भारत में किसान आन्दोलन

भारत में किसान आन्दोलन

GS- Paper 1,& 3: आधुनिक इतिहास और भारतीय अर्थव्यवस्था  

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

14 फरवरी, 2024

ख़बरों में क्यों:

हाल ही में, जगजीत सिंह दल्लेवाल और सरवन सिंह पंधेर के नेतृत्व में किसान मजदूर मोर्चा (KMM) ने 13 फरवरी को 'दिल्ली चलो' के रूप में किसान आन्दोलन 2.0 का आह्वान किया है।

  • गौरतलब है कि 2020 में संसद से तीन कृषि कानून के लागू करने के विरोध में किसानों ने राष्ट्रव्यापी आन्दोलन शुरू किया था।
  • पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, बिहार समेत देश के अन्य हिस्सों के किसान इस आन्दोलन में शामिल हैं।

हालिया किसान आन्दोलन:

  • 2017 में, मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसान आंदोलन।
  •  2017 एवं 2018 में कर्ज माफी और फसलों के डेढ़ गुना ज्यादा समर्थन मूल्य की मांग को लेकर तमिलनाडु के किसानों दिल्ली में आंदोलन। 
  • भारतीय किसान नेता: महेन्द्र सिंह टिकैत (विशुद्ध किसान), चौधरी चरणसिंह और चौधरी देवीलाल। 

किसानों की प्रमुख मांगें:

  • कृषि कानूनों का निरस्तीकरण और MSP क़ानून लागू करने के अतिरिक्त किसानों की निम्नलिखित 12 मांगें केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तावित हैं:
  • सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करे,
  • कृषि ऋण को माफ कर दिया जाए,
  • किसानों को बिजली की दरों में रियायत मिले और विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए,
  • भारत को डब्लूटीओ से बाहर निकाला जाए,
  • लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय मिले,
  • कृषि उत्पादों जैसे फल, दूध, सब्जियों, मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए ,
  • किसानों और कृषि मजदूरों को पेंशन दिया जाए,
  • किसानों के खिलाफ मुकदमे वापस लिए जाएं,
  • किसानों को प्रदूषण कानून से बाहर रखा जाए,
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार किया जाए,
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को पूर्व की भांति लागू किया जाए, 
  • कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन करके कपास समेत सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाए।

आन्दोलन का कारण:

  • किसानों की मांग है कि वर्तमान में 24 फसलों पर दी जा रही MSP के लिए सरकार द्वारा बाध्यकारी कानून बनाया जाए ताकि किसानों को कृषि जिंसों का पूरा लाभ मिल सके।
  • दरअसल, कृषि लागत और मूल्य आयोग MSP की सिफारिश सरकार से करता है, लेकिन सरकार इस सिफारिश को मानने के लिए बाध्य नहीं है। MSP सिर्फ योजना है जिसे सरकार चाहे तो कभी भी बंद कर सकती है।

MSP क्या है:

  • MSP का मतलब मिनिमम सपोर्ट प्राइस है। MSP वह दर है, जिस पर सरकार किसानों की फसल को खरीदा करती है। केंद्र सरकार फसलों की न्यूनतम कीमत (Minimum Price) तय करती है। बाजार में फसलों का दाम कम होने की स्थिति में भी सरकार द्वारा MSP दरों पर ही फसल खरीदी जाती है। 
  • वर्तमान में सरकर रबी और ख़रीफ़ की 24 कृषि फसलों के लिए  MSP निर्धारित करती है।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के बारे में:

  • जनवरी, 1965 से भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन एक आयोग है। इसकी स्थापना का उद्देश्य कृषि उत्पादों के संतुलित एवं एकीकृत मूल्य संरचना तैयार करना और कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सलाह देना।  

स्वामीनाथन आयोग के बारे में:

  • साल 2004 में, केंद्र सरकार ने देश के किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने और पैदावार बढ़ाने के लिए एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमीशन बना, जिसे स्वामीनाथन आयोग (किसान आयोग) के नाम से जाना जाता है। इस आयोग ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थीं।

भारत में किसान आन्दोलनों का इतिहास:

  • ब्रिटिश काल में किसान आंदोलनों ने न सिर्फ स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि अंग्रेज सत्ता को भी हिला दिया था। हालांकि स्वतंत्रता से पहले किसान आंदोलनों पर गांधी जी का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता था, यही कारण था वे पूरी तरह अहिंसक होते थे। 

1857 के बाद किसान आन्दोलन:

दक्कन का विद्रोह:

  • शुरुआत- दिसंबर 1874, शिरूर तालुका के करडाह गांव, महाराष्ट्र।
  • आन्दोलनकर्ता: कालूराम किसान ने बाबा साहब देशमुख और साहूकारों के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया।
  • यह आंदोलन एक-दो स्थानों तक सीमित नहीं रहा वरन देश के विभिन्न भागों में फैला। 

 एका आंदोलन:

  • यह आंदोलन उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ। होमरूल लीग के कार्यकताओं के प्रयास तथा मदन मोहन मालवीय के मार्गदर्शन के परिणामस्वरूप फरवरी 1918 में उत्तर प्रदेश में 'किसान सभा' का गठन किया गया।
  • 1919 के अं‍तिम दिनों में इस संगठन को जवाहरलाल नेहरू ने अपना सहयोग प्रदान किया।
  • उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच एवं सीतापुर जिलों में लगान में वृद्धि एवं उपज के रूप में लगान वसूली को लेकर यह आंदोलन चलाया गया।  

 मोपला विद्रोह:

  • केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपला किसानों द्वारा 1920 में विद्रोह किया गया। प्रारम्भ में यह विद्रोह अंग्रेज हुकूमत के ख़िलाफ था। महात्मा गांधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं का सहयोग इस आंदोलन को प्राप्त था। हालांकि 1920 में इस आंदोलन ने हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य सांप्रदायिक आंदोलन का रूप ले लिया और बाद में इसे कुचल दिया गया। 

कूका विद्रोह:

  • सन 1872 में पंजाब के कूका लोगों (नामधारी सिखों) द्वारा किया गया यह एक सशस्त्र विद्रोह था। कृषि संबंधी समस्याओं तथा अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने के विरोध में यह विद्रोह किया गया था। बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी ने इसका नेतृत्व किया था। कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे।

रामोसी किसानों का विद्रोह:

  • महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में रामोसी किसानों ने जमींदारों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंका था। इसी तरह आंध्रप्रदेश में सीताराम राजू के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध यह विद्रोह हुआ, जो 1879 से लेकर 1920-22 तक छिटपुट ढंग से चलता रहा।

 तेभागा आंदोलन:

  • किसान आंदोलनों में 1946 का बंगाल का तेभागा आंदोलन सर्वाधिक सशक्त आंदोलन था, जिसमें किसानों ने 'फ्लाइड कमीशन' की सिफारिश के अनुरूप लगान की दर घटाकर एक तिहाई करने के लिए संघर्ष शुरू किया था। बंगाल का तेभागा आंदोलन फसल का दो-तिहाई हिस्सा उत्पीड़ित बटाईदार किसानों को दिलाने के लिए किया गया था। यह आंदोलन बंगाल के करीब 15 जिलों में फैला, विशेषकर उत्तरी और तटवर्ती सुंदरबन क्षेत्रों में। इस आंदोलन में लगभग 50 लाख किसानों ने भाग लिया। इसे खेतिहर मजदूरों का भी व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ।

ताना भगत आंदोलन:

  • लगान की ऊंची दर तथा चौकीदारी कर के विरुद्ध ताना भगत आंदोलन की शुरुआत 1914 में बिहार में हुई। इस आंदोलन के प्रवर्तक 'जतरा भगत' थे। मुण्डा आंदोलन की समाप्ति के करीब 13 वर्ष बाद ताना भगत आंदोलन शुरू हुआ था।

तेलंगाना आंदोलन:

  • आंध्रप्रदेश में यह आंदोलन जमींदारों एवं साहूकारों के शोषण के खिलाफ 1946 में शुरू किया गया था। 1858 के बाद हुए किसान आंदोलन का चरित्र पूर्व के आंदोलन से अलग था। अब किसान बगैर किसी मध्यस्थ के स्वयं ही अपनी लड़ाई लड़ने लगे। इनकी अधिकांश मांगें आर्थिक होती थीं। 

 

बिजोलिया किसान आंदोलन:

  • यह किसान आंदोलन भारत भर में प्रसिद्ध रहा जो मशहूर क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला था। बिजोलिया किसान आंदोलन 1847 से प्रारंभ होकर करीब अर्द्ध शताब्दी तक चलता रहा। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुकाबला किया वह इतिहास बन गया।

अखिल भारतीय किसान सभा:

  • 1923 में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने 'बिहार किसान सभा' का गठन किया था। 1928 में 'आंध्र प्रांतीय रैय्यत सभा' की स्थापना एनजी रंगा ने की। उड़ीसा में मालती चैधरी ने 'उत्‍कल प्रान्तीय किसान सभा' की स्थापना की। बंगाल में 'टेनेसी एक्ट' को लेकर 1929 में 'कृषक प्रजा पार्टी' की स्थापना हुई। अप्रैल, 1935 में संयुक्त प्रांत में किसान संघ की स्थापना हुई। इसी वर्ष एनजी रंगा एवं अन्य किसान नेताओं ने सभी प्रांतीय किसान सभाओं को मिलाकर एक 'अखिल भारतीय किसान संगठन' बनाने की योजना बनाई।

 नील विद्रोह (चंपारण सत्याग्रह):

  • नील विद्रोह की शुरुआत बंगाल के किसानों द्वारा सन 1859 में की गई थी। दूसरी ओर, बिहार के चंपारण में किसानों से अंग्रेज बागान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके अंतर्गत किसानों को जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। जब 1917 में गांधी जी इन विषम परिस्थितियों से अवगत हुए तो उन्होंने बिहार जाने का फैसला किया। गांधी जी मजरूल हक, नरहरि पारीख, राजेन्द्र प्रसाद एवं जेबी कृपलानी के साथ बिहार गए और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपना पहला सत्याग्रह प्रदर्शन किया।

 खेड़ा सत्याग्रह:

  • चंपारण के बाद गांधीजी ने 1918 में खेड़ा किसानों की समस्याओं को लेकर आंदोलन शुरू किया। खेड़ा गुजरात में स्थित है। खेड़ा में गांधीजी ने अपने प्रथम वास्तविक 'किसान सत्याग्रह' की शुरुआत की। खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने सरकार से लगान में राहत की मांग की, लेकिन उन्‍हें कोई रियायत नहीं मिली। गांधीजी ने 22 मार्च, 1918 को खेड़ा आन्दोलन की बागडोर संभाली। अन्य सहयोगियों में सरदार वल्लभभाई पटेल और इन्दुलाल याज्ञनिक थे।

बारदोली सत्याग्रह:

  • सूरत (गुजरात) के बारदोली तालुका में 1928 में किसानों द्वारा 'लगान' न अदायगी का आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन में केवल 'कुनबी-पाटीदार' जातियों के भू-स्वामी किसानों ने ही नहीं, बल्कि सभी जनजाति के लोगों ने हिस्सा लिया। इस आंदोलन का नेतृत्व सरदार पटेल ने किया था।

स्रोत: जनसत्ता

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

1857 के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था में किसान आन्दोलनों की प्रभावकारी भूमिका का विश्लेषण कीजिए