उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता

जीएस-II: राजव्यवस्था और शासन

 (यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रीलिम्स के लिए महत्वपूर्ण

समान नागरिक संहिता विधेयक, संवैधानिक प्रावधान, कानूनी परिप्रेक्ष्य और सुप्रीम के निर्णय।

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण

उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता की प्रमुख विशेषताएं, समान नागरिक संहिता (UCC) के बारे में, संविधान सभा में विमर्श, कानूनी परिप्रेक्ष्य और सुप्रीम के निर्णय, आगे की राह, निष्कर्ष।

10 फरवरी, 2024

चर्चा में क्यों:

हाल ही में, उत्तराखंड कैबिनेट ने समान नागरिक संहिता विधेयक को मंजूरी दे दी है, जो स्वतंत्रता के बाद यूसीसी को अपनाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है।

उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता की प्रमुख विशेषताएं:

प्रतिबंध:

  • निम्नलिखित को प्रतिबंधित किया गया है-
  • विवाह और तलाक प्रथाएं जो मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत आती हैं जैसे हलाला, इद्दत, तीन तलाक
  • बाल विवाह और बहुविवाह

एकरूपता: 

  • सभी धर्मों में निम्नलिखित को एकरूपता में शामिल किया गया है-
  • गोद लेने का अधिकार
  • पुरुषों के लिए विवाह की कानूनी उम्र (21) और महिलाओं के लिए (18)
  • पुरुषों और महिलाओं के लिए समान विरासत अधिकार

सह-जीवन संबंध:

  • सभी सह-जीवन जोड़ों को एक महीने के भीतर पंजीकृत कराना अनिवार्य होगा, अन्यथा दोनों साझेदारों को ₹25k जुर्माना और/या तीन महीने की जेल हो सकती है।
  • सह-जीवन जोड़ों से पैदा हुए सभी बच्चों को वैध माना जाएगा और उन्हें कानूनी विरासत का अधिकार प्राप्त होगा।

अनुसूचित जातियों को यूसीसी से छूट:

  • उत्तराखंड की अनुसूचित जनजातियाँ, जो राज्य की आबादी का लगभग 3% हैं, यूसीसी बिल के दायरे से बाहर हैं।

समान नागरिक संहिता (UCC) के बारे में:

  • समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून हो, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।
  • समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा।
  • शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।

संवैधानिक प्रावधान:

  • हमारे संविधान के भाग IV के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लेकर प्रावधान हैं। इसमें कहा गया है कि राज्य इसे लागू कर सकता है।
  • इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर किसी भी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव या पक्षपात को खत्म करना है।
  • संविधान के भाग IV में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (DPSP) शामिल हैं।

संविधान सभा में विमर्श:

  • संविधान सभा की पहली बैठक दिसंबर 1946 में संविधान बनाने के दौरान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता की अवधारणा, प्रासंगिकता और उपयोगिता पर व्यापक विचार-विमर्श किया था।
  • जहां संविधान सभा में मुस्लिम प्रतिनिधियों ने समान नागरिक संहिता का विरोध किया तो कई सदस्यों ने इसके पक्ष में तर्क दिया।
  • बहस के दौरान संविधान सभा में पर्सनल लॉ को लेकर व्यापक चर्चा हुई थी। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में समान नागरिक संहिता अनुच्छेद 44 के तहत आती है लेकिन संविधान सभा ने अनुच्छेद 35 के तहत इस पर चर्चा की थी।
  • इस अनुच्छेद को संविधान सभा ने 23 नवंबर 1948 को एक जोरदार बहस के बाद अपनाया था।

यूसीसी का विरोधी पक्ष:

मोहम्मद इस्माइल(मद्रास), एम.ए. अयंगर, महबूब अली बेग

  • मोहम्मद इस्माइल(मद्रास) का तर्क: किसी भी समूह, वर्ग या लोगों के समुदाय को अपने व्यक्तिगत कानून को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी को व्यक्तिगत कानूनों का पालन करना एक मौलिक अधिकार है और ये कानून लोगों की जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा हैं।
  • संविधान सभा के सदस्य एम.ए. अयंगर ने तर्क दिया कि धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा सभी धर्मों को समान सम्मान और गरिमा के साथ समायोजित करती है। इसलिए, भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में विभिन्न समुदायों को अपने धर्म और संस्कृति का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  • संविधान सभा के महबूब अली बेग ने सुझाव दिया कि यह स्पष्ट करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 35 में एक प्रावधान जोड़ा जाए कि नागरिक संहिता संपत्ति हस्तांतरण और अनुबंध जैसे मामलों को विनियमित करेगी न कि व्यक्तिगत कानूनों को।

यूसीसी का समर्थक पक्ष:

के.एम. मुंशी, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, डॉ. बीआर अंबेडकर

  • कांग्रेस सदस्य और संविधान सभा मसौदा समिति के सदस्य के.एम. मुंशी ने प्रस्तावित कानून के पक्ष में थे। केएम मुंशी ने कहा कि अनुच्छेद 35 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देने वाला है। अनुच्छेद 35 राज्य को धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने का भी अधिकार देता है।
  • संविधान सभा के सदस्य अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर ने के.एम. मुंशी का समर्थन किया।
  • संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर अंबेडकर ने अनुच्छेद 35 के तहत होने वाले संशोधनों को खारिज कर दिया। अंबेडकर ने विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों में हस्तक्षेप करने के राज्य के अधिकार और संविधान सभा के हिंदू सदस्यों के तर्कों का बचाव किया। इसके साथ ही अंबेडकर ने मुस्लिम सदस्यों को आश्वासन दिया कि यह प्रस्ताव एक 'शक्ति' पैदा कर रहा है न कि 'दायित्व'।
  • उन्होंने कहा कि इस बात पर बहस करने में बहुत देर हो चुकी है कि संहिता को लागू किया जाना चाहिए या नहीं, क्योंकि काफी हद तक इसे पहले ही लागू किया जा चुका है।
  • इसके अलावा अंबेडकर ने पुष्टि की कि भले ही समान नागरिक संहिता लागू हो, यह केवल उन लोगों पर लागू होगी जो इसके के लिए सहमत हैं।

कानूनी परिप्रेक्ष्य और सुप्रीम के निर्णय:

शाह बानो बेगम बनाम मोहम्मद अहमद खान (1985)मामला

  • सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम महिला के लिये इद्दत अवधि की समाप्ति के बाद भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने के अधिकार की पुष्टि की।
  • न्यायालय ने माना कि समान नागरिक संहिता विचारधाराओं पर आधारित विरोधाभासों को दूर करने में मदद करेगी।

सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) मामला

  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक हिंदू पति अपनी पहली शादी को समाप्त किए बिना इस्लाम धर्म अपनाकर दूसरी महिला से विवाह नहीं कर सकता।
  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूसीसी इस तरह के धोखाधड़ीपूर्ण धर्मांतरण और दो विवाह करने पर रोक लगाएगी।

शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017) मामला

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में तीन तलाक़ की प्रथा को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं की गरिमा एवं समानता का उल्लंघन करार दिया था।
  • इस मामले में कोर्ट ने कहा कि संसद को मुस्लिम विवाह और तलाक़ को विनियमित करने के लिये एक कानून का निर्माण करना चाहिए।

यूसीसी की महत्ता:

  • यह भारत के सभी धर्मों को एकीकृत करेगा।
  • वोट बैंक की राजनीति को कम करने में मदद करेगा।
  • एक समान नागरिक सहिंता समाज को आगे बढ़ने में मदद करेगा और भारत को वास्तव में विकसित राष्ट्र बनने के अपने लक्ष्य की ओर ले जाएगा।
  • यह वास्तविक धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देता है।
  • यह आधुनिक प्रगतिशील राष्ट्र की निशानी है।
  • यह भारत में महिलाओं की स्थिति को सुधारने में मदद करेगा।
  • यह विविधतापूर्ण व्यक्तिगत कानूनों को एकीकृत करके अधिक सुसंगत कानूनी प्रणाली का निर्माण करेगा।
  • यह लोगों में अलग-अलग धर्मों को लेकर भ्रम को समाप्त करेगा।
  • इससे न्याय प्रणाली के क्रियान्वयन में सुधार होगा।
  • प्रशासन के कार्य आसान हो जाएंगे।

अन्य देशों में यूसीसी की स्थिति:

  • समान नागरिक संहिता का पालन कई देशों में होता है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किये, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमेरिका, आयरलैंड, आदि शामिल हैं।
  • इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एक समान कानून है और किसी धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग कानून नहीं हैं।

आगे की राह:

  • देश में व्यक्तिगत कानूनों की विविधता को संरक्षित करना कुछ समुदायों के हित में हो सकता है, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि व्यक्तिगत कानून संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का खंडन न करें।
  • देश में यूसीसी को लागू करने के लिए, यह वांछनीय है कि पारिवारिक मामलों से संबंधित सभी व्यक्तिगत कानूनों को पहले यथासंभव हद तक संहिताबद्ध किया जाना चाहिए, और संहिताबद्ध कानून में जो असमानताएं आ गई हैं, उन्हें संशोधन द्वारा दूर किया जाना चाहिए।
  • एक समान नागरिक सहिंता की भावना को समझने के लिए लोगों के बीच एक प्रगतिशील और व्यापक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए शिक्षा, जागरूकता और संवेदीकरण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
  • सभी धर्मों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार किया जाना चाहिए।
  • एकरूपता बनाए रखने के लिए प्रतिष्ठित न्यायविदों की एक समिति गठित की जानी चाहिए।
  • किसी विशेष समुदाय की भावनाओं को ठेस न पहुंचे इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
  • यह मामला संवेदनशील होता है इसलिए इसकी पहल संबंधित धार्मिक समूहों की ओर से होनी चाहिए।
  • राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए इसे एक भावनात्मक मुद्दे के रूप में उपयोग करने के बजाय, राजनीतिक और बौद्धिक नेताओं को एक आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए।

निष्कर्ष:

  • समान नागरिक संहिता (यूसीसी) एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए एक वांछनीय और प्रगतिशील लक्ष्य है। हालाँकि, विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच विविध सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाओं के लिए उचित छूट दिए बिना केवल एकरूपता आदर्श नहीं हो सकती है।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य प्रश्न:

देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के समर्थन में अपने तर्क लिखिए।