अनुच्छेद 361 और राज्यपाल की भूमिका

 

अनुच्छेद 361 और राज्यपाल की भूमिका

GS-2: भारतीय संविधान

(IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

राज्यपाल की भूमिका, भाग 19, अनुच्छेद 361, अनुच्छेद 61, रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006) ।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

अनुच्छेद 361 से संबंधित प्रमुख प्रावधान, भारत में राज्यपाल की भूमिका से संबंधित विवाद, आगे की राह।

स्रोत: IE

04/05/2024

न्यूज़ में क्यों:

हाल ही में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत के बीच भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361 चर्चा में है।

अनुच्छेद 361 के बारे में:

  • इस अनुच्छेद  का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 19 में है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति, राज्यपाल, और राजप्रमुखों को उनके पद के दौरान अदालती कार्यवाही से विशेष संरक्षण प्रदान करता है।
  • किसी राज्य के राज्यपाल, राष्ट्रपति या राजप्रमुख अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्तब्यों के  प्रयोग और प्रदर्शन में उसके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तर दायी नहीं होंगे।
  • अनुच्छेद 361 यह स्पष्ट करता है कि अनुच्छेद 61 के अधीन अरोप के अन्वेषण के लिए संसद्‌ के किसी सदन द्वारा नियुक्त या अभिहित किसी न्यायालय, अभिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण का पुनर्विलोकन किया जा सकेगा। परन्तु यह और कि इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के विरूद्ध समुचित कार्यवाहियां चलाने के किसी व्यक्ति के अधिकार को निर्बधित करती है।
  • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के विरूद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दांडिक कार्यवाही सस्थित नहीं की जायेगी या चालू नहीं रखी जायेगी।
  • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी न्यायालय में कोई आदेशिका निकाली नहीं जायेगी।
  • एक राज्यपाल या राष्ट्रपति के विरुद्ध अपनी व्यक्तिगत क्षमता में किए गए कार्यों पर दीवानी कार्यवाही केवल 2 महीने की पूर्व सूचना के साथ ही की जा सकती है।

इस अनुच्छेद की विशेषताएं:

उत्तरदायित्व से छूट:

  • राष्ट्रपति, राज्यपालों और राजप्रमुखों को उनके पद के कर्तव्यों और शक्तियों के प्रयोग के दौरान न्यायालय में उत्तरदायी नहीं माना जाता है। यह उन्हें उनके कार्यों में एक स्तर का संरक्षण प्रदान करता है।

आरोप अन्वेषण:

  • हालांकि, अनुच्छेद 61 के तहत, संसद के किसी सदन द्वारा नियुक्त न्यायालय, अभिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण का पुनर्विलोकन किया जा सकता है।

सरकार के विरुद्ध कार्यवाहियां:

  • यह नियम यह नहीं दर्शाता कि यह सरकार के विरुद्ध कार्यवाही चलाने के किसी व्यक्ति के अधिकार को प्रतिबंधित करता है।

आपराधिक कार्यवाही पर रोक:

  • राष्ट्रपति या राज्यपाल के पदावधि के दौरान उनके विरुद्ध किसी भी नागरिक कार्यवाही की शुरू नहीं की जा सकती या जारी नहीं रखी जा सकती।  यह विशेषाधिकार इन्हें अदालती अभियानों से बचाता है, जिससे वे अपनी जिम्मेदारियों को निर्भयता से निभा सकें।

गिरफ्तारी और कारावास से सुरक्षा:

  • उनकी पदावधि के दौरान, न्यायालय द्वारा उनके गिरफ्तारी या कारावास के लिए कोई आदेशिका जारी नहीं की जा सकती। यह विशेषाधिकार इन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है।

संबंधित सुप्रीम कोर्ट का फैसला

रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006):

  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 'व्यक्तिगत दुर्भावना के तौर पर लगाए गए आरोप के सन्दर्भ में राज्यपाल को राहत प्रदान की गयी है।
  • सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अनुच्छेद 361 की व्याख्या कानूनी जांच का विषय है।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि अनुच्छेद 361 के तहत प्रदान की गई छूट पूर्ण नहीं है।
  • किसी आरोप की जांच के लिए संसद के किसी भी सदन द्वारा नियुक्त या नामित किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण की समीक्षा की जा सकती है।

भारत में राज्यपाल की भूमिका:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 तक राज्यपाल की भूमिका का वर्णन किया गया है।
  • लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के संचालन में राज्यपाल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • राज्य में राज्यपाल की भूमिका लगभग देश के राष्ट्रपति के सामान ही होती है।
  • राज्यपाल राज्य का औपचारिक प्रमुख होता है और राज्य की सभी कार्यवाहियाँ उसी के नाम पर की जाती हैं।
  • प्रत्येक राज्य का राज्यपाल देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है एवं यह राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह से कार्य करता है।
  • गौरतलब है कि राज्यपाल की भूमिका पिछले पाँच दशकों से सबसे विवादास्पद रही है।
  • राज्यपाल पद संबंधी विवाद
  • यौनशोषण के आरोप
  • पक्षपात करने का आरोप
  • आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप
  • विवेकाधीन शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप

आगे की राह:

  • राज्यपालों की नियुक्ति और उनके कार्यकाल से संबंधित प्रावधानों में कई सुधार किए जाने चाहिए।
  • वर्ष 1970 में नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार से संबंधित गठित राजमन्नार समिति की सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए।
  • राज्यपालों द्वारा लिये गए निर्णयों और उनके विरुद्ध आरोपों  को न्यायिक जाँच के अधीन लाया जाना चाहिए  जिसमें उस निर्णय तक पहुँचने के लिये प्रयोग किये गए स्रोत भी शामिल हों।
  • राज्यपाल के कार्यालय से जुड़ी शक्तियाँ और विशेषाधिकार जवाबदेही तथा पारदर्शिता के साथ संलग्न होने चाहिए।
  • राज्यपाल को अपने दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन करने में सक्षम बनाने के लिये राज्य सरकारों, केंद्र सरकार, संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित एक 'सहमत आचार संहिता' विकसित की जानी चाहिए।
  • राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए और मुख्यमंत्री की नियुक्ति को लेकर उचित दिशा-निर्देश होने चाहिए।

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मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न

अनुच्छेद 361 के आलोक में राज्यपाल की भूमिका से संबंधित विवादों के निपटान में आगे की राह का उल्लेख कीजिए।