28.11.2023
राज्यपाल
प्रारंभिक परीक्षा के लिए: प्राज्यपाल के बारे में, पृष्ठभूमि, सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय, संवैधानिक प्रावधान राज्यपाल का कार्यकाल, राज्य विधेयकों से संबंधित राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियां, भारतीय संविधान में राज्यपाल से संबंधित अनुच्छेद,
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खबरों में क्यों ?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि विधायिका द्वारा प्रस्तावित क़ानून केवल इसलिए समाप्त नहीं हो जाता, कि राज्यपाल उस पर सहमति देने से इनकार कर देते हैं।
महत्वपूर्ण बिन्दु:
- मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने तीन न्यायाधीशों की पीठ के लिए फैसला लिखते हुए कहा कि राज्य विधानसभा द्वारा प्रस्तावित कानून केवल इसलिए समाप्त नहीं हो जाता, क्योंकि राज्यपाल उस पर सहमति देने के लिए हस्ताक्षर करने से इनकार कर देते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 200 का मूल भाग राज्यपाल को विधेयक प्रस्तुत करते समय तीन विकल्प प्रदान करता है – प्रस्तावित कानून पर सहमति, सहमति रोकना या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करना।
- मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबित रखना संसदीय व्यवस्था में संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के उलट है।
पृष्टभूमि:
- पंजाब सरकार ने राज्यपाल पर विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर किया था।
- पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित का कहना था कि जून महीने में बुलाया गया सत्र असंवैधानिक है, इसलिए उस सत्र में किया गया काम भी असंवैधानिक है।
- इसपर पंजाब सरकार ने तर्क दिया कि बजट सत्र का सत्रावसान नहीं हुआ है, इसलिए सरकार जब चाहे फिर से सत्र बुला सकती है।
- पंजाब सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 'बेशक राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को रोक सकते हैं लेकिन इसका सही तरीका ये है कि वह विधेयक को फिर से पुनर्विचार के लिए विधानसभा को भेजें।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संघवाद और लोकतंत्र बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं और दोनों को अलग नहीं किया जा सकता अगर एक तत्व कमजोर होगा तो दूसरा भी खतरे में आएगा।
- नागरिकों की आकांक्षाओं और मौलिक आजादी को हकीकत बनाने के लिए इन दोनों का समन्वय के साथ काम करना जरूरी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को निर्देश दिया कि वह विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर जल्द फैसला लें।
- साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार के जून के विधानसभा सत्र को संवैधानिक करार दिया है।
राज्यपाल के बारे में :
- राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल (गवर्नर) होता है, जो मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है।
- कुछ मामलों में राज्यपाल को विवेकाधिकार दिया गया है, ऐसे मामले में वह मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना भी कार्य करता है।
- राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं।
- इनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की होती है।
- केन्द्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं।
- 7वे संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यो के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है।
संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के अनुच्छेद 153 में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा।
- संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के तहत, एक राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और वह " राष्ट्रपति की मर्जी तक" पद पर रहता है।
- राज्यपाल राज्य में केन्द्र का प्रतिनिधि होता है तथा राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर बना रहता है। वह कभी भी पद से हटाया जा सकता है।
- चूंकि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करता है, इसलिए राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त और हटाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 157 राज्यपाल की योग्यता के बारे में वर्णन करता है।
- अनुच्छेद 163 कहता है कि राज्यपाल को आम तौर पर उन कार्यों को छोड़कर, जिनमें उसके विवेक की आवश्यकता होती है, मंत्रिपरिषद द्वारा सहायता और सलाह दी जाएगी।
राज्यपाल का कार्यकाल:
- राज्यपाल की कार्य अवधि उसके पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष तक होती है, लेकिन इस पाँच वर्ष की अवधि के समापन के बाद वह तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद नहीं ग्रहण कर लेता।
- जब राज्यपाल पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद पद पर रहता है, तब वह प्रतिदिन के वेतन के आधार पर पद पर बना रहता है।
राज्य विधेयकों से संबंधित राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियाँ:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 राज्य विधायिका द्वारा अधिनियमित कानून पर सहमति देने और राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करने जैसे राज्यपाल के अन्य कार्यों के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित है ।
- अनुच्छेद 201 "विचार के लिए आरक्षित विधेयक" से संबंधित है: राज्यपालों के पास पूर्ण वीटो शक्ति, सस्पेंस वीटो शक्ति (धन विधेयक को छोड़कर) है, लेकिन कोई पॉकेट वीटो शक्ति नहीं है।
- पूर्ण वीटो: यह विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने की राज्यपाल की शक्ति को संदर्भित करता है।
- निलम्बन वीटो: निलम्बन वीटो का उपयोग राज्यपाल द्वारा तब किया जाता है जब वह किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानसभा में लौटाता है।
- यदि विधानसभा विधेयक को परिवर्तन के साथ या बिना परिवर्तन के राज्यपाल के पास भेजती है, तो उन्हें अपनी किसी भी वीटो शक्ति का उपयोग किए बिना इसे मंजूरी देनी होगी।
- धन विधेयक के संबंध में राज्यपाल अपने निलम्बित वीटो का प्रयोग नहीं कर सकते हैं
- पॉकेट वीटो: राष्ट्रपति की शक्ति, पॉकेट वीटो में विधेयक को अनिश्चित काल तक लंबित रखा जाता है।
- वह विधेयक को न तो अस्वीकार करता है और न ही समीक्षा के लिए वापस भेजता है।
भारतीय संविधान में राज्यपाल से संबधित अनुच्छेद:
- अनुच्छेद 153,अनुच्छेद 154 ,अनुच्छेद 155 ,अनुच्छेद 156 ,अनुच्छेद 157,अनुच्छेद 158,अनुच्छेद 159,अनुच्छेद 160 ,अनुच्छेद 161,अनुच्छेद 163,अनुच्छेद 164,अनुच्छेद 165,अनुच्छेद 166,अनुच्छेद 167,अनुच्छेद 168, अनुच्छेद 174, अनुच्छेद 175,अनुच्छेद 176।
- अनुच्छेद 188,अनुच्छेद 192,अनुच्छेद 200,अनुच्छेद 201,अनुच्छेद 202,अनुच्छेद 203,अनुच्छेद 205,अनुच्छेद 207,अनुच्छेद 213,अनुच्छेद 217,अनुच्छेद 219,अनुच्छेद 243 (1) ,अनुच्छेद 243(2) ,अनुच्छेद 267 (2),अनुच्छेद 316,अनुच्छेद-317 ,अनुच्छेद-333 ,अनुच्छेद – 355 एवं 356,अनुच्छेद-361।