ उठा सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और कुपोषण जैसी वैश्विक चुनौतियों के सामने बाजरा खाद्य सुरक्षा, पोषण सुरक्षा एवं स्थिरता को बढ़ा सकता है।
  • खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में भारत वैश्विक नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा सकता।
  • इस दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए भारत अपने उन समर्थकों को बढ़ावा दे सकेगा जो भारतीय खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में आर्थिक लाभ लेना चाहते हैं।
  • प्रमुख समर्थकों में से एक है कृषि खाद्य मूल्य शृंखलाओं का वित्तपोषण करना और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को पर्याप्त एवं किफायती ऋण प्रदान करना।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत की स्थिति:

  • भारत विश्व के सबसे बड़े खाद्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं में से एक है।
  • भारत दूध, केला, आम, पपीता, अमरूद, अदरक, भिंडी और भैंस के मांस के उत्पादन में विश्व में अग्रणी है, चावल, गेहूँ, आलू, लहसुन, काजू के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।
  • विदेशी निवेश: सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले नौ वर्षों में सरकार की किसान-केंद्रित नीतियों और अनुकूल वातावरण की बदौलत इस क्षेत्र ने 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है।
  • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के तहत कई नए आयाम हासिल किए गए हैं।
  • एग्री-इंफ्रा फंड:  इस फंड के तहत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कई बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं के शुरू करने के लिए 50,000 करोड़ रुपए से अधिक के निवेश की उम्मीद है।
  • इसी फंड द्वारा मत्स्यपालन और पशुपालन क्षेत्र में प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे में हज़ारों करोड़ रुपए के निवेश को प्रोत्साहित किया जाता है।

भारत में खाद्य प्रसंस्करण के समक्ष प्रमुख चुनौतियां

  • महत्त्वपूर्ण अवसंरचनाओं ढांचागत सुविधाओं का अभाव:
  • इस इस उद्योग राष्ट्रीय राजमार्ग की कमी एक बड़ी बाधा है।
  • वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्ग कुल सड़कों का केवल 2 प्रतिशत है।
  • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का अभाव है।
  • शीत भंडार एवं वेयर हाउस की अपर्याप्त संख्या एवं क्षमता।
  • खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में एक व्यापक राष्ट्रीय नीति का अभाव।
  • राज्य स्तरीय एवं केंद्रीय कानूनों में कई विसंगतियां होने से भ्रम की स्थिति का होना।
  • खाद्य पदार्थों के परीक्षण हेतु उन्नत प्रयोगशालाओं की कमी के साथ पर्याप्त आधुनिक उपकरण भी नहीं हैं।
  • जाँच मानकों में एकरूपता न होने के कारण जाँच परिणामों में विरोधाभास की स्थिति होना।
  • प्रशिक्षित मानव संसाधन और आधुनिक प्रौद्योगिकी का अभाव तथा पुरानी तकनीकों का प्रयोग।
  • अनुसंधान एवं विकास की कमी के कारण खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में नवाचार की कमी।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के उत्थान हेतु सरकार की पहलें:

  • कृषि-निर्यात नीति का निर्माण  
  • ऑपरेशन ग्रीन्स
  • मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव (एमएआई)
  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम)
  • ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार)
  • एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण)
  • कृषि निर्यात क्षेत्रों (एईजेड) की स्थापना
  • जैविक खेती को बढ़ावा
  • राष्ट्रव्यापी रसद और बुनियादी ढाँचे का विकास
  • ज़िला-स्तरीय केंद्रों की स्थापना
  • मेगा फूड पार्क का विस्तार
  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना
  • सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना

निष्कर्ष:

भारत में कृषि निर्यात को बढ़ावा देने और किसानों के कल्याण के लिए केंद्र सरकार द्वारा कृषि से जुड़ी दीर्घकालिक नीतियों को लागू किया जाना चाहिए।

स्रोत: पीआईबी

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में वर्ल्ड फूड इंडिया के महत्त्व को रेखांकित करते हुए भारत में इस क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।