चक्रवाती आपदाओं का प्रभाव

चक्रवाती आपदाओं का प्रभाव

आईएएस/पीसीएस मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 एवं निबंध लेखन हेतु उपयोगी

(आपदा प्रबंधन)

21 जून, 2023

भूमिका:

  • चक्रवात जैसी आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उनका सामना या उनके असर को कम करने की दिशा में बहुत कुछ किया जा सकता है। भारत के बहुत-से क्षेत्र बाढ़, सूखा, भूकंप और तूफानों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं से संबंधित खतरे बढ़ रहे हैं। क्यार, निसर्ग, तौकते, सुनामी, फेलिन, ठाणे, आइला, आइरिन, नीलम, सैंडी और हाल ही में आए बिपरजाय चक्रवात जैसी आपदाएं प्रकृति के बजाय आधुनिक मनुष्य की प्रकृति विरोधी विकास नीति का पर्याय बन चुकी हैं। अत्यधिक विकास नीतियों ने वातावरण यानी समुद्री क्षेत्र को गर्म कर चक्रवात और सुनामी आपदाओं की उत्पत्ति में सहयोग किया है।

चक्रवात की उत्पत्ति हेतु प्रमुख उत्तरदायी कारक:

  • चक्रवात की उत्पत्ति में प्रमुख उत्तरदायी कारक वैश्विक तापमान वृद्धि को माना जाता है।
  • वैश्विक ताप वृद्धि के चलते समुद्री तल खौल रहा है। फ्लोरिडा से कनाडा तक फैली अटलांटिक की 800 किमी चौड़ी पट्टी में समुद्री तल का तापमान औसत से तीन डिग्री सेल्सियस ज्यादा है।
  • यही उर्जा जब सतह से उठ रही भाप के साथ मिलती है तो समुद्र तल में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव शुरू हो जाता है, जो चक्रवाती बवंडर को विकसित करता है। इस बवंडर के वायुमंडल में विलय होने के साथ ही, वायुमंडल की नमी 7 फीसद बढ़ जाती है, जो तूफानी हवाओं को जन्म देती है। प्राकृतिक तत्वों की यही बेमेल रासायनिक क्रिया भारी बारिश का आधार बनती है, जो आंधी का रूप ले लेती है। परिणामस्वरुप, तबाही से धरती कांप उठती है और बस्तियां जलमग्न हो जाती हैं।
  • दरअसल, कार्बन फैलाने वाली विकास नीतियों को बढ़ावा देने के कारण धरती के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। यही कारण है कि बीते 133 सालों में रिकार्ड किए गए तापमान के जो तेरह सबसे गर्म वर्ष रहे हैं, वे 2000 के बाद के ही हैं और आपदाओं की आवृत्ति भी इसी कालखंड में सबसे ज्यादा बढ़ी है। पिछले तीन दशक में गर्म हवाओं का मिजाज उग्र हुआ है। इसने धरती के दस फीसद हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है।
  • यही वजह है कि अमेरिका में जहां कैटरिना, आइरिन और सैंडी तूफानों ने तबाही मचाई वहीं नीलम, आइला, सुनामी और फेलिन ने भारत और श्रीलंका में हालात बदतर किए।

प्रभाव एवं सुरक्षा उपाय:

बिपरजाय चक्रवात:

  • चक्रवात बिपरजॉय 6 जून 2023 को अरब सागर में उठा था। इस चक्रवात का प्रभाव गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश  में देखा गया।
  • प्रभाव: मौसम विभाग की सटीक भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन के समन्वित प्रयासों से बिपरजाय चक्रवात ने बड़े क्षेत्र और बड़ी मात्रा में संपत्ति का तो विनाश किया, लेकिन जनहानि का कारण नहीं बन पाया। पशुओं की भी बहुत कम मौतें हुईं। गुजरात के सौराष्ट्र तथा कच्छ जिलों को तूफान ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया।
  • ऐसा पहली बार हुआ कि तूफान के आने से पूर्व बरती गई सावधानियों से एक लाख से ज्यादा लोग सुरक्षित स्थलों पर पहुंचा दिए गए थे।
  • सातवें दशक में गुजरात अत्यंत विनाशकारी तूफान का सामना कर चुका है। उस समुद्री तूफान से भरूच तथा सूरत जैसे बड़े शहर लाशों से पट गए थे। हजारों मवेशी भी मारे गए थे। उसी कालखंड में अविभाजित आंध्र प्रदेश दो लाख से ज्यादा लोगों को प्राण गंवाने पड़े थे।
  • इसी तरह 4 जून, 1998 को गुजरात में आए समुद्री तूफान में सैकड़ों लोग मारे गए थे।
  • लेकिन इसके बाद भारत तूफान की सटीक भविष्यवाणी और उत्तम आपदा प्रबंधन में सक्षम हो गया। नतीजतन 2019 में गुजरात में ‘क्यार’ चक्रवात आया, तो केवल संपत्ति की हानि हुई, जन और पशु हानि नहीं हुई। इसी तरह 2020 में महाराष्ट्र में निसर्ग और 2021 में गुजरात में आए तौकते तूफान ज्यादा असर नहीं दिखा पाए, क्योंकि दो लाख लोगों को आपदा प्रबंधन दक्षता के चलते सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया था। इसी तरह 2019 में फानी तूफान ओडीशा में बेअसर रहा।

सटीक पूर्वानुमान हेतु सुरक्षा उपाय:

  • भारतीय मौसम विभाग के अनुमान प्राय: सही साबित नहीं होते, लेकिन कुछ समय से चक्रवाती तूफानों के सिलसिले में उसकी भविष्यवाणियां सटीक बैठ रही हैं। इस बार भारतीय मौसम विज्ञानी सुपर कंप्यूटर और डापलर रडार जैसे श्रेष्ठतम तकनीकी माध्यमों से चक्रवात के अनुमानित और वास्तविक रास्ते का मानचित्र और उसके भिन्न क्षेत्रों में प्रभाव के चित्र बनाने में सफल रहे। तूफान की तीव्रता, तेज हवाओं और आंधी की गति और बारिश के अनुमान भी लगभग सही साबित हुए।
  • इन अनुमानों को और कारगर बनाने की जरूरत है, जिससे बाढ़, सूखे, भूकंप और बवंडरों की पूर्व सूचनाएं मिल सकें और उनका सामना किया जा सके। साथ ही मौसम विभाग को ऐसी निगरानी प्रणालियां भी विकसित करने की जरूरत है, जिनके द्वारा हर माह और हफ्ते में बरसात होने की राज्य और जिलेवार भविष्यवाणियां की जा सकें।
  • अगर ऐसा संभव हो पाता है तो कृषि का बेहतर नियोजन संभव हो सकेगा। साथ ही अतिवृष्टि या अनावृष्टि के संभावित परिणामों से कारगर ढंग से निपटा जा सकेगा। किसान भी बारिश के अनुपात में फसलें बोने लग जाएंगे। लिहाजा, कम या ज्यादा बारिश का नुकसान उठाने से किसान मुक्त हो जाएंगे।
  • मौसम संबंधी उपकरणों के गुणवत्ता और दूरंदेशी होने की इसलिए भी जरूरत है, क्योंकि जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से समुद्र तटीय इलाकों में आबादी भी ज्यादा है और वे आजीविका के लिए समुद्र पर निर्भर हैं। लिहाजा, समुद्री तूफानों का सबसे ज्यादा संकट इसी आबादी को सहन करना पड़ता है।
  • गौरतलब है कि 2005 में कैटरीना तूफान के समय अमेरिकी मौसम विभाग ने इस प्रकार के प्रलयंकारी समुद्री तूफान 2080 तक आने की आशंका जताई थी, लेकिन वह सैंडी और नीलम तूफानों के रूप में 2012 में ही आ गए।
  • इसके दस साल पहले आए सुनामी ने ओडीशा के तटवर्ती इलाकों में जो कहर बरपा था, उसके विनाश के चिह्न अब भी दिखाई दे जाते हैं। इसकी चपेट में आकर लगभग दस हजार लोग मारे गए थे।
  • पर्यावरणविदों के अनुसार, तूफानी एवं सुनामी आपदाओं के नियंत्रण में मैंग्रोव वन सहायक होते हैं। ओडीशा के तटवर्ती शहर जगतसिंहपुर में एक औद्योगिक परियोजना खड़ी करने के लिए एक लाख सत्तर हजार से भी ज्यादा मैंग्रोव वृक्ष काट डाले गए थे। उत्तराखंड में भी पर्यटन विकास के लिए लाखों पेड़ काट दिए और पहाड़ियों की छाती छलनी कर दी गई, जिसके दुष्परिणाम हम उत्तराखंड में निरंतर आ रही त्रासदियों में देख रहे हैं।
  • जंगल प्राणि जगत के लिए सुरक्षा कवच होते हैं और इनके विनाश को रोककर आपदाओं को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • तापमान को बढ़ाने वाली विकास नीतियों को नियंत्रित करके आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

  • तापमान वृद्धि का अनुमान लगाने के आधार पर अंतर-सरकारी पैनल ने भारतीय समुद्री क्षेत्रों में चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ने की आशंका व्यक्त की है। हाल ही के दिनों में बिपरजाय चक्रवात से बचाव एवं सामना करने हेतु भारतीय संस्थाओं ने जो समवेत जवाबदेही दिखाई दी है, उसकी निरंतरता बनी रहनी चाहिए।
  • आपदाओं से बचाव हेतु जिस तत्परता एवं प्रभावी ढंग से मौसम विभाग की भविष्यवाणी के बाद बचाव और राहत की तैयारी के लिए महज चार दिनों में केंद्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सक्रिय हो गया था ठीक उसी प्रकार प्रभावित राज्यों को भी तैयार रहने की आवश्यकता है।
  • यदि आपदा की स्थिति में सभी राज्य अपने दायित्व बोध के साथ जिम्मेदारी निभाएंगे तो भविष्य में भी,भारत ऐसी अचानक आने वाली आपदाओं से मानव आबादी को सुरक्षित रखने में सफल रहेगा।

स्रोत-जनसत्ता                                        -------------------------

मुख्य परीक्षा प्रश्न

पिछले कुछ वर्षों में तूफानी आपदाओं से बचाव हेतु भारत सरकार की रणनीतियां कहाँ तक सफल रही हैं? विवेचना कीजिए।