भारत में अनुसंधान और विकास की आवश्यकता

 

भारत में अनुसंधान और विकास की आवश्यकता

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3

(शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास)

05 अक्टूबर, 2023

चर्चा में क्यों:

  • 2023 विश्व प्रतिभा रैंकिंग में, भारत 2022 रैंकिंग में 52वें स्थान की तुलना में चार स्थान फिसलकर 56वें ​​स्थान पर आ गया है।
  • हाल ही में जारी वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2024  में 91 भारतीय संस्थानों ने जगह बनाई है और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बैंगलुरु ने भारतीय विश्वविद्यालयों में शीर्ष स्थान हासिल किया है।
  • IISc बैंगलुरु को 201-250 रैंक के बीच रखा गया है। रैंकिंग में अमेरिका के सबसे ज्यादा संस्थानों ने जगह बनाई है। 169 संस्थानों के साथ अमेरिका सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाला देश है, और 56 संस्थानों के साथ शीर्ष 200 में भी सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाला देश है।
  • भारत अब 91 संस्थानों के साथ चौथा सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाला देश है, जिसने चीन को पीछे छोड़ दिया है, जिसके 86 संस्थानों का रैंकिंग में प्रतिनिधित्व है।
  • भारत के विश्व विद्यालयों कम नामांकन होने के कारण भारत के अनुसंधान और विकास पर गंभीर असर हुए हैं।

अनुसंधान और विकास;

  • योजनाबद्ध ढंग से किया गया सृजनात्मक कार्य अनुसंधान और विकास कहा जाता है। इसका ध्येय मानव की ज्ञान-संपदा की वृद्धि करना होता है। इसमें मानव के बारे में, उसकी संस्कृति के बारे में एवं समाज के बारे में ज्ञान की वृद्धि भी शामिल है।

एक विश्लेष्णात्मक अध्ययन

  • दुनिया में भारत की आबादी 1.41 अरब से अधिक है, जो दुनिया की कुल आबादी के 17.6 फीसद के बराबर है, लेकिन तृतीयक नामांकन 31 फीसद (2021) है। वैश्विक औसत 38 फीसद है। कम नामांकन के आंकड़े, औपनिवेशिक काल में देखे जा सकते हैं, जब तृतीयक शिक्षा में निवेश को एक अनावश्यक विलासिता के रूप में देखा जाता था और इससे भारत के अनुसंधान और विकास पर गंभीर असर हुए हैं।

भारत में शोधकर्ता और संस्थानों की स्थिति

  • भारत में शिक्षा पर व्यय 2015 के 4.11 फीसद से बढ़ कर 2020 में 4.47 फीसद हो गया। पांच वर्षों में केवल 0.36 फीसद की वृद्धि हुई। कई तृतीयक संस्थान बंद हो गए और अब भी बहुत कम वित्त पोषित हैं।
  • राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रबंधन सूचना (एनएसटीएमआइएस) तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा किए गए राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सर्वेक्षण 2018 पर आधारित अनुसंधान और विकास सांख्यिकी और संकेतक 2019-20 के अनुसार, भारत में प्रति दस लाख जनसंख्या पर 255 शोधकर्ता हैं।
  • इजराइल में 8,342 डेनमार्क में 7,899, स्वीडन में 7,597, कोरिया में 7,498, फिनलैंड में 6,722, सिंगापुर में 6,636, नार्वे में 6,489 और जापान में 5,304 हैं। हालांकि, चीन में 17.40 लाख, संयुक्त राज्य अमेरिका में 13.71 लाख, जापान में 6.76 लाख, जर्मनी में 4.13 लाख और कोरिया में 3.83 लाख की तुलना में भारत में शोधकर्ताओं की कुल संख्या 3.42 लाख है।
  • नीति आयोग और प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, अनुसंधान और विकास (आरएण्‍डडी) पर भारत का खर्च दुनिया में सबसे कम है। वास्तव में, भारत में अनुसंधान एवं विकास निवेश, 2008-09 में सकल घरेलू उत्पाद के 0.8 फीसद से घटकर 2017-18 में 0.7 फीसद हो गया। तथ्यों से पता चलता है कि भारत का जीईआरडी अन्य ब्रिक्स देशों की तुलना में कम है।
  • ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका क्रमश: 1.2 फीसद, 1.1 फीसद, 2 फीसद से ऊपर और 0.8 फीसद खर्च करते हैं। विश्व औसत लगभग 1.8 फीसद है।
  • ‘इंडिया इनोवेशन इंडेक्स’ 2021 के मुताबिक भारत द्वारा आर ऐंड डी पर समग्र खर्च सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7 फीसद है। संयुक्त राज्य अमेरिका, स्वीडन और स्विट्जरलैंड क्रमश: 2.9 फीसद, 3.2 फीसद और 3.4 फीसद खर्च करते हैं। इजराइल अपने सकल घरेलू उत्पाद का 4.5 फीसद अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करता है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है।
  • दोषपूर्ण नीतियों के कारण अक्षम लोगों को भारत में सार्वजनिक और निजी संस्थानों में नौकरी देने की संस्कृति के साथ-साथ गैर-कार्यशील प्रणालियां विकास के सामने मुख्य चुनौतियां हैं। नियुक्तियां हमेशा योग्यता पर आधारित नहीं होती हैं। हमें इसे बदलने की जरूरत है। हम लोगों से उम्मीद करते हैं कि वे अच्छी तरह काम कर रही व्यवस्था से घिरे नहीं होंगे।
  • प्राथमिक स्कूल से लेकर उच्च स्तर तक एक अच्छी तरह काम करने वाली शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है। मगर, उच्च शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए, एक कार्यात्मक समर्थन प्रणाली की आवश्यकता है, जो नियमों और विनियमों, अच्छे मानव संसाधन और सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियों और कार्यशील बुनियादी ढांचे का आधार तैयार करे।
  • मगर इसके बावजूद, पूरे भारत में उतकृष्टता केंद्र हैं, जिसका अर्थ है कि इस महाद्वीप में बेहतर करने की क्षमता है। भारतीय विश्वविद्यालयों को अंतर-भारतीय सहयोग पद्धति अपनानी चाहिए। अलग-अलग शिक्षण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह देशों को विभिन्न प्रकार की राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने और उन्हें स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर पर डिग्रियां प्रदान करने की अनुमति देता है। ये डिग्रियां ऐसे स्नातक तैयार करने में मदद करेंगी, जो सरकारी, गैर सरकारी संगठनों और व्यवसाय में काम कर सकते हैं। हमें अनुसंधान और अनुसंधान प्रशिक्षण के लिए अनुसंधान-गहन विश्वविद्यालयों की भी आवश्यकता है।
  • अनुसंधान-गहन विश्वविद्यालय हमारे पीएचडी तथा भारतीय और अंतरराष्ट्रीय पोस्ट-डाक्टरल छात्रों का ठिकाना होना चाहिए। वे समाज में कई अन्य भूमिकाएं निभाने के अलावा हमारे विश्वविद्यालयों तथा तकनीकी, व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों में भी काम करेंगे। प्रत्येक देश को एक राष्ट्रीय अनुसंधान प्रणाली की आवश्यकता होती है, जिसमें विश्वविद्यालय, सार्वजनिक अनुसंधान संस्थान, सरकारी और गैर-सरकारी अनुसंधान और सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों से अनुसंधान निवेश शामिल होते हैं।
  • इसके बिना कोई देश वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में भाग नहीं ले सकता। वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में भाग लेना भी महत्त्वपूर्ण है। हमें अपनी आबादी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना, विश्वसनीय बुनियादी ढांचे का निर्माण करना, कार्यात्मक स्वास्थ्य प्रणाली और देशों के भीतर और देशों के बीच असमानताओं को कम करने और युवा भारतीय आबादी को बेहतर भविष्य प्रदान करने की आवश्यकता है, जिसमें वे अपने समय का उपयोग पूर्ण तरीकों से कर सकें। यानी भारत को विकसित होने की जरूरत है और इसीलिए भारत की वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी बहुत जरूरी है।
  • विकास के बारे में ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब देने के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों में भारतीयों से बेहतर कोई और नहीं हो सकता। विकसित देशों ने प्राथमिक से लेकर तृतीयक तक, संपूर्ण शिक्षा प्रणाली में भारी निवेश किया है। इसकी बहुत जरूरी है, क्योंकि यह व्यक्तियों के बेहतर जीवन और राष्ट्रों के विकास का मार्ग है। अनुसंधान-गहन विश्वविद्यालयों के साथ, भारत अपनी चुनौतियों का समाधान खोजेगा। हालांकि, यह ‘ट्रांस-डिसिप्लिनरी रिसर्च’ सहयोग के साथ प्रभावी ढंग से काम करेगा।
  • वास्तव में, अनुसंधान पर अधिक धन निवेश करने की आवश्यकता है। अनुसंधान पर खर्च फिलहाल 0.7 फीसद है , जिसे बढ़ा कर सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसद किया जाना चाहिए। इसमें निजी योगदान वर्तमान के 0.1 फीसद से बढ़ कर कम से कम 1.5 फीसद होना चाहिए। भारत जैसे विकासशील देशों में आर एंड डी पर कम खर्च के लिए उद्धृत कारणों में से एक यह है कि आर एंड डी में निवेश के परिणाम आने में समय लगता है।
  • भारत जैसे देशों में भुखमरी, रोग नियंत्रण और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने जैसे बड़े मुद्दे हैं और अधिकारी संसाधनों को उनसे निपटने की दिशा में प्रवृत्त करते हैं। हालांकि, यह तर्क दिया जा सकता है कि इन चिंताओं को बाधा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह ‘आरएंडडी’ के दायरे को व्यापक बनाने का एक अवसर है।
  • तथ्य यह है कि अनुसंधान एवं विकास पर कम खर्च करने वाले देश लंबे समय तक अपनी मानव पूंजी को बनाए रखने में विफल रहते हैं। अनुसंधान एवं विकास पर कम खर्च और कम अवसर लोगों को बेहतर अवसर के लिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पलायन करने को बाध्य कर सकते हैं। इसे प्रतिभा पलायन के रूप में जाना जाता है। यह प्रवृत्ति राज्य की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को कम करती है, जिससे देश की समग्र अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

आगे की राह:

  • गलत नीतियां भारत में अनुसंधान-गहन विश्वविद्यालयों के विकास में बाधा रही हैं। भारत में विश्वसनीय बुनियादी ढांचा और कार्यात्मक स्वास्थ्य प्रणालियां विकसित करने, असमानताओं को कम करने और अपनी युवा आबादी के उज्ज्वल भविष्य के लिए अनुसंधान-गहन विश्वविद्यालयों में निवेश बढ़ाकर वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी की आवश्यकता है।
  • आने वाली चुनौतियों के अभिनव समाधान प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय अद्वितीय स्थान हैं, लेकिन अगर विश्वविद्यालयों को विकास का इंजन बनना है, तो शोध को एक परा-अनुशासनात्मक यानी ‘ट्रांस-डिसिप्लिनरी’ तरीके से व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
  • इसमें न केवल कई विषयों को परस्पर जोड़ना, बल्कि सभी हितधारकों के साथ जुड़ना भी शामिल है। इससे विश्वविद्यालयों को विकास और समानता को बढ़ावा देने में योगदान करने में मदद मिलती है।

मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारत में अनुसन्धान एवं विकास की आवश्यकता है। भारत में अनुसन्धान एवं विकास की प्रवृत्ति किस प्रकार होनी चाहिए? विश्लेषण कीजिए।