लक्षद्वीप का सामरिक महत्त्व

लक्षद्वीप का सामरिक महत्त्व

GS-I, II, III: भूगोल, अंतरराष्ट्रीय संबंध, आतंरिक सुरक्षा  

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रीलिम्स के लिए महत्व

लक्षद्वीप, भारत की तटीय सीमा, प्रोजेक्ट सीबर्ड, हंबनटोटा बंदरगाह, चेन्नई, कोच्चि और विशाखापत्तनम बंदरगाह, आइएनएस कदंबा, बिनगा खाड़ी, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र ।

मेन्स के लिए महत्व

भारत की तटीय सीमा, चीन की विस्तारित ढांचा, भारत की प्रतिक्रिया, लक्षद्वीप का सामरिक महत्त्व, निष्कर्ष।

Jan. 15, 2024

सन्दर्भ:

हाल ही में, भारत-मालदीव राजनीतिक विवाद के कारण लक्षद्वीप सामरिक तौर पर चर्चा में है। यह विवाद, हिंद महासागर में मालद्वीप की आर्थिक महत्वाकांक्षा और चीन की चीन की विस्तारवादी नीति की प्रतिक्रिया फलस्वरूप उपजा है। इससे यहाँ के खूबसूरत द्वीपों की अनूठी संस्कृति और परंपरा खत्म हो सकती है।

भारत की तटीय सीमा:

  • भारत की कुल तटीय सीमा सात हजार पांच सौ सोलह किलोमीटर की है। यह गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, ओड़ीशा तथा पश्चिम बंगाल राज्यों के साथ-साथ संघ-शासित प्रदेशों दमन और दीव, लक्षद्वीप, पुदुचेरी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तक फैली हुई है। भारत की दक्षिण पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत शृंखलाओं के मध्य स्थित केरल राज्य भारत की सामरिक सुरक्षा का बड़ा केंद्र माना जाता है।

चीन की विस्तारित ढांचा:

  • हिंद महासागर और अरब सागर से लगे कई देशों में चीन ने आधारभूत परियोजनाओं और बंदरगाहों का निर्माण कर भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ा दिया है। पिछले कुछ दशक में चीन ने तेजी से अपनी नौसैनिक क्षमताओं का आधुनिकीकरण किया है।
  • चीन भारत से लगभग तीन सौ किमी दूर श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह शहर का निर्माण कर रहा है। इसी तरह, यह मालदीव के कई द्वीपों को नियंत्रित करता है और वहां एक हवाई अड्डा बना रहा है। हंबनटोटा से चेन्नई, कोच्चि और विशाखापत्तनम बंदरगाहों का फासला करीब नौ सौ से पंद्रह सौ किलोमीटर है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए अति महत्त्वपूर्ण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा भी करीब ग्यारह सौ किलोमीटर की दूरी पर ही है। चीनी नौसेना की संख्या और गतिविधियां जिस तरह से हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ी हैं, उससे निपटने और नए तरीके से निगरानी तंत्र स्थापित करने के लिए भारत के लिए लक्षद्वीप का महत्त्व और ज्यादा बढ़ गया है।

भारत की प्रतिक्रिया:

  • चीन का मुकाबला करने के लिए भारत ने भी पिछले कुछ वर्षों में अपनी नौसेना और तटरक्षक बलों को मजबूत किया है। इसके साथ ही भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए जिन केंद्रों को चिह्नित किया है, लक्षद्वीप उसमें बेहद अहम है।
  • लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास के लैगून और विशेष आर्थिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण मत्स्य पालन और खनिज संसाधन हैं, जो अत्यधिक आर्थिक महत्त्व के हैं। मारीशस के अगलेगा द्वीप को भारत विकसित कर रहा है। लक्षद्वीप के भारत और अगलेगा द्वीप के बीच एक संपर्क बिंदु बनने से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को चीन पर सामरिक बढ़त मिल जाएगी।
  • कोच्चि से साढ़े छह सौ किलोमीटर दूर भारत के पश्चिमी तट पर कर्नाटक के कारवार में एक नौसैनिक अड्डे का निर्माण किया जा रहा है। कारवार नौसेना बेस पर ‘प्रोजेक्ट सीबर्ड’ देश की सबसे बड़ी नौसैनिक बुनियादी ढांचा परियोजना है, जिसका उद्देश्य युद्धपोतों के बेड़े का समर्थन और रखरखाव प्रदान करना है। यह पड़ोसी देशों के अधिकांश लड़ाकू विमानों की पहुंच से बाहर है और फारस की खाड़ी और पूर्वी एशिया के बीच दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग मार्ग के बहुत करीब स्थित है। आइएनएस कदंबा भारतीय नौसेना का एक एकीकृत रणनीतिक नौसैनिक अड्डा है, जो भारत के पश्चिमी तट पर कर्नाटक में कारवार के पास बिनगा खाड़ी में स्थित है। यह वर्तमान में तीसरा सबसे बड़ा भारतीय नौसैनिक अड्डा है और इसका पूरा विस्तार होने के बाद यह पूर्वी गोलार्ध में सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा होगा।

लक्षद्वीप के बारे में:

  • लक्षद्वीप छत्तीस द्वीपों का एक समूह है और इसका कुल क्षेत्रफल बत्तीस वर्ग किलोमीटर है। यह अरब सागर में करीब तीस हजार वर्ग मील तक फैला हुआ है।

लक्षद्वीप का सामरिक महत्त्व:

  • अरब सागर की सीमा यमन, ओमान, पाकिस्तान, ईरान, भारत और मालदीव को स्पर्श करती है। यह एक ऐसा समुद्री क्षेत्र है, जो कई अहम ‘शिपिंग लेन’ और बंदरगाहों को जोड़ता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
  • अरब सागर तेल और प्राकृतिक गैस का बड़ा भंडार है और इस क्षेत्र में ऊर्जा का अहम संसाधन भी है। अरब सागर में जहाजों की किसी भी गतिविधि पर नजर रखने के लिए लक्षद्वीप द्वीप समूह को एक सुविधाजनक स्थान के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का आकार बहुत विशाल है तथा इसमें लक्षद्वीप भी शामिल है। विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र किसी भी देश के समुद्री तट से दो सौ समुद्री मील यानी 370 किलोमीटर की दूरी तक होता है। लक्षद्वीप के कारण भारत को समुद्र के बड़े क्षेत्र पर अधिकार मिल गया है, जिससे दूर-दूर तक गुजरने वाले जहाजों की आवाजाही पर नजर रखी जा सकती है। लक्षद्वीप के कवरत्ती द्वीप पर भारतीय नौसैनिक अड्डा है। इसके साथ ही भारत अब लक्षद्वीप पर एक मजबूत अड्डा तैयार कर रहा है, जिससे चीन से मुकाबला करने में बड़ी मदद मिलने की उम्मीद है।
  • कोच्चि केरल का बंदरगाह नगर है, जो लक्षद्वीप सागर से लगा हुआ है। कोच्चि को अरब सागर और हिंद महासागर का एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कृषि उत्पादों, औद्योगिक वस्तुओं और कच्चे माल सहित राज्य के आयात और निर्यात का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा संभालता है। यह बहुत प्राचीन काल से दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह शहर रहा है, जहां मध्य पूर्व और यूरोप सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों से व्यापारी आते रहे हैं। कोच्चि बंदरगाह नियमित जहाजरानी सेवाओं के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जुड़ा हुआ है।
  • केरल के तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र स्थित है। यहां उपग्रह प्रक्षेपण यानों और संबंधित प्रौद्योगिकियों की डिजाइनिंग और विकास किया जाता है। राकेट प्रौद्योगिकी के डिजाइन और विकास के लिए जिम्मेदार इसरो का यह प्रमुख केंद्र वैमानिकी, अंतरिक्ष आयुध, संरचना, अंतरिक्ष भौतिकी और प्रणाली विश्वसनीयता के क्षेत्र में सक्रिय अनुसंधान और विकास करता है। इसलिए इन केंद्रों की सुरक्षा के लिए लक्षद्वीप द्वीप समूह पर भारत की सामरिक क्षमता का मजबूत होना बेहद जरूरी है।
  • लक्षद्वीप द्वीप समूह के पास स्थित नाइन डिग्री चैनल, फारस की खाड़ी से पूर्वी एशिया की ओर जाने वाले जहाजों के लिए सबसे सीधा मार्ग है। इस चैनल का उपयोग यूरोप, मध्यपूर्व और पश्चिमी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और सुदूर पूर्व से आने-जाने वाले सभी व्यापारियों द्वारा किया जाता है। युद्धकाल में, भारत चैनल को अवरुद्ध कर और दुश्मन की आपूर्ति लाइनों को काट सकता है। लक्षद्वीप द्वीप समूह की भौगोलिक परिस्थितियां भारत की सुरक्षा चिंताओं को भी बढ़ाती हैं, इसलिए भी इस पर निगरानी तंत्र विकसित किया जा रहा है।
  • मालदीव से लक्षद्वीप बेहद निकट है। मालदीव भारत-विरोधी केंद्र के रूप में उभर रहा है। वह चीन के प्रभाव में तो है ही, वहां चरमपंथी गतिविधियां भी बढ़ी हैं। हाल के वर्षों में सऊदी अरब और पाकिस्तान से मिलने वाली सहायता के साथ-साथ मजहबी कट्टरपंथ का निर्यात भी इन देशों से हो रहा है। दक्षिण एशियाई देशों से आइएसआइएस में जिहादी भर्तियों का सर्वाधिक प्रतिशत मालदीव से रहा है। मालदीव के सैकड़ों द्वीप निर्जन हैं और वहां चरमपंथी ताकतों के मजबूत होने का खतरा बना रहता है, जिसका सीधा असर भारत की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ने का अंदेशा बना रहता है।

निष्कर्ष:

  • लक्षद्वीप की रणनीतिक स्थिति तथा चीन और क्षेत्रीय बाधाओं के प्रति इसकी संवेदनशीलता इसे एक समर्पित रक्षा द्वीप में बदलने की जरूरत रेखांकित करती है। मगर इसे पर्यटन केंद्र के तौर पर उभारने की कोशिशें सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ा सकती हैं।
  • लक्षद्वीप को उन्नत करके मालदीव, मारीशस, सेशेल्स, श्रीलंका, पाकिस्तान और म्यांमा जैसे पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू  

----------------------------------------------

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत, मालद्वीप और चीन के त्रिकोणीय विवाद के आलोक में लक्ष्यद्वीप के सामरिक महत्त्व का परीक्षण कीजिए।