अर्बन माइनिंग से ऊर्जा खनिजों की प्राप्ति

अर्बन माइनिंग से ऊर्जा खनिजों की प्राप्ति

मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1

ऊर्जा खनिज एवं संसाधन

भूमिका:

  • किसी जमाने में सिर्फ सोना, चांदी, अल्युमीनियम, तांबा ही सबसे अहम धातु मानी जाती थीं। अब बैटरी खनिज और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व तरक्की के नए र्इंधन हैं। इलेक्ट्रानिक उपकरणों में लगे सेमीकंडक्टर, लिथियम आयन बैटरी, सौर प्लेट, वायु टर्बाइन, हाइड्रोजन कार लगभग हर उपकरण ऊर्जा खनिज पर टिके हैं।
  • दुनियाभर में जिस तरह पर्यावरण अनूकुल विकास को वरीयता दी जा रही है, ऐसे में ऊर्जा खनिज में आत्मनिर्भरता के बिना टिकाऊ विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है।

ऊर्जा खनिज:

  • ऐसे खनिज जिनके उपयोग से ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा खनिज कहा जाता है।
  • कोबाल्ट , लिथियम कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, थोरियम, बेरिलियम, इल्मेनाइट, ग्रेफाइट आदि ऊर्जा खनिज के उदहारण हैं।
  • वर्तमान में ऊर्जा खनिज दो वर्गों में बंटे हैं। पहला, बैटरी खनिज जिसमें लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और ग्रेफाइट शामिल हैं। दूसरा, सत्रह दुर्लभ पृथ्वी तत्व, जिसमें नियोडिमियम, प्रजोडिमियम, डिस्प्रोसियम आदि शामिल हैं।

ऊर्जा खनिज के मामले में भारत की स्थिति:

  • वर्तमान में भारत अपनी कुल जरूरत का 96 फीसद लिथियम आयात करना पड़ता है। लेकिन कुछ समय पहले जम्मू के रियासी जिले में लिथियम के 59 लाख टन विशाल भंडार होने के सबूत मिले हैं।
  • कर्नाटक के मंड्या जिले में 1600 टन लिथियम भंडार की पुष्टि हो चुकी है। अगर इन खनन परियोजनाओं का पूरी तरह दोहन करने में सफलता मिली तो भारत लिथियम निर्यातक देशों की श्रेणी में आ जाएगा। लिथियम आयन बैटरी के एक मुख्य घटक कोबाल्ट का भारत में उत्पादन लगभग नगण्य है।
  • 2021 में दो अरब 50 करोड़ से अधिक का कोबाल्ट का निर्यात किया गया। भारत कांगो और आस्ट्रेलिया में कोबाल्ट के उत्खनन की नीति पर काम कर रहा है।
  • गैस टर्बाइन और राकेट इंजन, लिथियम आयन बैटरी, स्टेनलेस स्टील, विभिन्न प्रकार की मेटल और विद्युत चुंबकीय परत में इस्तेमाल होने वाले निकेल का भारत में उत्पादन अभी नाममात्र का है।
  • सिर्फ ओड़ीशा के पास देश में पाए जाने वाले निकेल का 93 फीसद रिजर्व है।
  • झारखंड के जादुगोड़ा, क्योंझर, पूर्वी सिंहभूम और नगालैंड के किफेरे में तीन प्रतिशत निकेल पाया जाता है।
  • उर्जा खनिज का दूसरा वर्ग 17 दुर्लभ पृथ्वी तत्व का है। इसके वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी भले ही एक प्रतिशत है, लेकिन यहां पांचवां सबसे बड़ा रिजर्व है।

अर्बन माइंस के बारे में:

  • अर्बन माइनिंग से तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है, जिसके अंतर्गत इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के कचरे से खनिज और धातुएं निकाली जाती हैं। अर्बन माइनिंग में ई-कबाड़(कचरा) का ढेर दुर्लभ खनिज का स्रोत साबित होता है।
  • जापान के तोहुकू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिडियो नांज्यो ने पहली बार 1980 में शहरी खनन शब्द का प्रयोग किया था।
  • अर्बन माइनिंग (शहरी खनन) की यह व्यवस्था किसी सामान के दोबारा उपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देती है।

अर्बन माइनिंग का महत्व:

  • पिछले कुछ सालों में ऊर्जा खनिज के मामले में चीन ने अपनी रणनीति और ‘उन्नत रिफाइनिंग तकनीक’ के दम पर शहरी खनन का बड़ा बुनियादी ढांचा खड़ा कर चुका है। चीन इसके माध्यम से पुराने इलेक्ट्रानिक उपकरणों और वस्तुओं से बैटरी खनिज प्राप्त कर रहा है। अकेले बैटरी मिनरल की वैश्विक आपूर्ति शृंखला में चीन की 75 फीसदी हिस्सेदारी के पीछे शहरी खनन की बड़ी भूमिका है।
  • मध्य अमेरिकी देश कोस्टारिका के पास लिथियम के कोई भंडार नहीं है, लेकिन वह शहरी खनन से इतना लिथियम हासिल करने में सक्षम हो गया है, जिसकी बदौलत यह निर्यातक बन चुका है। इसी तरह जापान आटोमोबाइल अवयवों से विभिन्न धातुएं हासिल करने में अव्वल है। शहरी खनन की क्षमता को देखते हुए जी-7 देशों ने खनिज सुरक्षा साझेदारी की है। कनाडा की पहल पर ‘सतत क्रिटिकल मिनरल समझौता’ और यूरोपीय यूनियन ने ‘क्रिटिकल ला मटेरियल क्लब’ स्थापित किया गया है।

ई-कचरा:

  • वैश्विक ई-कचरा निगरानी या ग्लोबल ई-वेस्ट मानिटर 2017 के अनुसार, भारत सालाना लगभग दो मिलियन टन ई-कचरा पैदा करता है।
  • अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद भारत ई-कचरे का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक है। 2016-17 में भारत कुल ई-कबाड़ का सिर्फ 0.036 मीट्रिक टन ही निपटान कर पाया।
  • 2018 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, शहरी ई-कचरे से 6 हजार 900 करोड़ रुपए का सोना हासिल किया जा सकता है।
  • लिथियम, कोबाल्ट, तांबा, अल्युमिनियम, सिल्वर और पैलेडियम जैसी महंगी धातुओं के लिए इलेक्ट्रानिक कबाड़ अच्छा स्रोत है।
  • अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी के अनुसार, एक मीट्रिक टन मोबाइल से 300 ग्राम सोना निकाल सकते हैं। परंपरागत खनन में सोने के अयस्क से प्रति टन महज दो या तीन ग्राम सोना ही मिलता है।

भारत में ऊर्जा खनिज से जुड़ी चुनौतियां:

  • भारत के सामने निकेल निस्कर्षण से जुड़ी तकनीक का अभाव एक बड़ी चुनौती है।
  • भारत के पास उच्च गुणवत्ता के ग्रेफाइट रिजर्व कम हैं। वर्तमान में यह लगभग 35 हजार किलो टन है। जबकि मांग छह गुना अधिक होने से निर्यात पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • ऊर्जा खनिज की आत्मनिर्भरता अब सिर्फ परंपरागत खनन से उत्पादन क्षमता हासिल करने तक केंद्रित नहीं है। ऐसे देश जिनके पास प्राकृतिक रूप से ऊर्जा खनिज उपलब्ध नहीं हैं, वे देश भी इन बेशकीमती खनिज में आत्मनिर्भर हो रहे हैं। इसके पीछे शहरी खनन (अर्बन माइनिंग) एक मजबूत व्यवस्था के रूप में उभरी है।
  • सन 2015 में आयोजित पेरिस समझौते के अनुसार, अगले बीस साल में धरती के नीचे छिपे खनिजों की मांग चार गुना अधिक होगी। ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए तांबा और ई-वाहनों में लीथियम, सोलर पैनल में सिलिकान और विंड टर्बाइन के लिए जिंक की मांग पूरी करना बड़ी चुनौती है।
  • लिथियम आयन बैटरी स्मार्ट फोन से लेकर इलेक्ट्रिक कारों को ताकत प्रदान करता है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी का कहना है कि इलेक्ट्रिक कार में सीएनजी कार के मुकाबले छह गुना अधिक खनिज खर्च होता है। इसी तरह ‘आफशोर विंड टर्बाइन’ में गैस आधारित बिजली संयंत्र के मुकाबले नौ गुना खनिज लगते हैं।

आगे की राह:

बैटरी कचरा प्रबंधन नियम 2022

  • शहरी खनन को बढ़ावा देने के लिए यह नियम पिछले साल पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लागू किया गया था, लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन हेतु कुछ अहम कदम उठाने की आवश्यकता होगी ।
  • पहला, ई-कचरा एकत्र करने की व्यवस्था सुगम एवं मजबूत होनी चाहिए। क्योंकि उपयोग में नहीं लाए जा रहे इलेक्ट्रानिक साजो-सामान को कहां और कैसे सौंपें, इसकी जानकारी एक सामान्य व्यक्ति को नहीं होती।
  • दूसरा, ऐसी तकनीक हासिल करनी होगी जो पुरानी वस्तुओं से महंगी धातुएं आसानी से निकाल सकें। ‘नेशनल मेट्रोलाजिकल लेबोरेट्री’ ने ऐसी तकनीक का आविष्कार किया है, जिससे लिथियम आयन बैटरी से 95 फीसद शुद्ध कोबाल्ट प्राप्त किया जाता है। ऐसी तकनीक अन्य ऊर्जा खनिजों के पुनर्चक्रण के लिए विकसित करनी होगी।
  • तीसरा, जरूरी नहीं पुरानी वस्तुओं से हासिल धातुओं की गुणवत्ता पहले जैसी हो। ऐसे में इन खनिज और धातुओं को दोबारा कैसे और कहां उपयोग में लाया जाए, इसके विकल्प तैयार करने होंगे।
  • चौथा, उत्पाद से लेकर परियोजनाओं को कुछ इस तरह तैयार किया जाए कि उसमें इस्तेमाल खनिज और महंगे तत्त्व को फिर से हासिल करना आसान हो।
  • पांचवां, विनिर्माण क्षेत्र से लेकर हर उस क्षेत्र को शहरी खनन के दायरे में लाया जाए, जहां कचरे से संसाधन सृजन के मौके हैं। मसलन, भवन निर्मांण से स्टील, वाहन उद्योग से मैग्नीज, निकेल और क्रोमियम जैसे दुर्लभ खनिज दोबारा हासिल किए जा सकते हैं। इसके लिए शहरी खनन कंपनियां खड़ी करनी होगी।
  • छठा, भारत अभी 14 अरब रुपए दुर्लभ और बैटरी खनिज के उत्खनन में खर्च करता है, जबकि अमेरिका, आस्ट्रेलिया और कनाडा लगभग 82 अरब रुपए खर्च करते हैं। ऊर्जा खनिजों के शहरी खनन पर केंद्रित वित्तीय संस्थान स्थापित किए जा सकते हैं।
  • फिक्की की रिपोर्ट के अनुसार, भारत बैटरी और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व की अपनी क्षमता का 10 फीसद उत्खनन कर पाया है। भारत को ऊर्जा खनिज के बड़े उत्पादकों के साथ निवेश और तकनीक हस्तांतरण परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाना होगा। ठीक वैसे ही, जैसे रूस की सखालिन तेल परियोजना में भारत ने निवेश कर सफलता अर्जित की है।
  • खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड उपक्रम की स्थापना और उसे मिल रही सफलताएं इस दिशा में बड़ा कदम है। शहरी खनन के महत्त्व को देखते हुए भारत को इससे जुड़ी तकनीक में आत्मनिर्भर होने के साथ घरेलू स्तर पर उत्खनन को भी बढ़ावा देना होगा।

स्रोत- जनसत्ता

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  1. ऊर्जा खनिजों के मामले में भारत की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
  2.  ई-कचरा से खनिज धातुओं के प्राप्ति में अर्बन माइनिंग के महत्व को लिखिए।