भारत-अमेरिका के मध्य सामरिक सहयोग हेतु बढ़ते कदम

भारत-अमेरिका के मध्य सामरिक सहयोग हेतु बढ़ते कदम

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2

(अंतरराष्ट्रीय संबंध)

28 जून,2023

चर्चा में:

  • हालिया दिनों में भारत-अमेरिका के मध्य सामरिक सहयोग हेतु विभिन्न स्तरों पर कई अहम समझौतों को मंजूरी दी गयी है।
  • रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका का भारत से बढ़ता सहयोग चीन को रोकने की रणनीति पर आधारित है।

भारत-अमेरिका के मध्य बढ़ते सामरिक सहयोग के निहितार्थ:

  • अत्याधुनिक अमेरिकी तकनीक में भारत की साझेदारी से साफ है वर्तमान दौर में चीन को भारत के साथ अमेरिकी सैन्य प्रणाली से मुकाबला करना होगा। जाहिर है, चीन के लिए चुनौतियां अब बढ़ सकती हैं। वहीं सामरिक दृष्टि से अमेरिका के साथ भारत का आगे बढ़ना रक्षा संबंधों के लिए नए युग की शुरुआत है।

अमेरिकी विदेश नीति:

  • अमेरिकी विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य इस प्रकार की व्यवस्था करना है, जिससे उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर किसी प्रकार की आंच न आए, इसलिए वह एशिया, अफ्रीका और यूरोप में शक्ति संतुलन बनाए रखना चाहता है। पिछले एक दशक से अमेरिका ने एशिया केंद्रित विदेश नीति को मजबूत किया है और उसकी आशाओं और रणनीति का मुख्य केंद्र भारत है।
  • ओबामा, ट्रंप के बाद जो बाइडन भी अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को बनाए रखने के लिए किसी भी कीमत पर चीन, रूस और ईरान जैसे देशों के प्रभाव को सीमित करना चाहते हैं। ताकि नियंत्रण और संतुलन पर आधारित नई साझेदारियों को आगे बढ़ाकर अमेरिका के सामरिक और राजनीतिक हित सुरक्षित हो सकें।
  • भारत और अमेरिका के बीच न केवल सामरिक सहयोग मजबूत हो रहा है, बल्कि दोनों देश रक्षा औद्योगिकी सहयोग की रूपरेखा पर भी निरंतर आगे बढ़ रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री की हालिया यात्रा में भी सामरिक सहयोग को प्राथमिकता दी गई।
  • अमेरिका भारत की सेना के आधुनिकीकरण का समर्थन कर रहा है।
  • भौगोलिक परिस्थितियों के कारण रूस से बेहतर संबंध बनाए रखने की भारत की मजबूरियों को अमेरिका ने समझा है और अब वह सुरक्षा को लेकर भारत को आश्वस्त करना चाहता है। इस रणनीति के पीछे अमेरिका के दीर्घकालीन आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हुए हैं।
  • अमेरिका दक्षिण एशिया तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के महत्त्व को समझता है। पाकिस्तान की अस्थिरता के चलते उसे इन क्षेत्रों में बने रहने के लिए राजनीतिक स्थिरता वाले सहयोगी देशों की जरूरत है। इसमें भारत से बेहतर कोई देश नहीं हो सकता। करीब डेढ़ दशक से चीन की लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों में सहायता कूटनीति ने अमेरिकी हितों को गहरी चुनौती पेश की है।
  • चीन को एशिया तक सीमित रखने के लिए बराक ओबामा ने भी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी साझेदारियों को बढ़ाने की नीति पर काम करना शुरू किया था। चीन की हिंद महासागर में असामान्य गतिविधियों को लेकर ओबामा ने कहा था कि अब एशिया से ही यह तय होगा कि दुनिया संघर्ष से आगे बढ़ेगी या सहयोग से।
  • अमेरिका ने विएतनाम, आस्ट्रेलिया और फिलीपींस के साथ सैन्य संबंध बढ़ाए, लाओस को सहायता दी तथा दक्षिण कोरिया और जापान के साथ रिश्तों को मजबूत किया।
  • भौगोलिक तौर पर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर समुद्र का जो हिस्सा बनता है उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र कहलाता है। यह व्यापारिक आवागमन का प्रमुख क्षेत्र है तथा इस मार्ग के बंदरगाह सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में शामिल हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र से लगे 48 देशों में दुनिया की लगभग 65 फीसद आबादी रहती है। इसमें से अधिकांश देश चीन की विस्तारवादी नीतियों और अवैधानिक दावों से परेशान हैं। इनमें भारत समेत इंडोनेशिया, ताइवान, मलेशिया, म्यांमा, ताजीकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, लाओस और विएतनाम हैं। पूर्वी चीन सागर में शेंकाकू द्वीप को लेकर चीन और जापान के बीच विवाद है। चीन-जापान विवाद के बीच अमेरिका जापान को खुला और मुखर समर्थन दे रहा है।
  • अमेरिका जापान को भारत तथा आस्ट्रेलिया के साथ बेहतर संबंध रखने को प्रेरित कर रहा है, जिससे चीन को नियंत्रित किया जा सके। चीन के उत्तर-पूर्व में उत्तर कोरिया और पूर्व में जापान है। कोरियाई प्रायद्वीप में चीन और उत्तर कोरिया को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार है। दक्षिण कोरिया की 1953 से अमेरिका के साथ रक्षा संधि है और दक्षिण कोरिया में अट्ठाईस हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिक और युद्धपोत नियमित रूप से वहां तैनात रहते हैं। अमेरिका के सामने रूस के मुकाबले चीन कहीं बड़ा प्रतिद्वंद्वी है और अमेरिका इससे निपटने के लिए मुख्य रूप से यूरोप के बाद हिंद प्रशांत क्षेत्र से जुड़े देशों की ओर देख रहा है।
  • चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना को साकार कर दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और उसके केंद्र में हिंद प्रशांत क्षेत्र है। भारत अपनी सुरक्षा मजबूरियों के चलते अमेरिका का स्वभाविक सहयोगी बन गया है। चीन, पाकिस्तान की बढ़ती साझेदारी ने भारत की सामरिक समस्याओं को बढ़ाया है। चीन, पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का प्रमुख भागीदार है।
  • श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट, बांग्लादेश का चिटगांव बंदरगाह, म्यांमा की सितवे परियोजना समेत मालद्वीप के कई निर्जन द्वीपों पर चीनी कब्जे से भारत की समुद्री सुरक्षा संबंधी चुनौतियां बढ़ गई हैं। दक्षिण चीन सागर का इलाका हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन, ताइवान, विएतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई और फिलीपींस से घिरा हुआ है। यहां आसियान के कई देशों के साथ चीन विवाद चलता रहता है। अभी तक चीन पर आर्थिक निर्भरता के चलते अधिकांश देश चीन को चुनौती देने में नाकाम रहे हैं। अब क्वाड के बाद कई देश खुलकर चीन का विरोध करने लगे हैं, और यह भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए सकारात्मक संदेश है।

भारत-अमेरिका के मध्य रक्षा समझौते:

  • भारत की रक्षा आयात नीति: 2017 में भारत अपने कुल हथियार आयात का 62 फीसद रूस से खरीदता था, जो 2022 तक घटकर 45 फीसद हो गया है।
  • हथियार खरीदने के मामले में भारत का ध्यान रूस से हटकर धीरे-धीरे अमेरिका और फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों की तरफ केंद्रित हो रहा है।
  • भारत, चीन और पाकिस्तान से लगी सीमा पर निगरानी बढ़ाने के लिए अमेरिका से तीन अरब डालर का हथियारबंद ड्रोन खरीद रहा है।
  • इसके अलावा अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक भारत की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स के साथ मिलकर लड़ाकू जेट का इंजन बनाएगी।
  • भारत और अमेरिका में समझौता हुआ है कि दोनों देश जटिल तकनीकों को सुरक्षित रखेंगे और आपस में बांटेंगे। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत में निर्मित स्वदेशी विमान तेजस के लिए दूसरी पीढ़ी के जीई-414 जेट इंजन के निर्माण, हल्की होवित्जर तोपों को अद्यतन करने और स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहनों का साझा उत्पादन करने पर सहमति जताई है, जिनमें से ज्यादातर का उत्पादन भारत में किए जाने की संभावना है।
  • तकनीक हस्तांतरण को लेकर अमेरिकी नीति बहुत कड़ी रही है, लेकिन भारत को लेकर अब उसका लचीला रुख अमेरिकी सामरिक हितों को प्रतिबिंबित करता है। ऐसा लगता है कि अमेरिका चीन से निपटने के लिए भारत की सेनाओं के अत्याधुनिकीकरण पर ध्यान दे रहा है, जिससे भारत की रूस पर हथियारों को लेकर निर्भरता कम की जा सके।

निष्कर्ष:

  • जिस प्रकार अमेरिका ने रूस को घेरने के लिए नाटो का विस्तार कर रूस के पड़ोसी देशों के साथ सुरक्षा संधि की थी, उसी तर्ज पर अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर चीन को घेरने की नीति पर काम कर रहा है। भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका लगातार एशिया प्रशांत के समुद्र में अपनी शक्ति बढ़ा रहे हैं, अमेरिका के नेतृत्व में क्वाड की रणनीति पर काम चल रहा है। न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और विएतनाम को जोड़कर इसे ‘क्वाड प्लस’ नाम दिया गया है।

स्रोत-जनसत्ता                    ------------------------------------