भारत की महिला किसानों के समक्ष चुनौतियाँ

भारत की महिला किसानों के समक्ष चुनौतियाँ

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3

(कृषि अर्थव्यवस्था)

26 अगस्त, 2023

भूमिका:

  • महिलाएं किसी भी विकसित समाज की रीढ़ होती हैं। भारत में 70 फीसद आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। 85 फीसद से अधिक ग्रामीण परिवार अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। कृषि में महिलाओं का योगदान 65 से 70 फीसद है। लेकिन अधिकतर महिलाएं नई तकनीक अपनाने, आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का लाभ उठाने तथा औपचारिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लेने में असमर्थ हैं।

महिला किसानों से संबंधित आंकड़े:

  • भारत मानव विकास सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 83 फीसद कृषि भूमि पर पुरुष किसान कृषि कार्य करते हैं, जबकि महिला किसान को केवल 2 फीसद भूमि पर ही कृषि कार्य करती हैं।
  • 81 फीसद महिला कृषि मजदूर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं और वे आवधिक तथा भूमिहीन मजदूरी में सबसे अधिक योगदान देती हैं।
  • वैश्विक कृषि में महिलाएं एक महत्त्वपूर्ण शक्ति हैं, जो कुल कृषि श्रमिकों का लगभग 43 फीसद हैं।
  • एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 18 फीसद कृषक परिवारों में महिलाएं ही मुखिया हैं, जो खेती का नेतृत्व करती हैं।
  • बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में ग्रामीण पुरुषों के बढ़ते पलायन के कारण कृषि और संबद्ध गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है।
  • महिलाएं बुआई से लेकर कटाई और उसके बाद मड़ाई, अनाज की सफाई, प्रसंस्करण और भंडारण आदि कार्यों में भी सक्रिय रूप से संलग्न हैं। उनकी भूमिका फसल उगाने और पशु पालन तक ही नहीं, खाद्य प्रसंस्करण और विपणन तक विस्तृत है।

महिला किसानों के समक्ष चुनौतियाँ:

  • कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका होते हुए भी महिलाओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अशिक्षा, अनभिज्ञता, उदासीनता और अंधविश्वास उनके सशक्तीकरण की राह में मुश्किल बढ़ाते हैं।
  • कई महिलाओं ने इन बाधाओं से जूझकर समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है, जो अन्य लोगों के लिए अनुकरणीय है। महिलाएं किसान श्रमिक और उद्यमी हैं, लेकिन लगभग हर जगह उन्हें उत्पादक तक पहुंचने में पुरुषों की तुलना में ज्यादा बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • महिला किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि जिस भूमि पर वे खेती करती हैं, उस पर स्वामित्व का दावा नहीं कर पाती हैं।
  • कृषि जनगणना 2015 के अनुसार, लगभग 86 फीसद महिला किसान इस संपत्ति से शायद इसलिए वंचित हैं, क्योंकि हमारे समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था स्थापित है।
  • विशेष रूप से भूमि पर स्वामित्व की कमी महिला किसानों को संस्थागत ऋण के लिए बैंकों से संपर्क करने की अनुमति नहीं देती, क्योंकि बैंक आमतौर पर जमीन के आधार पर ही ऋण स्वीकृत करते हैं।
  • दुनियाभर में किए गए शोधों से पता चलता है कि जिन महिलाओं की पहुंच सुरक्षित भूमि, औपचारिक ऋण और बाजार तक है, वे फसल-सुधार, उत्पादकता में वृद्धि, घरेलू खाद्य सुरक्षा तथा पोषण में सुधार के लिए अधिक निवेश कर पाती हैं।
  • कृषि को अधिक उत्पादक बनाने के लिए संसाधनों, आधुनिक उपकरणों और संसाधनों (बीज, उर्वरक, कीटनाशक) तक महिला किसानों की पहुंच आमतौर पर पुरुषों की तुलना में कम होती है।
  • जलवायु परिवर्तन: कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से महिला किसानें भी प्रभावित होती हैं। अनियमित मौसम, बारिश की कमी या बढ़ती गर्मी आदि के कारण उनकी फसलें प्रभावित हो सकती हैं, जिससे उनकी आय में कमी हो सकती है।
  • कृषि तकनीकों का अभाव: बहुत सारे गाँवों में, महिला किसानें पारंपरिक तरीकों से ही कृषि का काम करती हैं, जिससे उन्हें आधुनिक तकनीकों का लाभ नहीं मिल पाता है। यह उनकी उत्पादकता और आय को प्रभावित कर सकता है।
  • वित्तीय समस्याएँ: महिला किसानों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि ऋण की कमी, ब्याज दरें, बैंकों से कर्ज़ नहीं मिलना आदि।
  • सामाजिक समस्याएँ: कई जगहों पर, महिला किसानें पुरुषों की तुलना में कम समाजिक पहचान रखती हैं, जिससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा और अधिकारों की पहुंच में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • शिक्षा और साक्षरता: महिला किसानों को अक्सर शिक्षा और साक्षरता की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें आधुनिक कृषि तकनीकों और बाजार की जानकारी की कमी हो सकती है।
  • संसाधनों तक पहुंच: कई बार महिला किसानें कृषि संसाधनों तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करती हैं, जैसे कि खेती के उपकरण, बीज, उर्वरक आदि की कमी के कारण।
  • महिलाओं की भूमिका की मान्यता: कई जगहों पर महिला किसानों की योगदान को मान्यता नहीं दी जाती और उन्हें पुरुषों की तुलना में कम महत्व दिया जाता है।

आगे की राह:

  • अधिकांश कृषि मशीनरी ऐसी हैं, जिनका संचालन करना महिलाओं के लिए मुश्किल है। इस समस्या के बेहतर समाधान के लिए निर्माताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • सहकारी समितियों में महिलाओं को सदस्य बनाने की जरूरत है, ताकि उनको भी सहकारी समितियों से ऋण, तकनीकी मार्गदर्शन, कृषि उत्पादों के विपणन आदि की सुविधा उपलब्ध हो सके।
  • महिलाओं को संस्थागत ऋण प्राप्त हो, इसके लिए खेत पर पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त पट्टा होना चाहिए।
  • महिलाओं की कुशलता और उनके कृषि औजारों की दक्षता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
  • कृषि और ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंकों के ‘माइक्रो फाइनेंस’ पहल के तहत लचीली शर्तों पर दिए जाने वाले ऋण प्रावधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • क्रेडिट, प्रौद्योगिकी और उद्यमशीलता क्षमताओं के प्रावधान तक बेहतर पहुंच महिलाओं के आत्मविश्वास को और बढ़ावा देगी तथा उन्हें किसानों के रूप में मान्यता प्राप्त करने में मदद करेगी।
  • महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सामूहिक खेती की संभावना को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • कुछ स्वयं-सहायता समूहों और सहकारी डेयरी गतिविधियों (राजस्थान में सरस और गुजरात में अमूल) द्वारा महिलाओं को प्रशिक्षण तथा कौशल प्रदान किया गया है। इन्हें किसान निर्माता संगठनों के माध्यम से और विकसित किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, बीज और रोपण सामग्री पर उप-मिशन तथा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसी सरकारी प्रमुख योजनाओं में महिला केंद्रित रणनीतियों और समर्पित व्यय को शामिल किया जाना चाहिए।
  • महिला किसानों को सबसिडी वाली सेवाएं प्रदान करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रचारित कृषि मशीनरी बैंक और कस्टम भर्ती केंद्रों को तैयार किया जा सकता है।
  • प्रत्येक जिले में कृषि विज्ञान केंद्रों को विस्तार सेवाओं के साथ-साथ अभिनव प्रौद्योगिकी के बारे में महिला किसानों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का एक अतिरिक्त कार्य सौंपा जा सकता है।
  • सरकारों और विभिन्न संगठनों द्वारा महिलाओं के लिए समान संसाधन पहुंच, ऋण उपलब्धता और निर्णय लेने की शक्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • महिलाओं के अधिकारों को प्राथमिकता देने वाले भूमि स्वामित्व सुधार और महिलाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप बीमा तंत्र जलवायु संबंधी जोखिमों के विरुद्ध उनकी सुरक्षा को बढ़ा सकते हैं।
  • कृषि से संबद्ध महिलाओं के लिए पर्याप्त सामाजिक आवरण सुनिश्चित कराना आधुनिक संवहनीय खेती में एक अन्य अपरिहार्य कारक है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि महिलाओं के पास कार्य का प्रबंधन करने के साथ-साथ घरेलू जिम्मेदारियों, बच्चों के पालन-पोषण और वित्तीय बोझ को संभालने के लिए एक सुदृढ़ सहायता प्रणाली मौजूद है। कृषि क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं को सशक्त बनाने से कृषि को अधिक उत्पादक और टिकाऊ बनाया जा सकता है।
  • उनके प्रत्यक्ष और परोक्ष योगदान से सतत विकास लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद मिलेगी, जो सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आपस में जुड़े हुए हैं और हर योगदान समग्र विकास के लिए मायने रखता है।
  • भविष्य में भी महिलाओं को कृषि में शामिल करने के लिए विकास के व्यक्तिगत, शारीरिक, सामाजिक और तकनीकी पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • कृषि में तकनीकी रूप से सहायता प्राप्त महिलाओं में उच्च नवीनता, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता होगी, जो उन्हें आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत और मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त बनाने में मदद करती है। कृषि में आज का तकनीक अनुकूल नारीकरण गरीबी, शून्य भूख, अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छ पानी और स्वच्छता, सभ्य काम और आर्थिक विकास, कम असमानता का वातावरण बनाएगा।
  • खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, महिला और पुरुष किसानों के लिए उत्पादक संसाधनों तक समान पहुंच सुनिश्चित होने से विकासशील देशों के कृषि उत्पादन में ढाई से चार फीसद की वृद्धि हो सकती है।
  • विभिन्न कृषि परिचालनों के लिए महिला-अनुकूल उपकरण और मशीनरी रखना महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:  

  • इन चुनौतियों का समाधान पाने के लिए समाज, सरकार और संबंधित संगठनों को महिला किसानों के उत्थान और समृद्धि के लिए उन्हें सहायता प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
  • कृषि में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने हर साल 15 अक्तूबर को ‘महिला किसान दिवस’ के रूप में घोषित किया है।
  • सरकार ने महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना की भी शुरुआत की है। यह ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ का एक उप-घटक है, जिसका उद्देश्य कृषि में महिलाओं की वर्तमान स्थिति में सुधार करना और उन्हें सशक्त बनाने के लिए उपलब्ध अवसरों की वृद्धि करना है।
  • यह योजना ‘महिला’ की ‘किसान’ के रूप में पहचान को चिह्नित और कृषि क्षेत्र में महिलाओं की क्षमता का निर्माण करने का प्रयास करती है।
  • इसका उद्देश्य निर्धनतम परिवारों तक पहुंच बनाना और वर्तमान में ‘महिला किसान’ द्वारा संचालित गतिविधियों के दायरे का विस्तार करना है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारत में महिला किसानों के समक्ष आने वाली चुनौतियों एवं उनके समाधान पर चर्चा कीजिए।