भारत में अपशिष्ट प्रबंधन हेतु नीति की आवश्यकता

 

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन हेतु नीति की आवश्यकता

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3

(अपशिष्ट प्रबंधन)

22 अगस्त, 2023

भूमिका:

  • भारत एक विकसित और उच्च जनसंख्या वाला देश है, जिसमें खाद्य एवं पोषण के मामूली संसाधनों की अधिक आवश्यकता होती है। हालांकि देश में भोजन व्यवस्था में सुधार हुआ है, लेकिन अपशिष्ट प्रबंधन के कारण मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज में कई समस्याएँ पैदा हो रही हैं। इस परिस्थिति में भारत में अपशिष्ट प्रबंधन हेतु नीति की आवश्यकता होनी चाहिए।

अपशिष्ट प्रबंधन:

  • अपशिष्ट प्रबंधन, जिसे अंग्रेजी में "Waste Management" कहा जाता है, एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य अपशिष्टों (कचरे) को सही और सुरक्षित तरीके से प्रबंधित करना होता है। यह प्रबंधन प्रक्रिया सोची जाती है ताकि कचरे का पर्यावरण, स्वास्थ्य, और सामाजिक प्रभाव कम हो सके और साथ ही समुदाय की आर्थिक उन्नति भी हो सके।
  • अपशिष्ट प्रबंधन में कचरे की सही संग्रह प्रणाली की पहचान करना महत्त्वपूर्ण होता है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन औद्योगिक नीति का हिस्सा है।
  • आधुनिक छंटाई सुविधाएं अलग किए गए कचरे से उच्च गुणवत्ता वाले पदार्थों का उत्पादन करती हैं। प्लास्टिक को अलग करने और रंग के आधार पर क्रमबद्ध करने की प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।
  • खाद और बायोगैस का उत्पादन किण्वन संयंत्रों में जैविक कचरे से किया जाता है।
  • अपशिष्ट यांत्रिक जैविक उपचार सुविधाओं (एमबीटी) में उपचारित किया जाता है। एमबीटी ऊर्जा उत्पादन के लिए उच्च-कैलोरी अंश प्रदान करता और कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को नियंत्रित करता है, जो मुख्य रूप से लैंडफिल क्षेत्रों से उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आती है।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन:

  • भारत में विश्व की आबादी का लगभग 18 फीसद आबादी है और भूभाग मात्र 2.4 फीसद, मगर वैश्विक अपशिष्ट उत्पादन में इसका योगदान 12 फीसद है।
  • भारत में कुल 3842 स्थानीय नगर निकाय हैं। 247 नगर निगम, 1500 नगर पालिका, 2100 नगर पंचायत, 56 छावनी बोर्ड तथा 2,63,274 ग्राम पंचायतें हैं, लेकिन कचरा प्रबंधन के लिए ‘स्वचालित अपशिष्ट पुनर्चक्रण मशीनें’ बहुत कम स्थानीय निकायों ने लगाई हैं।
  • भारत और जर्मनी के मध्य जल और अपशिष्ट प्रबंधन पर द्विपक्षीय समझौता 2019 में हो चुका है। दोनों पक्षों ने कपड़ा क्षेत्र, वायु, जल प्रशासन, समुद्री कूड़े, अपशिष्ट से ऊर्जा (भस्मीकरण), जैव-मिथेन, कचरा ढलाव, जल गुणवत्ता प्रबंधन, स्थानीय निकायों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए हाथ बढ़ाया है। इससे निश्चित रूप से भारत को कचरा प्रबंधन में सहायता मिलेगी।
  • भारत में अपशिष्ट प्रबंधन मुख्य रूप से अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा किया जाता है, जिनमें अधिकांश शहरों में रहने वाले गरीब होते हैं। अनौपचारिक श्रमिक होने के कारण इन लोगों को सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल पाती है।
  • ‘वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट’ की नई रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते शहरीकरण और उच्च खपत के कारण भारत अब सबसे अधिक मात्रा में ठोस कचरा पैदा करने वाले शीर्ष दस देशों में है। प्रतिदिन लगभग 6 लाख 21 हजार टन ऐसा कचरा पैदा करने में अमेरिका सबसे आगे है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर ठोस कचरा वर्तमान में 1.3 अरब टन से बढ़ कर 2.6 अरब टन होने का अनुमान है। इसमें कहा गया है कि विकासशील देशों की तुलना में अमीर देश अधिक ठोस कचरा पैदा कर रहे हैं। शीर्ष दस कचरा पैदा करने वाले देशों की सूची में केवल चार विकासशील देश हैं- ब्राजील, चीन, भारत और मैक्सिको।
  • भारत ने कचरे के उचित निस्तारण हेतु ‘वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल’ का शुभारंभ भी किया है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने, वस्तुओं का पुनर्चक्रण करने और कचरे के उपचार हेतु प्रौद्योगिकियों की पहचान, विकास और तैनाती करना है।

अपशिष्ट कुप्रबंधन के मुख्य कारण:

  • शहरों में निवास करने वाली विशाल आबादी
  • शहरी आबादी की उच्च उपभोग वाली जीवनशैली  

दक्षिण कोरिया में मजबूत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली

  • दक्षिण कोरिया में एक मजबूत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली है, और इसके जरिए वह आर्थिक विकास और अपशिष्ट उत्पादन के बीच संबंधों को तोड़ने में सफल रहा है।
  • यह सिर्फ पांच करोड़ दस लाख आबादी वाला एक छोटा-सा देश है, लेकिन प्रति दिन लगभग 53 हजार टन ठोस कचरा उत्पन्न करता है, जो भारत में प्रति व्यक्ति उत्पादन का पांच गुना है।
  • 1980 के दशक तक कोरिया ने अधिकांश अन्य विकासशील देशों की तरह, भस्मीकरण और ‘लैंडफिल’ के माध्यम से अपशिष्ट प्रबंधन करता था।
  • 1990 के दशक में अपशिष्ट उत्पादन को धीमा करने के लिए दक्षिण कोरिया ने मात्रा-आधारित अपशिष्ट शुल्क प्रणाली लागू की। यह एक आदर्श बदलाव था जो अपशिष्ट उत्पादन को नियंत्रित करने और पुनर्चक्रित करने की अधिकतम दर प्राप्त करने पर केंद्रित था। इस प्रणाली के लागू होने के बाद ठोस अपशिष्ट उत्पादन में भारी कमी देखी गई।
  • 1990 के 3.06 करोड़ मीट्रिक टन से अपशिष्ट उत्पादन घट कर 2016 में 1.93 करोड़ मीट्रिक टन हो गया।
  • खाद्य अपशिष्ट का पुनर्चक्रण करने वाले कुछ देशों में 60 फीसद पुनर्चक्रण दर के साथ, दक्षिण कोरिया वर्तमान में जर्मनी के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
  • दक्षिण कोरिया में ‘लैंडफिल रिकवरी’ और नानजिडो जैसी परियोजनाएं चलाई गईं। ये परियोजनाएं खतरनाक अपशिष्ट स्थलों को सफलतापूर्वक टिकाऊ पारिस्थितिकी आकर्षण में बदल रही हैं। इसके अलावा बिजली परियोजनाएं प्रारंभ हुईं, अपनी अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों के पूरक के रूप में दक्षिण कोरिया ने अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया।
  • दुनिया का पहला लैंडफिल संचालित हाइड्रोजन संयंत्र 2011 में दक्षिण कोरिया में बनाया गया था।

जर्मनी में अपशिष्ट प्रबंधन

  • कचरा प्रबंधन में विश्व में प्रथम पायदान पर काबिज जर्मनी में अपशिष्ट प्रबंधन की शुरुआत 1970 में हुई थी जो अब भी जारी है। जर्मन विशेषज्ञों ने ‘फाइव फेज माडल’ (पांच चरण) विकसित किया है। इसका उद्देश्य किसी क्षेत्र में अपशिष्ट प्रबंधन में मदद करना है।

अपशिष्ट कुप्रबंधन से उपजी समस्याएँ:

  • स्वास्थ्य समस्याएँ: अपशिष्ट प्रबंधन से संक्रमण, पेट की बीमारियाँ और पोषण संबंधित समस्याएँ बढ़ जाती हैं। खाद्य संयोजन में अशुद्धियाँ, अन्यथा योग्य खाद्य पदार्थों की फेक देने के कारण समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • पर्यावरण समस्याएँ: अपशिष्ट प्रबंधन के कारण आवश्यकता से अधिक संसाधनों का उपयोग होता है, जैसे कि पानी, भूमि और ऊर्जा। अपशिष्ट प्रबंधन से उत्पन्न कचरा, प्लास्टिक, आदि के प्रभाव भी पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं।
  • आर्थिक परिप्रेक्ष्य: अपशिष्ट प्रबंधन के कारण बचा हुआ खाद्य बर्बाद हो जाता है, जो आर्थिक नुकसान का कारण बनता है। समाज में गरीबी और भूखमरी की समस्याएँ इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं।

आगे की राह:

  • विकासशील देशों के कचरे में लगभग 40 से 60 फीसद कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जिनका पुनर्चक्रण किया जा सकता है। कचरे के उचित निस्तारण से खाद, बिजली तथा ईंधन प्राप्त किए जा सकते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कचरे की छंटाई है। सूखा कचरा, गीला कचरा, जैव अपघटनीय कचरा, अजैव अपघटनीय कचरा, बायोमेडिकल कचरा, ई-कचरा जैसा वर्गीकरण आम नागरिकों को आना ही चाहिए, जिसे जनजागरूकता से बढ़ाया जा सकता है।
  • भारत अपने कचरे के पहाड़ों का निस्तारण दक्षिण कोरिया और जर्मनी की कचरा प्रबंधन नीतियों और कार्य योजनाओं को लागू कर कर सकता है।
  • नगर नियोजक और नगर पालिकायें कचरा प्रबंधन तंत्र में समन्वय की जरूरत को समझें और उसके रास्ते तलाश करें।
  • जागरूकता: सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देना आवश्यक है। लोगों को खाद्य संरक्षण की महत्वपूर्णता के बारे में शिक्षा देनी चाहिए ताकि उन्हें उचित खाद्य संयोजन और कचरे के सही प्रबंधन का ज्ञान हो।
  • कचरे का पुनर्चक्रण तंत्र: संगठित तरीके से कचरे की पुनर्चक्रण प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना चाहिए। जिससे खाद्य सम्बन्धित अपशिष्टों का सही तरीके से प्रबंधन किया जा सके।
  • कानूनी प्रमाणपत्र: सरकार को अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सख्त कानूनों की प्रावधानिकता और पालना करने के लिए प्रमाणपत्र जारी करना चाहिए।
  • सहयोग और साझेदारी: सरकार, गैर सरकारी संगठन और व्यक्तिगत स्तर पर लोगों के बीच सहयोग और साझेदारियों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • तंत्रिका उन्नति: खाद्य संरक्षण तंत्र को तकनीकी उन्नति देनी चाहिए ताकि खाद्य पदार्थों के उत्पादन, परिप्रेक्ष्य और भंडारण में कमी हो सके।
  • इसके अलावा अपशिष्ट प्रबंधन में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय और स्कूल स्तर पर अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से प्रौद्योगिकी संचालित पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित किया जा सकता है, जैसा कि दक्षिण कोरिया और जर्मनी करते हैं।

निष्कर्ष:

  • भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, अगर अपशिष्ट प्रबंधन को उच्च प्राथमिकता में नहीं लिया गया तो इसे एक दुर्जेय अपशिष्ट संकट का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए सभी हितधारकों को आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और स्वस्थ प्राकृतिक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए एक साथ आना होगा।
  • अपशिष्ट प्रबंधन की नीति भारत में आवश्यक है ताकि समाज, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप में प्रभावित किया जा सके। इसके लिए सुशासन, जागरूकता और तकनीकी उन्नति सम्मिलित होनी चाहिए ताकि देश का विकास विकसित और स्वस्थ मानव समुदाय के साथ हो सके।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन हेतु ठोस नीति की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति को स्पष्ट करते हुए इसके समाधान हेतु उपाए सुझाइए।