बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस

        बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस       

भूमिका:                              

  • दुनियाभर में प्रति वर्ष 12 जून को बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य बाल श्रम के खिलाफ दुनिया भर में बढ़ते आंदोलन के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम करना है।
  • सामाजिक न्याय और बाल श्रम के बीच की कड़ी पर जोर देते हुए, इस वर्ष विश्व दिवस का नारा है: 'सभी के लिए सामाजिक न्याय, बाल श्रम का अंत'

 इस दिवस के बारे में:

  • यह दिवस बाल श्रम को समाप्त करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा वर्ष 2002 में शुरू किया गया था।
  • प्रत्येक वर्ष यह विश्व दिवस बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने और उनकी मदद करने के लिए सरकारों, नियोक्ताओं, श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज और साथ ही दुनिया भर के लाखों लोगों को एक साथ लाता है।

भारत में बाल श्रम से संबंधित मामले:

  • भारत में बाल श्रम की स्थिति दयनीय है, लगभग 160 मिलियन बच्चे 2020 की शुरुआत में बाल श्रम के अधीन थे और भारत इसमें बड़ी संख्या में योगदान देता है। इसका तात्पर्य यह है कि भारत की लगभग एक-तिहाई आबादी 18 साल से कम उम्र की है, जो बताता है कि जोखिम अधिक है।
  • बाल श्रम के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। यहां के बच्चों की स्थिति दयनीय है। यह एक गंभीर और व्यापक समस्या है क्योंकि 14 वर्ष से कम आयु के कई बच्चे खतरों के कारखानों में काम कर रहे हैं।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में बाल श्रमिकों की संख्या 10.1 मिलियन थी, जिसमें 5.6 मिलियन लड़के और 4.5 मिलियन लड़कियां हैं।
  • भारतीय बच्चों को लैंगिक असमानता, बाल विवाह, कुपोषण, बाल तस्करी आदि जैसे प्रमुख मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन मुख्य समस्या कारण की जानकारी न होना और कानूनी उपाय उपलब्ध न होना है।
  • वर्तमान में दुनियाभर में लगभग 218 मिलियन बच्चे काम करते हैं, जिनमें से कई पूर्णकालिक हैं।

बाल श्रम के विरुद्ध संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार, किसी भी प्रकार का बलात् श्रम निषिद्ध है।
  • अनुच्छेद 24 के अनुसार, 14 साल से कम उम्र के बच्चे को कोई खतरनाक काम करने के लिये नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 39 के अनुसार "पुरुष एवं महिला श्रमिकों के स्वास्थ्य और ताकत एवं बच्चों की नाजुक उम्र का दुरुपयोग नहीं किया जाता है"।
  • गुरुपादस्वामी समिति की सिफारिशों के आधार पर लागू, बाल श्रम अधिनियम (निषेध और विनियमन) 1986, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों और प्रक्रियाओं में काम करने से रोकता है।
  • मनरेगा 2005, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और मध्याह्न भोजन योजना जैसे नीतिगत हस्तक्षेपों ने ग्रामीण परिवारों के लिये गारंटीशुदा मज़दूरी रोज़गार (अकुशल मज़दूरों हेतु) के साथ-साथ बच्चों के स्कूलों में रहने का मार्ग प्रशस्त किया है।
  • इसके अलावा वर्ष 2017 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन संख्या 138 और 182 के अनुसमर्थन के साथ, भारत सरकार ने खतरनाक व्यवसायों में लगे बच्चों सहित बाल श्रम के उन्मूलन के लिये अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है।

बाल श्रम से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  • कारण-प्रभाव संबंध: बाल श्रम और शोषण कई कारकों का परिणाम है, जिसमें गरीबी, सामाजिक मानदंड उन्हें माफ करना, वयस्कों और किशोरों के लिये अच्छे काम के अवसरों की कमी, प्रवास और आपात स्थिति शामिल हैं। ये कारक सामाजिक असमानताओं के न केवल कारण हैं बल्कि भेदभाव प्रेरित परिणाम भी हैं।
  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये खतरा: बाल श्रम, शोषण की निरंतरता एवं बच्चों की स्कूलों तक पहुँच न होने के कारण उनका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य कमज़ोर हो रहा है। इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये नकारात्मक साबित हो रही है। 
  • असंगठित क्षेत्र में बाल श्रम: देश में बाल श्रम कानूनी प्रक्रिया के तहत पूरी तरह से प्रतिबंधित है, इसके बावजूद भी भारत भर में बाल मजदूर विभिन्न असंगठित उद्योगों जैसे- ईंट भट्टों, कालीन बुनाई, परिधान निर्माण, कृषि, मत्स्य पालन आदि में कार्य कर रहे हैं।
  • बाल तस्करी: बाल तस्करी को बाल श्रम से जोड़ा जाता है और इसके परिणामस्वरूप हमेशा बाल शोषण होता है।
  • तस्करी किये हुए बच्चों को वेश्यावृत्ति जैसे गलत कार्यों के लिये मजबूर किया जाता है या अवैध रूप से गोद लिया जाता है; वे सस्ते या अवैतनिक श्रम प्रदान करते हैं, उन्हें गृह सेवक या भिखारी के रूप में काम करने के लिये मजबूर किया जाता है और उन्हें सशस्त्र समूहों में भर्ती किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

  • बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिये बने होते हैं, कार्यस्थलों में कार्य करने के लिये नहीं। बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी को पीढ़ीगत बनाती है। बाल श्रम शिक्षा में एक प्रमुख बाधा के रूप में कार्य करता है, जो स्कूल में उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों को प्रभावित करता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में बाल श्रम की दर में गिरावट के बावजूद, बच्चों को अभी भी घरेलू मदद जैसे कार्यों में प्रच्छन्न रूप से बाल श्रम के इस्तेमाल किया जा रहा है।
  • बाल श्रम तात्कालिक रूप से खतरनाक प्रतीत नहीं हो सकता है लेकिन यह उनकी शिक्षा, उनके कौशल अधिग्रहण के लिये दीर्घकालिक और विनाशकारी परिणाम उत्पन्न कर सकता है।
  • इसलिये उनकी भविष्य की संभावनाएं गरीबी, अधूरी शिक्षा और खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों के दुष्चक्र को दूर करने के लिए बाल श्रम को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

बाल श्रम से संबंधित मुद्दों को स्पष्ट करते हुए इसके नियंत्रण हेतु समाधान सुझाइए।