चुनावी बॉन्ड योजना “असंवैधानिक”

चुनावी बॉन्ड योजना “असंवैधानिक”

GS-2: भारतीय राजव्यवस्था

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रीलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में, अनुच्छेद 19 (1), अनुच्छेद 14, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, चुनावी चंदे से संबंधित एडीआर रिपोर्ट, भारतीय चुनाव आयोग (ECI)।

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में, चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक करार के कारण, चुनावी बॉन्ड के बारे में, विशेषताएं, चुनावी बांड के पक्ष और विपक्ष का विश्लेषण, आगे की राह।

16 फरवरी, 2024

ख़बरों में क्यों:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर और इसे असंवैधानिक करार दिया है।

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक करार के कारण:

  • याचिकाओं के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 (1) के तहत नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है और यह पिछले दरवाजे से लॉबिंग को संभव बनाती है।
  • चुनावी बॉन्ड योजना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है, तथा विपक्ष में राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर को समाप्त करती है। यह योजना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।
  • राजनीतिक दलों को चुनावी बांड के माध्यम से वित्तीय सहायता से बदले में बदले की व्यवस्था हो सकती है।
  • आर्थिक असमानता के कारण धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण राजनीतिक जुड़ाव के स्तर में गिरावट आती है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां:

  • विकल्प की तलाश करें: चुनावी बांड योजना काले धन पर अंकुश लगाने वाली एकमात्र योजना नहीं है।
  • कंपनी अधिनियम में संशोधन जो व्यापक कॉर्पोरेट राजनीतिक फंडिंग की अनुमति देता है, पूरी तरह असंवैधानिक है।
  • चयनात्मक गुमनामी और गोपनीयता: अदालत ने कहा कि यह योजना "चयनात्मक गुमनामी" और "चयनात्मक गोपनीयता" प्रदान करती है क्योंकि चुनावी बांड का विवरण भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के पास उपलब्ध है और इसे कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा भी एक्सेस किया जा सकता है।
  • फंडिंग का स्रोत जानने का अधिकार: अदालत ने सरकार के इस तर्क की आलोचना की कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों के फंडिंग का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है।
  • एक नई संतुलित प्रणाली की आवश्यकता: अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को एक नई प्रणाली डिजाइन करने पर विचार करना चाहिए जो आनुपातिकता को संतुलित करती है और समान अवसर का मार्ग प्रशस्त करती है।
  • चुनाव आयोग द्वारा डेटा प्रकटीकरण: सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2023 तक चुनावी बांड के योगदान पर डेटा तैयार करने का निर्देश दिया।
  • अदालत ने एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बांड का विवरण भारतीय चुनाव आयोग (ECI) को सौंपने का भी निर्देश दिया।

चुनावी बॉन्ड के बारे में:

  • यह एक किस्म का वित्तीय इंस्ट्रूमेंट है, जिसके माध्यम से कोई भी राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से चंदा दे सकता था।
  • चुनावी बॉन्ड की घोषणा 2017 के केंद्रीय बजट में की गई थी और इसे  29 जनवरी, 2018 को लागू किया गया था।
  • उद्देश्य: चुनाव में राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदा का ब्योरा और चंदे की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए चुनावी बॉन्ड जारी किया गया था।

चुनावी बॉन्ड की विशेषताएं:

  • यह एक वचन पत्र की तरह होता था, जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता था और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता था।
  • इन पर कोई ब्याज भी नहीं लगता था। यह 1,000, 10,000, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपयों के मूल्य में उपलब्ध थे।
  • इन्हें सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से खरीदा जा सकता था।
  • चंदा देने वाले को बॉन्ड के मूल्य के बराबर की धनराशि एसबीआई की अधिकृत शाखा में जमा करवानी होती थी। यह भुगतान सिर्फ चेक या डिजिटल प्रक्रिया के जरिए ही किया जा सकता था।
  • बॉन्ड कोई भी व्यक्ति और कोई भी कंपनी खरीद सकती थी। कोई कितनी बार बॉन्ड खरीद सकता था, इसकी कोई सीमा नहीं थी।
  • चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती थी, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता था।
  • केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता था, जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।
  • योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते थे।
  • इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जाता था।

चुनावी बांड के पक्ष और विपक्ष का विश्लेषण

चुनावी बांड के पक्ष में तर्क:

  • पारदर्शिता में वृद्धि: चुनाव अधिकारियों और जनता के साथ जुड़ाव के माध्यम से पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
  • दाता गुमनामी का संरक्षण: व्यक्तियों और संगठनों द्वारा गोपनीय दान की अनुमति देता है।
  • जवाबदेही आश्वासन: फंड के उपयोग के स्पष्टीकरण को सुनिश्चित करते हुए, दान को प्रकट पार्टी बैंक खातों में जमा किया जाता है।
  • नकद लेनदेन को हतोत्साहित करना: नामित बैंकों के माध्यम से भुगतान की आवश्यकता है, जिससे नकदी का उपयोग कम हो जाएगा।

चुनावी बांड के विरुद्ध तर्क:

  • पारदर्शिता को सीमित करना: मतदाताओं की फंडिंग के स्रोत को जानने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे राजनीतिक जवाबदेही कम हो जाती है।
  • क्रोनी-पूंजीवाद की संभावना: काले धन के प्रवाह और व्यवसायों द्वारा पक्षपात की संभावना को बढ़ावा मिल सकता है।
  • गैर-चुनाव उपयोग: आलोचकों का तर्क है कि "चुनावी बांड" नाम भ्रामक है, क्योंकि धन का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए किया जा सकता है, और पार्टियों को चुनावों के लिए इसका उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • अनधिकृत दान: निषिद्ध स्रोतों से योगदान की ट्रैकिंग में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे पारदर्शिता प्रभावित होती है।
  • असमान में वृद्धि: यह योजना सत्तारूढ़ दलों को असंगत रूप से लाभ पहुंचाती है, क्योंकि अधिकांश बांड कॉर्पोरेट्स द्वारा खरीदे जाते हैं और सत्तारूढ़ दल द्वारा प्राप्त किए जाते हैं।

राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे से संबंधित रिपोर्ट:

मुख्य तथ्य:

  • एडीआर के अनुसार, 2016-17 और 2021-22 के बीच अवधि में-
  • सात राष्ट्रीय और 24 क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को ₹16,437.63 करोड़ का कुल दान प्राप्त हुआ जो प्राप्त कुल दान का 55.9% था।
  • कॉर्पोरेट और अन्य स्रोत: कॉर्पोरेट क्षेत्र के दान का कुल योगदान 28.07% था, जबकि शेष 16.03% अन्य स्रोतों से आया था।
  • दान में उल्लेखनीय वृद्धि: राष्ट्रीय दलों के लिए, 2017-18 और 2021-22 के बीच चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त दान में 743% की पर्याप्त वृद्धि हुई, जबकि कॉर्पोरेट दान में 48% के छोटे अंतर से वृद्धि हुई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के बारे में:

  • ADR, नई दिल्ली स्थित एक भारतीय गैर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1999 में की गई थी।

आगे की राह:

  • निजी दान पर निर्भरता कम करना और राजनीति में बेहिसाब धन के प्रभाव पर अंकुश लगाने के लिए सरकार द्वारा रणनीतिक विकल्प तलाश करने की आवश्यकता है।
  • सरकार द्वारा पूर्ण प्रकटीकरण और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए चुनावी फंडिंग के प्रावधानों पर पुनर्विचार और संशोधन किया जाना चाहिए।
  • सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राजनीतिक दलों द्वारा एकत्र किया जा रहा धन बिना किसी लेन-देन की बाध्यता के उचित माध्यम से स्वच्छ धन के रूप में लिया जाए।
  • भ्रष्टाचार के दुष्चक्र और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता में गिरावट को तोड़ने के लिए साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

राजनीतिक फंडिंग के लिए भारत की चुनावी बॉन्ड प्रणाली के पक्ष और विपक्ष में अपने विचार लिखिए