“एक देश, एक चुनाव”

क्या है?

एक देश, एक चुनाव

यह टॉपिक आईएएस/पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा के करेंट अफेयर और मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 भारतीय राजव्यवस्था से संबंधित है 

02 सितंबर , 2023

चर्चा में:

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने एक देश, एक चुनाव को लेकर एक समिति का गठन किया है।
  • केंद्र सरकार ने इस संबंध में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है।  
  • यह समिति देश में एक साथ चुनाव कराए जाने को लेकर कानूनी से लेकर संवैधानिक पहलुओं पर विचार विमर्श करेगी।

एक देश, एक चुनाव (One Nation, One Election) क्या है?

  • 'एक देश एक चुनाव' एक प्रस्ताव है जिसमें लोकसभा (भारतीय संसद के निचले सदन) और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है।
  • इसका मतलब है कि चुनाव पूरे देश में एक ही चरण में होंगे। मौजूदा समय में हर पांच साल बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए हर 3 से 5 साल में चुनाव होते हैं।

सरकारी आयोगों की सहमति:

  • 2022 के तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त के अनुसार, चुनाव आयोग एक साथ चुनाव कराने में सक्षम है। हालांकि,  इस विचार को लागू करने के लिए संविधान में बदलाव की जरूरत है और यह संसद में तय किया जाना चाहिए।
  • दिसंबर 2022 में, विधि आयोग ने भी देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, भारत के चुनाव आयोग, नौकरशाहों, शिक्षाविदों और एक्सपर्ट्स सहित हितधारकों की राय मांगी थी।

पहले भी एक साथ हुए हैं चुनाव:

  • 1967 तक भारत में राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव होना आम बात थी। आजादी के बाद वर्ष 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ हो चुके हैं।
  • वर्ष 1967 के बाद कई बार लोकसभा और विधानसभाएं अलग-अलग समय पर भंग होती रहीं, जिस कारण यह क्रम टूट गया है।
  • कुछ विधानसभाओं को 1968 और 1969 में और 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग कर दिया गया।
  • एक दशक बाद, 1983 में चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था।
  • हालांकि, आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि तत्कालीन सरकार ने इसके खिलाफ फैसला किया था। 1999 के विधि आयोग की रिपोर्ट में भी एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया गया था।
  • भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह राज्य सरकारों के लिए स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक साथ चुनाव कराने का एक तरीका विकसित करने का प्रयास करेगी।

इसका लाभ:

  • एक राष्ट्र, एक चुनाव के समर्थन में तर्क दिया जाता है कि इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी।
  • इससे पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी।
  • इस संबंध में कहा जाता है कि अलग-अलग मतदान के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था की गति काफी धीमी हो जाती है।
  • सामान्य प्रशासनिक कर्तव्य चुनाव से प्रभावित होते हैं क्योंकि अधिकारी मतदान कर्तव्यों में संलग्न होते हैं।
  • इसके समर्थन में यह भी कहा जाता है कि इससे केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी।
  • वर्तमान में, जब भी चुनाव होने वाले होते हैं तो आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है। इससे उस अवधि के दौरान लोक कल्याण के लिए नई परियोजनाओं के शुरू पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
  • एक देश, एक चुनाव से देश के संसाधनों की बचत होगी। इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नहीं पड़ेगी।
  • इससे देश में भ्रष्टाचार पर रोक लग सकेगी।

क्या हैं चुनौतियां?

  • जानकारों के अनुसार, इस तरह के चुनावों में राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व ज्यादा होगा, और क्षेत्रीय दल के अस्तित्व पर खतरा हो सकता है।
  • मतदाताओं में जागरूकता की कमी एक बड़ी समस्या है, अधिकांश लोग केंद्र और राज्य के कार्यों और शक्तियों के बारे में अंतर नहीं जानते हैं।
  • सरकार के सामने कुछ लॉजिस्टिक्स चुनौतियों भी आ सकती हैं, क्योंकि एक ही दिन में दोनों चुनावों के लिए अलग-अलग EVM मशीनों की जरूरत होगी।
  • सभी राजनीतिक दलों के बीच एकराय बनना मुश्किल है।
  • इसके लिए राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी।
  • इसके अलावा, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
  • एक साथ चुनाव कराने को लेकर क्षेत्रीय दलों का प्रमुख डर यह है कि वे अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र में हैं।
  • इसके साथ ही वे चुनाव खर्च और चुनाव रणनीति के मामले में राष्ट्रीय दलों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में भी असमर्थ होंगे।
  • साल 2015 में आईडीएफसी संस्थान की तरफ से किए गए अध्ययन के अनुसार, यदि लोकसभा और राज्यों के चुनाव एक साथ होते हैं तो 77 प्रतिशत संभावना है कि मतदाता एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन को चुनेंगे। हालांकि, अगर चुनाव छह महीने के अंतराल पर होते हैं, तो केवल 61 प्रतिशत मतदाता एक ही पार्टी को चुनेंगे।
  • देश में एक साथ चुनाव कराने से संघवाद पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • एक साथ चुनाव कराने से आचार संहिता के लंबे समय तक लागू रहने से देश में विकासात्मक और कल्याणकारी कार्यक्रमों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

संविधान में करना होगा संशोधन:

  • केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के अनुसार, देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा।
  • विधि आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए कम से कम पांच संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी।
  • इसके लिए संविधान के अनुच्छेद- 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना पड़ेगा।
  • अनुच्छेद 83 संसद के सदनों की अवधि से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 85 राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा भंग करने से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 172 राज्य विधानसभाओं की अवधि से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 174  राज्य विधानसभाओं के विघटन से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 174  राज्य विधानसभाओं के विघटन से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 356 राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित है।

                                              ----------------------------

मुख्य परीक्षा प्रश्न

आगामी वर्षों में समकालिक निर्वाचन की व्यवहार्यता का परीक्षण कीजिये। देश में एक साथ चुनाव से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए सुझाव लिखिए।