महिला आरक्षण बिल, 2023

महिला आरक्षण बिल, 2023

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2

(भारतीय राज व्यवस्था)

20 सितंबर, 2023

चर्चा में क्यों:

  • हाल ही में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने वाला बिल लोकसभा में पेश किया गया है।
  • इस महिला आरक्षण बिल को 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' नाम दिया गया है।
  • लोकसभा से पास होने के बाद इस बिल को राज्यसभा में पेश किया जाएगा।
  • महिला आरक्षण बिल को तथाकथित कारणों से 27 साल से अनदेखा किया जा रहा है।

महिला आरक्षण बिल का इतिहास:

  • 1975 में  इंदिरा गांधी प्रधानमंत्रित्व काल  'टूवर्ड्स इक्वैलिटी' नाम की एक रिपोर्ट में महिला आरक्षण पर बात की गई थी।
  • रिपोर्ट तैयार करने वाली कमेटी में अधिकतर सदस्य आरक्षण के ख़िलाफ़ थे. वहीं महिलाएं चाहती थीं कि वो आरक्षण के रास्ते से नहीं बल्कि अपने बलबूते राजनीति में आएं।
  • पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1980 के दशक में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिलाने के लिए विधेयक पारित करने की कोशिश की थी, लेकिन राज्य की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया था।
  • महिला आरक्षण विधेयक को पहली बार 12 सितंबर 1996 को एचडी देवेगौड़ा की सरकार द्वारा 81वें संविधान संशोधन विधेयक के तौर पर पेश किया गया था।
  • इस गठबंधन सरकार को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी. मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद इस सरकार के दो मुख्य स्तंभ थे, जो महिला आरक्षण के विरोधी थे।
  • जून 1997 में एक बार फिर इस विधेयक को पास कराने का प्रयास हुआ. उस वक़्त शरद यादव ने इस विधेयक की निंदा करते हुए एक विवादास्पद टिप्पणी की थी।
  • उन्होंने कहा था, ''परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी''।
  • साल 1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार में तत्कालीन क़ानून मंत्री एन थंबीदुरई ने इस विधेयक को पेश करने का प्रयास किया था. लेकिन यह बिल  पास नहीं हो सका।
  • 1999 में एनडीए सरकार ने 13वीं लोकसभा के दौरान इस विधेयक को दोबारा पेश करने की कोशिश की।
  • साल 2003 में एनडीए सरकार ने फिर से इस बिल को प्रस्तुत किया था  लेकिन प्रश्नकाल में ही सांसदों ने इसका विरोध किया था।
  • 2010 में यूपीए सरकार में राज्यसभा में यह विधेयक पारित हुआ, लेकिन ये लोकसभा में तब पास नहीं हो सका था।
  • 2019 चुनावों से पहले कांग्रेस ने महिला आरक्षण को मुद्दा बनाया था। 

महिला आरक्षण बिल के बारे में:

  • यह बिल लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • इस बिल के कानून बनने से लोकसभा और विधानसभाओं की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएंगी।
  • यानी 33% सीटें महिलाओं के लिए लोकसभा आरक्षित हो जाएंगी।
  • वर्तमान में लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।
  • इसी तरह विधानसभाओं में जितनी सीटें होंगी, उसकी 33% सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएंगी। उदाहरण के लिए- दिल्ली विधानसभा में 70 सीटें हैं. उसकी 23 सीटें महिलाओं के लिए रहेंगी।
  • इसके लागू होने में लंबा वक्त लग सकता है। बताया जा रहा है कि जनगणना के जब परिसीमन होगा, तब ये कानून लागू होगा। यानी, 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं होगा।
  • जब तक जनगणना नहीं हो जाती, तब तक परिसीमन नहीं होगा। अभी 2021 की जनगणना नहीं हुई है।  2024 के चुनाव के बाद ही जनगणना होने की संभावना है। संविधान के तहत, 2026 तक परिसीमन पर रोक लगी है। अब जब 2021 की जनगणना होगी, उसके बाद ही लोकसभा सीटों का परिसीमन होगा। हो सकता है कि 2029 या फिर 2034 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण का फायदा मिले।

इस बिल की विशेषताएं:

  • इस बिल को पास करने की शक्ति केवल संसद में अन्तर्निहित है।
  • यह बिल संसद से पास होने बाद देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं में लागू हो जाएगा।
  • इसके लिए सभी राज्यों की मंजूरी लेना आवश्यक नहीं होगा।
  • देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण मिलेगा।
  • इस बिल का आरक्षण लाभ महिलाओं को सिर्फ लोकसभा और विधानसभाओं में मिलेगा।
  • राज्यसभा और विधान परिषद में महिलाओं को इस महिला आरक्षण बिल का लाभ नहीं मिलेगा।
  • इस बिल में एससी-एसटी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
  • एससी-एसटी महिलाओं आरक्षण के अंदर ही आरक्षण मिलेगा यानी, लोकसभा और विधानसभाओं में जितनी सीटें एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, उन्हीं में से 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
  • इस समय लोकसभा में 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
  • बिल के कानून बनने के बाद 84 एससी सीटों में से 28 सीटें एससी महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी।
  • इसी तरह 47 एसटी सीटों में से 16 एसटी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
  • वर्तमान में लोकसभा में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण का कोई भी प्रावधान नहीं है. एससी-एसटी की आरक्षित सीटों को हटा देने के बाद लोकसभा में 412 सीटें बचती हैं। 
  • इन सीटों पर ही सामान्य के साथ-साथ ओबीसी के उम्मीदवार भी लड़ते हैं।
  • इस हिसाब से 137 सीटें सामान्य और ओबीसी वर्ग की महिलाओं के लिए होंगी।

राज्यों की मंजूरी लेनी होगी क्या ?

  • संविधान के अनुच्छेद-368 के अनुसार, अगर केंद्र सरकार के कानून से राज्यों के अधिकारों पर कोई प्रभाव पड़ता है तो ऐसे  मामलों में कानून बनने के लिए कम से कम 50% विधानसभाओं की मंजूरी लेनी होगी। यानी कि अगर केंद्र सरकार को ये कानून देशभर में लागू करना है तो इसे कम से कम 50% विधानसभाओं की मंजूरी लेनी होगी।
  • यानी कि अगर केंद्र सरकार को ये कानून देशभर में लागू करना है तो इसे कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से भी पास कराना होगा।

वर्तमान में संसद एवं विधानसभाओं में महिलाओं की स्थिति:

  • संसद और अधिकतर विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15 फीसदी से कम है।
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार , 19 विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है।
  • मौजूदा लोकसभा में 543 सदस्यों में से महिलाओं की संख्या 78 है, जो 15 फीसदी से भी कम है ।
  • राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14 फीसदी है।
  • कई विधानसभाओं में महिलाओं की भीगीदारी 10 फीसदी से कम है।
  • वर्तमान में निम्नलिखित विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से अधिक है: 
  • बिहार (10.70 फीसदी), छत्तीसगढ़ (14.44 फीसदी), हरियाणा (10 फीसदी), झारखंड (12.35 फीसदी), पंजाब (11.11 फीसदी), राजस्थान (12 फीसदी), उत्तराखंड (11.43 फीसदी), उत्तर प्रदेश (11.66 फीसदी), पश्चिम बंगाल (13.70 फीसदी) और दिल्ली (11.43 फीसदी) है।
  • गुजरात विधानसभा में 8.2 फीसदी महिला विधायक हैं जबकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सिर्फ एक ही महिला विधायक है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

महिला आरक्षण बिल, 2023 की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।