ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम(GPS) की कार्यप्रणाली

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम(GPS) की कार्यप्रणाली

प्रिलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम, स्टैंडर्ड पोज़िशनिंग सर्विस (SPS), GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम), परमाणु घड़ियाँ, भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (NavIC), GPS-एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN)

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:

GS-3: ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियाँ

09 दिसंबर,2023

सन्दर्भ:

वर्तमान में तकनीकी के आधुनिक दौर में दैनिक गतिविधियों में प्रयुक्त होने वाली तकनीकी उपकरणों की तरह ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) का भी क्रांतिकारी प्रभाव रहा है।

  • इस तकनीकी के व्यापक उपयोग ने नागरिकों से लेकर सेना तक, सटीक वैज्ञानिक अध्ययनों से लेकर शहरी नियोजन और आपदा जोखिम आकलन तक, हमारी अपेक्षाओं को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया है।

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम(GPS) के बारे में:

जीपीएस कार्यक्रम अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा 1973 में शुरू किया गया था और 1978 में पहला उपग्रह लॉन्च किया।

आधुनिक जीपीएस उपग्रह समूह में छह कक्षाओं में पृथ्वी के चारों ओर घूमने वाले 24 उपग्रह शामिल हैं। प्रत्येक उपग्रह एक ही दिन में दो कक्षाएँ पूरी करता है।

जीपीएस(GPS)के मुख्य घटक:

  • जीपीएस कार्यक्रम में तीन मुख्य घटक हैं - अंतरिक्ष खंड, नियंत्रण खंड और उपयोगकर्ता खंड।

अंतरिक्ष खंड(Space segment):

  • अंतरिक्ष खंड में 24 उपग्रह शामिल हैं। वे जिन छह कक्षाओं में जाते हैं वे सभी पृथ्वी से 20,200 किमी ऊपर हैं, और प्रत्येक कक्षा में हर समय चार उपग्रह होते हैं।
  • इस कॉन्फ़िगरेशन में, पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति एक समय में कम से कम चार उपग्रहों को 'देख' सकेगा, जो एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

नियंत्रण खंड(Control segment):

  • नियंत्रण खंड में ग्राउंड-आधारित नियंत्रण स्टेशनों और एंटीना का एक वैश्विक नेटवर्क शामिल है जो 24 उपग्रहों को ट्रैक करता है, सुनिश्चित करता है कि उनका प्रदर्शन हर समय अपेक्षित है, और कमांड प्रसारित करता है।
  • जीपीएस सिस्टम द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस (एसपीएस) प्रदर्शन मानक को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसका नवीनतम संस्करण अप्रैल 2020 में प्रकाशित हुआ था।
  • एसपीएस मानक दुनियाभर के एप्लिकेशन डेवलपर्स और उपयोगकर्ताओं को जीपीएस सिस्टम के लाभों से अवगत कराता है।

जीपीएस मास्टर कंट्रोल स्टेशन:

  • जीपीएस का मास्टर कंट्रोल स्टेशन श्राइवर एयर फ़ोर्स बेस, कोलोराडो में स्थित है, और वैकल्पिक मास्टर कंट्रोल स्टेशन वैंडेनबर्ग एयर फ़ोर्स बेस, कैलिफ़ोर्निया में है।
  • ग्राउंड एंटीना फ्लोरिडा (केप कैनावेरल), असेंशन द्वीप, डिएगो गार्सिया द्वीप और क्वाजालीन एटोल में हैं। अमेरिका में हवाई, अलास्का, न्यू हैम्पशायर, वाशिंगटन, डी.सी., कोलोराडो और फ्लोरिडा में और ग्रीनलैंड, इक्वाडोर, उरुग्वे, यू.के., दक्षिण अफ्रीका, बहरीन, दक्षिण कोरिया, गुआम, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में निगरानी और ट्रैकिंग स्टेशन हैं।

उपयोगकर्ता खंड(User segment):

  • उपयोगकर्ता खंड विभिन्न क्षेत्रों और अनुप्रयोगों में जीपीएस के उपयोग से संबंधित है।
  • प्रमुख क्षेत्रों में कृषि, निर्माण, सर्वेक्षण, रसद, दूरसंचार, बिजली पारेषण, खोज और बचाव, हवाई यात्रा, मौसम विज्ञान, भूकंप विज्ञान और सैन्य संचालन शामिल हैं।
  • वर्ष 2021 में विश्व भर में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNNS) डिवाइस की अनुमानित संख्या 6.5 बिलियन थी, जिसके विषय में उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2031 तक यह संख्या बढ़कर 10 बिलियन तक हो सकती है, ये आँकड़े इसके व्यापक प्रभाव को रेखांकित करते हैं।

GPS की कार्यप्रणाली:

  • GPS रिसीवर कुछ आवृत्तियों (50 बिट्स/सेकंड पर L1 और L2 आवृत्तियों) पर उपग्रहों द्वारा प्रदान किये गए रेडियो संकेतों को प्राप्त करता है और उनका आकलन करता है, जो अंतरिक्ष के तीन डायमेंशन एवं समय के एक डायमेंशन में सटीक स्थान निर्धारण में मदद करता है।
  • प्रत्येक जीपीएस उपग्रह लगातार एक रेडियो सिग्नल प्रसारित करता है जिसमें कक्षा में उसके स्थान, परिचालन स्थिति और सिग्नल उत्सर्जित होने के समय के बारे में जानकारी होती है।
  • जीपीएस उपग्रह के सिग्नल 50 बिट्स प्रति सेकंड की बैंडविड्थ पर L1(1.575.42 मेगाहर्ट्ज) और L2 (1,227.6 मेगाहर्ट्ज) आवृत्तियों के प्रसारित होते हैं।
  •  सिग्नल को कोड-डिवीजन मल्टीपल एक्सेस(CDMA) के साथ एन्कोड किया गया है।
  •  CDMA एक ही चैनल में कई सिग्नलों को प्रसारित करने और एक रिसीवर के लिए उन्हें अलग करने की अनुमति देता है।
  • CDMA दो प्रकार से सिग्नलों की एन्कोडिंग करता हैं: ऐक्विजिशन मोड, जिसका उपयोग नागरिक द्वारा जीपीएस डेटा तक पहुंचने के लिए किया जा सकता है, और प्रिसिज मोड, में जीपीएस डेटा एन्क्रिप्टेड होता है और यह सैन्य उपयोग के लिए होता है।
  • जीपीएस के एक विद्युत चुम्बकीय (रेडियो) सिगनल प्रकाश के वेग से गति करते हैं। स्मार्टफोन का जीपीएस रिसीवर इन सिग्नलों को पिकअप करके उपग्रह से सटीक दूरी का आकलन करता है।
  • यह दूरी प्रकाश के वेग और सिग्नल को पृथ्वी तक आने में लगे समय के गुणा के बराबर होती है। सिग्नल की यात्रा का समय रिसीवर की घड़ी पर लगे समय को घटाकर उस समय के बराबर होता है जिस समय सिग्नल उत्सर्जित हुआ था।
  • यदि रिसीवर के पास चार उपग्रहों से सिग्नल तक पहुंच है, तो उसके पास उपग्रह घड़ी के सापेक्ष अंतरिक्ष के चार आयामों (तीन प्लस समय) में इसके स्थान की गणना करने के लिए आवश्यक जानकारी होगी और यह पृथ्वी पर उस स्थान को सटीक रूप से थ्रीडी में निरुपित करता है।
  • पृथ्वी के कमजोर गुरुत्वाकर्षण के कारण जीपीएस उपग्रह से उत्सर्जित सिगनल के समय और स्मार्टफोन के जीपीएस को प्राप्त सिगनल के समय अंतर होता है और इस समय अंतराल के कारण वस्तु की दूरी का सटीक आकलन नहीं हो पाता है।  
  • इसे आइन्स्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत द्वारा समझाया जा सकता है। 

सटीकता और संशोधन:

  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि जीपीएस प्रणाली यथासंभव अच्छी तरह काम करे, सटीक टाइमकीपिंग बनी रहे इसके लिए वर्तमान में GPS की गणनाओं में सटीकता लाने के लिए परमाणु घड़ियों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, उपग्रहों और जमीन पर घड़ियों के बीच 18-माइक्रोसेकंड ऑफसेट के समायोजन से एक ही दिन के भीतर 10 किमी की त्रुटि हो सकती है। एक मिलीसेकंड की ऑफसेट से पूरे 300 किमी की त्रुटि हो सकती है। इस कारण से, सभी उपग्रह परमाणु घड़ियों से सुसज्जित होते हैं।
  • 1974 में, अमेरिकी नौसेना अनुसंधान प्रयोगशाला ने पहली बार NAVSTAR NTS-I उपग्रह पर अंतरिक्ष में एक परमाणु घड़ी लॉन्च की।
  • आधुनिक समय के जीपीएस तारामंडल पर मौजूद सभी घड़ियाँ और पृथ्वी पर मौजूद घड़ियों के सापेक्ष एक-दूसरे से केवल 10 नैनोसेकंड के भीतर सिंक्रनाइज़ होती हैं।

अन्य देशों के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS)  

  • कई देश जीपीएस के साथ-साथ अपने स्वयं के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) संचालित करते हैं।
  • वर्तमान में नेविगेशन प्रणालियां ऑस्ट्रेलिया, चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस और यू.के. द्वारा संचालित की जाती हैं।
  • इनमें से रूस का ग्लोनास (GLONASS), यूरोपीय संघ का गैलीलियो(Galileo) और चीन का बाइडू(BeiDou) सिस्टम वैश्विक हैं।

भारत के नेविगेशन सिस्टम:

नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC)

  • भारत द्वारा वर्ष 2006 में अपना स्वयं का भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम शुरू किया गया था, जिसे बाद में ‘नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC)’ नाम दिया गया।
  • इसके अंतरिक्ष क्षेत्र में सात उपग्रह हैं: तीन भूस्थैतिक कक्षाओं में और चार भूतुल्यकाली कक्षाओं में।
  • मई 2023 तक उपग्रहों की न्यूनतम संख्या (चार) भूमि-आधारित नेविगेशन की सुविधा प्रदान कर सकती है। मुख्य नियंत्रण सुविधाएँ कर्नाटक के हासन और मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित हैं।
  • NavIC उपग्रह रूबिडियम परमाणु घड़ियों का उपयोग करते हैं और L5 और S बैंड में डेटा संचारित करते हैं, साथ ही नए उपग्रह भी L1 बैंड में डेटा संचारित करते हैं।

जीपीएस-एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN)

  • भारत जीपीएस-एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) प्रणाली भी संचालित करता है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा विकसित एवं स्थापित किया गया था।
  • गगन का प्राथमिक उद्देश्य "भारतीय हवाई क्षेत्र में नागरिक उड्डयन अनुप्रयोगों की सुरक्षा" और "जीपीएस के लिये सुधार एवं अखंडता संबंधी संदेश" प्रदान करना है।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम क्या है? भारत की नेविगेशन प्रणालियों की उपयोगिता पर चर्चा कीजिए।