स्त्री जीवन और न्यायिक विलंब

स्त्री जीवन और न्यायिक विलंब

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2

(सामाजिक न्याय)

08 सितंबर, 2023

संदर्भ:

  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भावस्था खत्म करने की मांग को लेकर एक बलात्कार पीड़िता की याचिका पर गुजरात उच्च न्यायालय के व्यवहार पर आक्रोश व्यक्त किया है।
  • हाई कोर्ट ने इस मामले में समय की महत्ता के तथ्य को नजरअंदाज करते हुए मामले को बारह दिन बाद सूचीबद्ध किया, जबकि हर दिन की देरी बेहद अहम थी।
  • बलात्कार से पीड़ित याचिकाकर्ता ने गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करते हुए उस समय अदालत का दरवाजा खटखटाया, जब वह छब्बीस सप्ताह की गर्भवती थी।
  • ऐसे में सुरक्षित गर्भपात के लिए एक दिन की देरी भी घातक होती। बावजूद इसके उच्च न्यायालय ने कारण बताए बिना या अपना आदेश जारी किए बिना ही उसकी याचिका खारिज कर दी थी। जबकि शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं, मानसिक रूप से भी यह स्थिति पीड़ा देने वाली है।

भूमिका:

  • न्याय विचार के संदर्भ में, विलंब (delay) एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है। न्यायिक प्रक्रिया के दौरान, किसी मामले की सुनवाई या निर्णय का विलंब हो सकता है, जिससे व्यक्ति को न्याय प्राप्त करने में समस्याएँ हो सकती हैं। न्यायिक प्रक्रिया का विलंब न्यायिक प्रणाली की दिशा में एक बड़ी समस्या हो सकता है और यह सामाजिक न्याय में कठिनाइयों का कारण बन सकता है।
  • स्त्री जीवन के संदर्भ में, न्यायिक प्रणाली में स्त्रियों के अधिकारों और सुरक्षा का सवाल होता है। समाजों और न्यायिक प्रणालियों में यह देखा गया है कि स्त्रियों के अधिकारों का पालन नहीं हो पा रहा है और वे अक्सर न्यायिक प्रक्रिया में विवादों का शिकार हो सकती हैं। स्त्री सुरक्षा, विभिन्न न्यायिक मामलों में महत्वपूर्ण होती है, जैसे कि उनके खिलाफ होने वाली हिंसा, दहेज प्रथा और उनके समाज में समान अधिकार की सुनवाई।
  • न्यायिक प्रक्रिया में विलंब और स्त्री जीवन के मुद्दे एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं, जैसे कि स्त्रियाँ न्याय प्राप्त करने में समय और संघटनों का सामना कर सकती हैं और विलंब उनके लिए और भी कठिनाइयाँ पैदा कर सकता है। समाज में और न्यायिक प्रणाली में सुधार करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि समाज और सरकार स्त्रियों के अधिकारों का पालन करें और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करें, ताकि वे न्याय प्राप्त करने में सही तरीके से समर्थ हो सकें।

न्याय में विलंब (Justice Delayed):

  • न्याय में विलंब उस स्थिति को कहते हैं जब एक मामला या विवाद न्यायिक प्रक्रिया के अदालत में लंबित हो जाता है और न्याय का निर्णय देने में असामर्थ बनता है। यह सामाजिक न्याय और विचारिक इंसाफ के मूल तत्वों का उल्लंघन माना जाता है। न्याय के द्वारा निर्णय देने की प्रक्रिया तेज और निष्पक्ष होनी चाहिए ताकि विलंब से बचा जा सके।

स्त्री जीवन (Women's Rights and Empowerment):

  • स्त्री जीवन एक व्यक्ति के सामाजिक और न्यायिक अधिकारों के समूह को सूचित करता है जो उन्हें महिला के रूप में प्राप्त होते हैं। इसमें उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, समर्थन, समाजिक सम्मान और उनके न्यायिक अधिकार शामिल हैं। स्त्री जीवन को समाज में समानता, उद्दारण और सम्मान के माध्यम से प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

असुरक्षित गर्भपात और न्यायिक विलंब:

  • यौन हिंसा से जुड़े अनेक मामलों में जटिल न्यायिक प्रक्रिया के चलते सुनवाई के खिंचते जाने के बीच ही महिला और उसके परिजन हताश हो जाते हैं।
  • महिलाओं के जीवन से जुड़े अति संवेदनशील मुद्दों को लेकर भी कई मोर्चों पर अक्सर गंभीरता नहीं दिखती। इस पीड़ादायी समय में त्वरित कार्रवाई, न्यायिक निर्णय या सामाजिक सहयोग मिलने के पक्ष पर सरोकारी सोच का नदारद होना बहुत कुछ बदलकर भी कुछ न बदलने जैसे हालात को सामने रखता है। बीते दिनों उच्चतम न्यायालय की एक टिप्पणी के बाद कानूनी प्रक्रिया से जुड़ा एक विचित्र रवैया चर्चा का विषय बना।
  • आपराधिक मामले हों या बलात्कार की घटनाओं से जुड़े वाकयों की सुनवाई, विलंब की स्थितियां महिलाओं के लिए कई और समस्याएं खड़ी करने वाली होती हैं।
  • शारीरिक दुर्व्यवहार का शिकार होने के बाद गर्भपात करवाने की इजाजत मांगने के ऐसे मामलों में देरी के बहुत ही घातक परिणाम हो सकते हैं। इन परिस्थितियों में कई बार परिजन और पीड़िता असुरक्षित गर्भपात का रास्ता भी चुन लेते हैं।
  • घर हो या बाहर, एक ओर महिलाओं से जुड़ी आपराधिक घटनाओं के आंकड़े बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर कानूनी मोर्चे पर सुनवाई से लेकर फैसले की प्रतीक्षा तक में भी स्त्रियों के हिस्से आने वाली पीड़ा बढ़ी ही है। न्यायिक विलंब बहुत सारी स्त्रियों का मनोबल तोड़ती है।
  • न्यायिक विलंब के कारण कई महिलाएं अपने प्रति हो रहे अत्याचार का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं।
  • संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट, 2022 के अनुसार भारत में हर दिन असुरक्षित गर्भपात की वजह से लगभग आठ महिलाओं की मौत हो जाती हैं।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार, देश में होने वाले कुल गर्भपात में एक-चौथाई से ज्यादा घरों में ही होते हैं।

गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम

  • 2021 में संशोधन के बाद गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम बलात्कार पीड़िता के लिए चौबीस सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है।
  • लेकिन उचित मामलों में संवैधानिक न्यायालय द्वारा चौबीस सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने के लिए अपनी असाधारण शक्तियों का उपयोग किया जा सकता है।
  • वर्ष 2022 में केरल उच्च न्यायालय ने भी चिकित्सा बोर्ड की अनुशंसा के बाद एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की अट्ठाईस सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की भी अनुमति दी थी।
  • बीते साल दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी तेरह वर्षीया बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा था कि अगर उसे कम उम्र में मातृत्व का बोझ उठाने के लिए मजबूर किया गया तो यह उसके दुख और पीड़ा को और बढ़ाने वाली स्थिति होगी।

आगे की राह:

  • कम उम्र की बच्चियों के विरुद्ध आपराधिक घटनाओं की गंभीरता को समझते हुए विकृत मानसिकता वाले लोगों के विरुद्ध सख्त सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
  • यौन शोषण या बलात्कार के अपराधियों को लेकर कड़े कानून बनाने पर संसद को विचार करना चाहिए।
  • बच्चों से बलात्कार के मामलों पर अलग से प्रावधान बनाने पर विचार किया जाना चाहिए।
  • गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति चाहने के मामले में उच्चतम न्यायालय की यह टिप्पणी रेखांकित करने योग्य है कि जघन्य अपराध की पीड़ित महिला की स्थिति न्याय के संदर्भ में प्राथमिक कसौटी होनी चाहिए।
  • महिलाओं के मन-जीवन से जुड़े हालात को सुधारने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
  • महिलाओं को बुरे बर्ताव को सहने के बजाय आगे बढ़कर आवाज उठानी चाहिए।

निष्कर्ष:

  • न्यायिक प्रणाली की धीमी गति निर्णय की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है। विलंब न्याय से आपराधिक मानसिकता के लोगों की हिम्मत और बढ़ जाती हैं।
  • इसलिए व्यावहारिक धरातल पर बदलाव लाने के लिए कानूनी प्रक्रिया में भी सहजता और तत्परता जरूरी है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

स्त्री जीवन से संबंधित न्यायिक मामलों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।