भारत में गहन औद्योगीकरण की आवश्यकता

भारत में गहन औद्योगीकरण की आवश्यकता

GS-3: भारतीय अर्थव्यवस्था

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

भारत में विनिर्माण उद्योग, मेक इन इंडिया बनाम आत्मनिर्भरता, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन, पीएम गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान,भारतमाला परियोजना, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया 2.0, आत्मनिर्भर भारत अभियान, विशेष आर्थिक क्षेत्र, एमएसएमई इनोवेटिव योजना।

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

गहन औद्योगीकरण के बारे में, भारत की वृद्धि और विकास के लिए गहन औद्योगीकरण की आवश्यकता, भारत में औद्योगीकरण के समक्ष चुनौतियाँ, आगे की राह।

16 फ़रवरी 2024

ख़बरों में क्यों:

वर्तमान में, महामारी से अपेक्षाकृत जल्दी उबरने के बावजूद, भारत को विऔद्योगीकरण और लगातार आर्थिक असमानताओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

  • उदाहरण के तौर पर भारत की आत्मनिर्भर भारत स्कीम है। वैश्विक स्तर पर अमेरिका में मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम, यूरोपीय ग्रीन डील और इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

गहन औद्योगीकरण के बारे में:

  • गहन औद्योगीकरण पारंपरिक औद्योगीकरण से भिन्न होता है।
  • गहन औद्योगीकरण टिकाऊ और समावेशी विकास पर जोर देकर आगे बढ़ता है जबकि पारंपरिक औद्योगीकरण आम तौर पर किसी क्षेत्र या देश में उद्योगों के विकास की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
  • गहन औद्योगीकरण का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता के साथ सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना होता है जबकि पारंपरिक औद्योगीकरण औद्योगिक विस्तार में तेजी लाता है।
  • इसमें उद्योगों को उन्नत प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकृत करना, नवाचार को बढ़ावा देना और पर्यावरणीय और सामाजिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करना शामिल होता है।

भारत में गहन औद्योगीकरण की आवश्यकता के कारण:

  • विनिर्माण में प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार के लिए, उच्च तकनीक बुनियादी ढांचे और कुशल जनशक्ति की कमी को दूर करना।
  • भारत में औद्योगिक विनिर्माण क्षेत्र को आगे बढ़ाना, क्योंकि इसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान 1991 से लगभग 16% पर स्थिर रहा है।
  • पर्याप्त परिवहन सुविधाओं में सुधार करना क्योंकि अत्यधिक बोझ वाले रेल नेटवर्क और सड़क परिवहन को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों के कारण भारत का परिवहन बुनियादी ढांचा तनावपूर्ण है।
  • एमएसएमई क्षेत्र की बाधाओं को दूर करना क्योंकि मध्यम और बड़े पैमाने के उद्योगों की तुलना में एमएसएमई क्षेत्र को ऋण प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एमएसएमई क्षेत्र के विकास को समर्थन देने के लिए इस पूर्वाग्रह में सुधार की आवश्यकता है, जो भारत के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
  • आयात पर उच्च निर्भरता को समाप्त करना क्योंकि भारत अभी भी परिवहन उपकरण, मशीनरी, लोहा और इस्पात, रसायन और उर्वरक सहित विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए विदेशी आयात पर निर्भर है।
  • भारत में उपभोक्ता वस्तुओं का कुल औद्योगिक उत्पादन 38% योगदान देता है। सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे नव औद्योगीकृत देशों में यह प्रतिशत क्रमशः 52%, 29% और 28% है।
  • प्रभावी औद्योगिक नीतियों में सुधार करना क्योंकि औद्योगिक क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप, लालफीताशाही और श्रम-प्रबंधन मुद्दों के कारण अक्षमताएं उत्पन्न हुई हैं।
  •  उद्योग के सभी क्षेत्रों में निवेश के प्रवाह को बढ़ावा देना क्योंकि उदारीकरण के बाद  कुछ उद्योगों में पर्याप्त निवेश आ रहा है,  लेकिन इंजीनियरिंग, बिजली, मशीन टूल्स इत्यादि जैसे कई बुनियादी और रणनीतिक उद्योगों में निवेश की गति काफी रही है।

भारत में औद्योगीकरण के समक्ष चुनौतियाँ:

महामारी के बाद भारत में विऔद्योगीकरण का प्रभाव :

  • महामारी से उबरने के बाद भारत विऔद्योगीकरण" का अनुभव कर रहा है, जहां उच्च विकास से एक छोटे से अल्पसंख्यक वर्ग को लाभ होता है, जिससे मौजूदा असमानताएं बढ़ जाती हैं।
  • संरचनात्मक खामियां: जहां महंगी कारें बिक रही हैं, वहीं आम लोग ऊंची खाद्य कीमतों से जूझ रहे हैं, जो भारत के विकास मॉडल में संरचनात्मक खामियों को उजागर करता है।

सेवा-आधारित विकास की कमियाँ:

  • देश में 1980 के दशक के उत्तरार्ध से सेवा-संचालित विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है, लेकिन इसने कृषि से श्रम को उतने प्रभावी ढंग से अवशोषित नहीं किया है जितना कि विनिर्माण ने किया होगा।
  • अत्यधिक कुशल कार्यबल  का अभाव: देश के सेवा क्षेत्र को अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता है।

शिक्षा  में असमानताएँ :

  • भारत की शिक्षा प्रणाली गहरी असमानताओं को दर्शाती है, जिसमें मानव पूंजी में निवेश अभिजात वर्ग के पक्ष में है। इसके कारण चीन के विपरीत, बड़े पैमाने पर उद्यमशीलता उद्यमों की कमी हो गई है।

औद्योगीकरण में सांस्कृतिक कारकों का अभाव:

  • औद्योगीकरण के लिए एक प्रमुख सांस्कृतिक शर्त जन शिक्षा है, जिसका भारत में अभाव है।
  • भारत में विनिर्माण के लिए आवश्यक कुछ व्यवसायों का सांस्कृतिक अवमूल्यन, साथ ही व्यावसायिक कौशल का अवमूल्यन, जैविक नवाचार और औद्योगिक प्रगति में बाधा डालता है।

रोजगार सृजन में चुनौतियाँ:

  • भारत के श्रम बाज़ार की विशेषता कम वेतन वाली और अनौपचारिक नौकरियाँ हैं। अधिकांश एमएसएमई असंगठित क्षेत्र में हैं, जिनमें रोजगार सृजन के लिए लचीलेपन का अभाव है। चीन का अनुभव रोजगार सृजन के लिए विनिर्माण क्षेत्र में पैमाने के महत्व को रेखांकित करता है।

भारत में औद्योगिक विकास हेतु सरकारी योजनाएं: 

  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI)(मार्च 2020 से)
  • पीएम गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान (13 अक्टूबर 2021 से)
  • भारतमाला परियोजना (वर्ष 2017-18 से)
  • स्टार्ट-अप इंडिया (16 जनवरी, 2016 से )
  • मेक इन इंडिया 2.0 (जनवरी 2018 से)
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान (12 मई 2020 से )
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र (वर्ष 2006 से)
  • एमएसएमई इनोवेटिव योजना (10 मार्च 2022 से)

आगे की राह:

  • वर्तमान में, भारत को केवल सेवा क्षेत्र ही नहीं बल्कि गहन औद्योगीकरण की आवश्यकता है, क्योंकि यह  समाज की नींव को बदलने की शक्ति रखता हो।
  • देश में गहन औद्योगिक विकास संस्कृति के लिए श्रम, उत्पादन और प्रौद्योगिकी का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
  • विनिर्माण क्षेत्र के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करने से कौशल विसंगति को संबोधित किया जा सकता है और कार्यबल की क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र में घरेलू और विदेशी दोनों निवेशों को प्रोत्साहित करने से बुनियादी ढांचे को उन्नत करने, प्रौद्योगिकी अपनाने में सुधार और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इसे आकर्षक निवेश नीतियों, कर प्रोत्साहनों और नियामक प्रक्रियाओं को आसान बनाकर हासिल किया जा सकता है।
  • नौकरशाही जटिलताओं को कम करके नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है, और श्रम कानूनों को सरल बनाने से व्यवसाय-अनुकूल वातावरण बनाया जा सकता है। यह निवेश को आकर्षित कर सकता है, नवाचार को बढ़ावा दे सकता है और विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ा सकता है।
  • अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों और नवाचार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि विनिर्माण क्षेत्र में तकनीकी प्रगति और उत्पादकता में वृद्धि हो सके।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

गहन औद्योगीकरण क्या है? इसके महत्व, चुनौतियों तथा आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर चर्चा कीजिए।