सतत विकास लक्ष्य और लैंगिक समानता

 

सतत विकास लक्ष्य और लैंगिक समानता

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन पेपर-1

(महिला सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता)

भूमिका:

  • विश्व के लगभग हर समाज में लैंगिक असमानता मौजूद है। प्राचीन काल से लेकर आज तक महिलाओं को निर्णय लेने, उन्हें आर्थिक इकाई के रूप में स्वीकार करने और सामाजिक संसाधनों तक उनकी पहुंच से उन्हें वंचित रखने की प्रथा का एक लंबा इतिहास रहा है।

क्या है “लैंगिक समानता”?

  • लैंगिक समानता से अभिप्राय महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से अवसर और अधिकार प्राप्त होने से है। दोनों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का समान अधिकार प्राप्त हो और उनके साथ जाति, धर्म, लिंग, भाषा और रंग के आधार पर भेदभाव न किया जाए।
  • लैंगिक समानता महिलाओं और पुरुषों के प्रति निष्पक्ष होने की प्रक्रिया है। इसे सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर लंबे समय से प्रयास होते रहे हैं। लैंगिक समानता के लिए आवश्यक है कि महिला और पुरुष सामाजिक शक्ति, निर्णय क्षमता, अवसरों, संसाधनों और पुरस्कारों का समान रूप से लाभ उठा सकें।

लैंगिक असमानता के कारण:   

  • पुरुष प्रधान समाज को प्राथमिकता दिया जाना।
  • सामान्यतया सभी समाजों में पुरुष या महिला होना केवल उनकी जैविक और शारीरिक विशेषताओं का बोध नहीं कराता, बल्कि पुरुषों और महिलाओं से अलग-अलग व्यवहार, आदतों और भूमिकाओं की अपेक्षा की जाती है।
  • पुरुषों और महिलाओं के बीच संबंध, चाहे परिवार में हों, कार्यस्थल पर या सार्वजनिक क्षेत्र में, पुरुषसत्ता द्वारा ही निर्धारित होते आए हैं।
  • समाज में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और अपराध की घटनाओं में वृद्धि का बड़ा कारण है उसे केवल एक शरीर के रूप में देखा जाना।
  • महिलाओं के ज्ञान, अर्थतंत्र, शक्ति, विचार और राजनीतिक समझ की उपेक्षा किया जाना।

सामाजिक कुप्रथाएं:

  • हमारे समाज में प्रचलित अनेक प्रथाएं और पूर्वाग्रह लैंगिक समानता की राह में बाधा उत्पन्न करती हैं।
  • राजस्थान में आटा-साटा नामक कुप्रथा प्रचलित है, जिसमें लड़की के बदले लड़की का लेन-देन किया जाता है। यानी जिस घर से बेटी ली जाती है उसी घर में अपनी बेटी दी जाती है। इस प्रथा में भी अधिकतर लड़कियों को उनकी पसंद-नापसंद से समझौता करना पड़ता है। इस कुप्रथा के कारण महिलाओं ने आत्महत्या कर ली।

लैंगिक असमानता पर जेंडर सोशल नार्म्स इंडेक्स:

  • हाल में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का 2023 ‘जेंडर सोशल नार्म्स इंडेक्स’ जारी हुआ, जो महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रहों का आकलन करता है।
  • इस सूचकांक में चार प्रमुख आयामों के आधार पर महिलाओं की भूमिकाओं के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को दर्शाया गया है- राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक और शारीरिक अखंडता।
  • सूचकांक से पता चलता है कि दुनिया की लगभग 90 फीसद आबादी महिलाओं के प्रति किसी न किसी प्रकार का पूर्वाग्रह रखती है। मसलन, लगभग आधी आबादी को लगता है कि पुरुष, महिलाओं की तुलना में बेहतर राजनीतिक नेता बनते हैं।
  • पुरुषों और महिलाओं के बीच मतदान की दर समान होने के बावजूद दुनिया भर में केवल 24 फीसद संसदीय सीटें महिलाओं के पास हैं और 193 सदस्य राज्यों में से केवल दस में सरकार की प्रमुख महिला हैं।
  • रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, 28 फीसद लोग सोचते हैं कि एक पुरुष के लिए अपनी पत्नी को पीटना उचित है।

लैंगिक समानता हेतु प्रयास एवं सुझाव:

  • भारतीय संविधान और मानवाधिकार घोषणा-पत्र में महिला-पुरुष की समानता का स्पष्ट उल्लेख है।
  • वर्जीनिया वूल्फ के अनुसार, महिला का अपना खुद का कमरा/ स्पेस होना चाहिए, जहां वह स्वयं को इतना स्वतंत्र अनुभव करे कि वह खुद को काल्पनिक और गैर-काल्पनिक दोनों रूपों में देख सके।
  • महिला को बिना किसी भय के हर स्तर की उड़ान भरने की स्वतंत्रता प्राप्त करनी चाहिए, ताकि उसकी सूक्ष्म और वृहद स्तर की बौद्धिकता प्रतिबिंबित हो सके।
  • एक महिला के निजी स्पेस में कौन उपस्थित हो सकता है, यह चुनाव महिला का होना चाहिए।
  • एक महिला को अपने विचार, अपने पूर्वाग्रहों, अपनी आवश्यकताओं, अपनी भाषा, अपने प्रतीक और अपनी यौनिकता के सवाल को उन्मुक्त भाव से प्रस्तुत करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
  • महिलाओं को दमनात्मक और गैर-दमनात्मक शक्ति को समाप्त करने के लिए स्वायत्तता, स्वतंत्रता, मानवाधिकार जैसे पक्षों के तहत अपने आप को खोजना होगा।
  • यूएनडीपी के अनुसार, दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों के प्रदर्शन और ‘मी-टू’ आंदोलन ने संकेत दिया है कि नए मानदंडों और विकल्पों की आवश्यकता है और लोग लैंगिक समानता के लिए अभियान चलाने के लिए सक्रिय हैं।
  • समाज द्वारा सभी व्यावहारिक गतिविधियों में महिलाओं की सहभागिता और योगदान को अनिवार्य रूप से मान्यता दी जानी चाहिए।
  • महिलाओं की प्रतिभा को कम करके आंकना, उन्हें गैर-आर्थिक इकाई मानना, उन्हें केवल शरीर के रूप में स्वीकार करना, यह धारणा कि उनमें निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता है, कुछ ऐसे पक्ष हैं जो उन्हें भयमुक्त होकर अपनी अस्मिता को स्थापित करने से रोकते हैं। इसके साथ ही राज्य, प्रशासन और अकादमिक बुद्धिजीवियों को इस दिशा में कठोर कदम उठाने होंगे, ताकि महिलाओं को एक सुरक्षित समाज उपलब्ध कराया जा सके।
  • महिलाओं के प्रति पुरुष समाज की मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

  • सतत विकास लक्ष्यों की सूची में लैंगिक समानता को पांचवें स्थान पर रखा गया है, जिन्हें 2030 तक प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित है। पर जिस गति से महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और दुर्व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, 2030 तक इस लक्ष्य को प्राप्त करना आसान नहीं लगता।
  • एक समतामूलक और लैंगिक विभेद-मुक्त समाज के निर्माण के लिए महिलाओं के प्रति समाज में स्थापित पूर्वाग्रहग्रस्त सोच को बदलना आवश्यक है।
  • वर्तमान समाज में कार्यशील महिलाओं की भूमिका में व्यापक परिवर्तन देखे जा रहे हैं। अब महिलाएं अपने दायित्वों के साथ-साथ अधिकारों के प्रति काफी हद तक सजग हुई हैं।
  • समाज में अनगिनत ऐसे उदाहरण हैं, जो सिद्ध करते हैं कि महिलाओं की इन सभी क्षेत्रों में सक्रिय सहभागिता रही है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

लैंगिक समानता के संदर्भ में, इसके कारणों के निपटान हेतु सुझाव लिखिए