अपशिष्ट निस्तारण: कुप्रबंधन और जोख़िम

 

अपशिष्ट निस्तारण: कुप्रबंधन और जोख़िम

(Waste Disposal: Mismanagement and Risks)

GS-3: पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

09 जनवरी, 2024

सन्दर्भ(Context):

हमारे देश में मानव अपशिष्ट की सफाई एक गंभीर समस्या है। वर्तमान में अपशिष्ट कुप्रबंधन (Waste Mismanagement) से हजारों की संख्या में सफाईकर्मी या तो मर जाते हैं या विकलांगता की स्थिति में जीते हैं। कानूनी निर्देशों का उल्लंघन करते हुए सीवर सफाईकर्मियों को जोख़िम (Risks) में जान डालने के लिए बाध्य किया जाता है। अपशिष्ट कुप्रबंधन से न केवल जान का जोख़िम बढ़ा है बल्कि इससे हमारा संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) प्रभावित हो रहा है।

अपशिष्ट (Waste):

अपशिष्ट से अभिप्राय शेष बचे हुए ‘अवांछित(Unwanted)’ और ‘अनुपयोगी पदार्थ (unusable substance)’ से होता है।

अपशिष्ट ठोस, तरल या गैसीय हो सकता है और प्रत्येक प्रकार के निपटान और प्रबंधन के अलग-अलग तरीके होते हैं। अपशिष्ट प्रबंधन औद्योगिक, जैविक, घरेलू, नगरपालिका, जैविक, बायोमेडिकल , रेडियोधर्मी कचरे सहित सभी प्रकार के कचरे से संबंधित है।

बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट (Biodegradable Waste): कोई भी कार्बनिक द्रव्य जिसे मिट्टी में जीवों द्वारा कार्बन-डाइऑक्साइड, पानी और मीथेन में संश्लेषित किया जा सकता है।

नॉनबायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट (Non-biodegradable Waste): कोई कार्बनिक द्रव्य जिसे कार्बन-डाइऑक्साइड, पानी और मीथेन में संश्लेषित नहीं किया जा सकता।

अपशिष्ट प्रबंधन (Waste management):

अपशिष्ट प्रबंधन या अपशिष्ट निपटान में कचरे को उसके आरंभ से लेकर अंतिम निपटान तक प्रबंधित करने के लिए आवश्यक प्रक्रियाएं और क्रियाएं शामिल हैं। इसमें अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया और अपशिष्ट-संबंधी कानूनों, प्रौद्योगिकियों और आर्थिक तंत्र की निगरानी और विनियमन के साथ-साथ कचरे का संग्रह, परिवहन, उपचार और निपटान शामिल है।

कानूनी प्रावधान (Legal Provisions):

वर्ष 2013 में एक कानून के जरिए हाथ से मैला उठाने को प्रतिबंधित करने के बावजूद यह आज भी जारी है।

  • इस कानून का उल्लंघन करने पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दो साल की सजा का प्रावधान है। कानूनी निर्देश हैं कोई भी व्यक्ति, प्राधिकरण या एजेंसी 'हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन और शुष्क शौचालय निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम (Construction of Dry Latrines (Prohibition) Act)1993 के तहत ऐसा काम नहीं करा सकती है। फिर भी हजारों लोग सफाई के लिए आज भी सीवर, सेप्टिक टैंक में उतरने को विवश होते हैं। कानूनी निर्देशों के बावजूद सफाई एजेंसियां ऐसे कर्मचारियों को मारक, दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण तक देने से प्रायः बचती हैं। सफाई के लिए मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद कर्मियों को टैंकों में उतार दिया जाता है। हैरानी है कि सीवर सफाई करने वालों का कोई विश्वसनीय आंकड़ा तक उपलब्ध नहीं है।

अपशिष्ट कुप्रबंधन का प्रभाव (Impact of waste mismanagement):

  • मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव (Impact on human health and environment): एक सर्वेक्षण के मुताबिक, विश्व में 7.8 अरब लोगों का अपशिष्ट मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
  • अपशिष्ट जल हर साल तटीय जल में लगभग 62 लाख टन नाइट्रोजन और दवा अपशिष्ट से लेकर माइक्रोप्लास्टिक्स तक अज्ञात मात्रा में अन्य प्रदूषक भी शामिल करता है।
  • समाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय के अनुसार, बीते पांच वर्षों में सीवर साफ करते हुए 308 कर्मचारियों की जान चली गई। ऐसी सर्वाधिक मौत तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में हुई हैं।
  • जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव (Impact on climate change): इसका जलवायु परिवर्तन पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। मौजूदा हालात ये हैं कि पूरे विश्व में लगभग दस में से छह लोगों की उचित स्वच्छता तक पहुंच नहीं है। ऐसी सेवाओं के बिना, लोग हानिकारक बैक्टीरिया और बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

आगे की राह (Way forward):

  • आधुनिक तकनीक का उपयोग (Use of modern technology): गहरे सेप्टिक टैंकों और सीवरों को साफ करने में मौजूदा उपग्रह प्रक्षेपण की तकनीक और स्वचालित मशीनों  का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • उल्लेखनीय है कि हैदराबाद महानगर जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड की जेटिंग मशीनों, बंदीकूट की लांचिंग, तिरुवनंतपुरम के इंजीनियरों द्वारा निर्मित रोबोटिक मशीनों, हैदराबाद के वैज्ञानिकों के सीवर क्राक आदि को अब तक किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिल सका है।
  • मुआवजा (Compensation): सीवर की सफाई के दौरान मारे गए सभी लोगों के परिजनों को तीस लाख रुपए और स्थायी विकलांगता के शिकार व्यक्तियों को न्यूनतम बीस लाख रूपए मुआवजा दिया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग(एनसीएसके) के मुताबिक़, वर्ष 1993 से 31 मार्च 2023 के बीच ऐसे 1,081 मृतक आश्रितों में से सिर्फ 925 को मुआवजे मिले हैं।
  • अक्तूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी करते हुए कहा था कि सीवर की सफाई के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों को तीस लाख रुपए और स्थायी विकलांगता के शिकार व्यक्तियों को न्यूनतम बीस लाख रूपए मुआवजा देना होगा।
  • अगर कोई सफाईकर्मी किसी अन्य तरह की विकलांगता से पीड़ित होता है तो उसे दस लाख रूपए का मुआवजा देना पड़ेगा।
  • हाथ से मैला उठाने की प्रथा को सख्ती से प्रतिबंधित करना (Strictly banning the practice of manual scavenging): हाथ से मैला उठाने की प्रथा कानूनन खत्म हो चुकी है, लेकिन 2013 और 2018 के दो सर्वेक्षणों के मुताबिक 58,098 लोग आज भी इस अमानवीय पेशे में इस्तेमाल हो रहे हैं।
  • सजा का प्रावधान (Provision for punishment): सफाईकर्मियों की मौत के लिए जिम्मेदार आरोपियों के खिलाफ सजा का प्रावधान होना चाहिए क्योंकि अनेक एफआइआर दर्ज होने के बाद किसी एक को भी आज तक सजा नहीं हुई है।
  • सीवर-नियमों का सख्ती से पालन हो (Sewer rules should be strictly followed): देश भर में नियमित और ठेके के आधार पर कुल कितने सफाईकर्मी काम कर रहे हैं, इसका संपूर्ण डेटा राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (National Sanitation Workers Commission) के पास उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए है ताकि आयोग निगरानी और नियंत्रण कर सके।
  • विषम परिस्थति में सीवर के अंदर उतरने के लिए सताईस तरह के नियमों का पालन करना होता है, लेकिन इन नियमों का खुला उत्लंघन किया जाता है।
  • आवश्यक सुविधाएं दी जानी चाहिए (Necessary facilities should be provided): सीवर सफाईकर्मियों को आवश्यक सुविधाएं- आक्सीजन सिलेंडर, मास्क, विशेष सूट दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें सांस और चर्म रोग जैसी बीमारियों के जोख़िम से बचाया जा सके।
  • आवश्यक सुविधाओं के अभाव में देश में रोजाना 'मैनहोल' में दो- तीन कर्मियों की मौत हो जाती है।
  • शहरों का नवीनीकरण (Renovation of cities): भविष्य की मुश्किलों के समाधान के लिए भारत के शहरों को नए सिरे से डिजाइन करने की आवश्यकता है, ताकि टिकाऊ जल और अपशिष्ट जल प्रबंधन हो सके।
  • योजनाकारों और विशेषज्ञों के अनुसार शहरी क्षेत्रों की पुनर्कल्पना के लिए प्रकृति-आधारित समाधान कहीं अधिक सुलभ और किफायती विकल्प हो सकता है।
  • अपशिष्ट जल प्रदूषण से निपटने के लिए विकेंद्रीकृत प्रणालियां आवश्यक है (Decentralized systems are necessary to deal with waste water pollution): पारंपरिक प्रणालियों, यानी अपशिष्ट जल उपचार के साथ समस्या यह है कि वे आमतौर पर बहुत महंगी, अत्यधिक केंद्रीकृत और बदलते शहरी विकास परिपाटी से निपटने में असमर्थ साबित हो रही हैं।
  • चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने और जैव विविधता से लाभान्वित होने के लिए हरित बुनियादी ढांचा, निर्मित आर्द्रभूमियों, पड़ोस के हरे स्थानों, वर्षा उद्यानों, छत के बगीचों आदि के माध्यम से शहरी नियोजन और डिजाइन में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। साथ ही, बारिश के कुंडों के साथ-साथ तूफानी जल प्रवाह को अवशोषित करने, संग्रहीत करने और पुनः उपयोग करने के लिए पारगम्य फुटपाथ भी नए प्रयोगों में शामिल हो सकते हैं।
  • अनुपचारित अपशिष्ट जल का समाधान (Resolving untreated waste water): समुद्र तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण हेतु अनुपचारित अपशिष्ट जल के प्रवाह को समुद्र में जाने से रोका जाना चाहिए।
  • एक अनुमान है कि पचासी फीसद अपशिष्ट जल अनुपचारित समुद्र में बह जाता है। ऐसे में इस दिशा में प्रशिक्षण और जागरूकता बढ़ाना, योजना और डिजाइन में सुधार करना, वैज्ञानिक विश्लेषण और निगरानी में अधिक संसाधनों का निवेश करना, कानूनी और नियामक कार्यों को बढ़ाना और जल स्वास्थ्य के लिए समर्पित वित्त पोषण विकसित करना आवश्यक होगा।
  • प्रदूषण की समस्या का समाधान (Resolving pollution problem): प्रदूषण की समस्या से स्थायी रूप से निपटने के लिए सारे कचरे का पुनर्चक्रण, पुनः उपयोग करना और इसे एक मूल्यवान संसाधन में बदला जाना चाहिए।
  • मसलन, नाइट्रोजन और फास्फोरस मानव अपशिष्ट में निहित प्रमुख तत्त्व हैं। प्रतिवर्ष उत्पादित मानव मल की मात्रा, जो अब अक्सर जलीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रदूषित कर रही है, सिंथेटिक उर्वरकों के रूप में कृषि भूमि को उर्वर बनाने के लिए वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले पच्चीस फीसद नाइट्रोजन और पर्याप्त पानी के साथ पंद्रह फीसद फास्फोरस को प्रतिस्थापित कर सकती है।
  • अमेरिका में एक स्टार्टअप ने न केवल नाइट्रोजन और फास्फोरस को हटाने, बल्कि अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग लायक बनाने के लिए एक प्रणाली विकसित की है। उसके माध्यम से अब नाइट्रोजन और फास्फोरस को पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल रखा जा सकता है। हालांकि यह प्रणाली सभी नाइट्रोजन और फास्फोरस को हटा नहीं सकती, लेकिन इसे निम्न स्तर तक कम कर सकती है।

स्रोत: जनसत्ता

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

अपशिष्ट कुप्रबंधन का मानव जोखिमों में वृद्धि के साथ पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है? अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उचित समाधानों पर चर्चा करें।