दुनियाभर में बढ़ती भुखमरी और भोजन की बर्बादी

दुनियाभर में बढ़ती भुखमरी और भोजन की बर्बादी

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3

(पर्यावरण संरक्षण)

27 जुलाई, 2023

भूमिका:

  • तेजी से विकसित हो रहे और आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत की एक विरोधाभासी सच्चाई है, भुखमरी की समस्या। देश में करोड़ों लोगों को हर रोज भरपेट भोजन नहीं मिल पाता। यानी एक ओर अरबपतियों और खरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है, तो दूसरी ओर करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को अभिशप्त हैं। हमारे यहां खाद्य उत्पादन का 40 फीसद बर्बाद हो जाता है।
  • गौरतलब है कि भोजन की बर्बादी और भुखमरी की समस्या वैश्विक है। आंकड़ों के अनुसार, 2021 में विश्व भर में भूख से पीड़ित लोगों की संख्या 83 करोड़ हो गई। इतना ही नहीं, तीन अरब से ज्यादा लोगों को स्वास्थ्यकर भोजन नहीं मिल पाता। भुखमरी की यह समस्या तब और विडंबनापूर्ण हो जाती है, जब विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अनाज की कमी से जूझ रहा हो, वहीं दूसरी ओर बहुत बड़े स्तर पर भोजन भी बर्बाद हो रहा हो।

वैश्विक स्तर पर भोजन अपव्यय और भुखमरी की स्थिति:

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, भोजन की बर्बादी के मामले में चीन पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर है। यहां हर साल 9.6 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। भारत का स्थान दूसरा है, जहां सालाना 6.87 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है।
  • प्रसिद्ध इतावली शेफ मास्सिमो बोटुरा के अनुसार, ‘विश्व में करीब 12 अरब लोगों के लिए भोजन का उत्पादन होता है, जबकि आबादी 8 अरब है। इसके बावजूद लगभग 86 करोड़ लोग भूखे रह जाते हैं। हम अपने उत्पादन का 33 प्रतिशत बर्बाद कर देते हैं।’
  • एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 12.8 करोड़ टन भोजन बर्बाद होता है। इसमें परिवारों, समारोहों में होने वाली बर्बादी के साथ-साथ खुदरा और खाद्य सेवाओं में होने वाली बर्बादी भी शामिल है। हमारे यहां सिर्फ घरों में सालाना 6.88 करोड़ टन, खुदरा दुकानों में 2.14 करोड़ टन और खाद्य सेवाओं में 3.78 भोजन प्रतिवर्ष नष्ट हो जाता है।
  • यूएनईपी (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) के खाद्य अपव्यय सूचकांक के अनुसार, भारतीय घरों में प्रत्येक व्यक्ति सलाना पचास किलो भोजन बर्बाद कर देता है, जो कि देश भर में कुल 92,000 करोड़ रुपए के बराबर है।

भोजन अपव्यय एवं भुखमरी के कारण:

  • कच्चे और पके अनाजों का अपव्यय भारत सहित दुनियाभर में भुखमरी के मूल कारणों में से है।
  • भारत में भोजन अपव्यय की समस्या ढांचागत होने के साथ-साथ आदतन भी है। हमारे समाज में शादी-ब्याह, छठी-मुंडन, पर्व-त्योहारों आदि पर सहभोज होता है। इनमें भोजन की बहुत बर्बादी होती है। बीते दो-तीन दशक से आम चलन बन चुके ‘बुफे सिस्टम’ और खाने के पहले परोसे जाने वाले ‘स्टार्टर’ आदि ने इस समस्या को कई गुना बढ़ा दिया है। घरों, होटलों, रेस्तरां, खाद्य सेवाओं आदि में अन्न की बर्बादी के अलावा खेतों से घर और गोदामों तक पहुंचने के दौरान भी बड़ी मात्रा में अन्न बर्बाद होता है।
  • खेतों में ही पक कर झड़ने, सड़ने, गलने, चूहों और अन्य जीवों के कारण, अनाज रखने का उचित प्रबंधन न होना आदि भी इसका बड़ा कारण है। आर्थिक सक्षमता बढ़ने के साथ ही सप्ताहांत होटलों में भोजन करना आज प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है। वहां खाना छोड़ने में लोगों को गर्व होता है। जिन घरों में पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं, वहां रसोई कामवाली के भरोसे ही चलता है। बच्चों को भी अन्न के महत्त्व को बताने वाला कोई नहीं होता। ऐसे में भोजन के प्रति भावनात्मक रिश्ते का लोप होना सहज है। अन्न के एक-एक दाने के प्रति जो सम्मान का भाव हमारे बड़े-बुजुर्गों में था, बढ़ती सामाजिक असंवेदनशीलता के कारण वह भाव समाप्त होता जा रहा है।

पर्यावरण पर प्रभाव:

  • भोजन की बर्बादी का सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में दस प्रतिशत तक हिस्सा सड़े-गले और खराब भोजन का होता है। इससे हानिकारक मीथेन गैस का उत्पादन होता है। यह बाढ़ और सूखे जैसे हालात के लिए भी जिम्मेदार है और अन्न के पैदावार पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

भोजन अपव्यय पर नियंत्रण हेतु भारत सरकार के प्रयास:

  • भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने दिसंबर 2017 में ‘सेव फूड, शेयर फूड, ज्वाय फूड’ नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया था। इसका उद्देश्य भोजन की बर्बादी को रोकने और उसे जरूरतमंदों से साझा करने को लेकर जागरूकता फैलाना था। इसके लिए अलग-अलग खाद्य वितरण एजंसियों और दूसरे पण्यधारकों को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया था।
  • बांटा जाने वाला भोजन सुरक्षित हो, इसके लिए प्राधिकरण ने जुलाई 2019 में खाद्य सुरक्षा और मानक (अधिशेष भोजन की वसूली और वितरण) विनिमय भी अधिसूचित कर दिया। यानी इस विनियमन द्वारा प्राधिकरण ने अलग-अलग प्रतिष्ठानों और कारोबारों में भोजन की बर्बादी को रोकने और भोजन दान करने को प्रोत्साहित करने के लिए नियम बना दिया। खाद्य कारोबार करने वाले सभी लोगों के लिए इन नियमों पर अमल अनिवार्य कर दिया गया।
  • बीते दिनों अन्न के उपयोग और उसकी बर्बादी पर रोक के उपाय से संबंधित पाठ स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ने की बात उठी। इससे युवा छात्रों को इस विषय में संवेदनशील बनाया जा सकेगा। भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए यह एक छोटा-सा कदम हो सकता है, पर अगर इसका कार्यान्वयन सही ढंग से हो, तो आने वाले समय में असर काफी व्यापक होगा। अन्न की बर्बादी रोकने संबंधी भारत की प्राचीन संस्कृति को पुन: भारतीय जनमानस में बिठाना एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। 7 जून, 2019 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने ‘कम खाओ, स्वस्थ खाओ’ को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया।

भोजन की बर्बादी पर नियंत्रण हेतु उपाय:

  • ‘सतत खाद्य प्रणाली’ बनाने के लिए अन्न की बर्बादी को प्राथमिकता के साथ रोकने की जरूरत है। इससे खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का भी बेहतर उपयोग होगा। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भोजन की बर्बादी को रोकना जलवायु और खाद्य संकट को दूर करने के लिए आवश्यक है।
  • भोजन की बर्बादी रोकने लिए ये कदम महत्त्वपूर्ण हैं, पर पर्याप्त नहीं। खाद्यान्न के उत्पादन, आपूर्ति, रखरखाव से लेकर उपयोग के विभिन्न स्तरों पर होने वाली बर्बादी की शृंखला तोड़ने की जरूरत है। इसके लिए जागरूकता और संवेदनशीलता आवश्यक है। सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाएं तभी सफल होंगी जब ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचेगी और वे जागरूक होंगे। सबसे ज्यादा आवश्यक है, घरों और विभिन्न समारोहों में होने वाले भोजन की बर्बादी को रोकना।
  • देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इस संबंध में सार्थक पहल के लिए निर्देश जारी किया था। लोग अपनी सोच और जीवनशैली में बदलाव लाकर बड़े स्तर पर यह काम कर सकते हैं। घरों, होटलों या समारोहों आदि में उपयोग के लायक ही भोजन बनाना, भोजन के असीमित प्रकारों पर रोक, प्लेट में उतना ही खाना लेना जितना खाना है, होटलों में जाने पर जरूरत के मुताबिक ही खाना मंगवाना, अनावश्यक रूप से भोजन सामग्री के संग्रहण से बचना आदि छोटे-छोटे उपायों से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

  • भोजन की बर्बादी रोकने में सामाजिक चेतना सबसे जरूरी है। इस चेतना के विकास में सरकारी तंत्र के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। पूरे विश्व के लिए भोजन की बर्बादी इतनी बड़ी चुनौती है कि इसे ‘सतत विकास 2030’ के एजंडे में भी शामिल किया गया है। इसमें 2030 तक प्रति व्यक्ति भोजन की बर्बादी को आधा करने का लक्ष्य रखा गया है। भोजन जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है, और उसे बर्बाद होने से बचाना मानवता की जरूरत।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

दुनियाभर में भोजन अपव्यय के कारण भुखमरी बढ़ी है और पर्यावरण प्रदूषित हुआ है। इस समस्या के निपटान हेतु कारगर उपाय सुझाइए।