11.07.2025
भारत में तपेदिक (टीबी) की स्थिति
प्रसंग:
लगातार प्रयासों के बावजूद तपेदिक (टीबी) भारत में एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है, जो वैश्विक टीबी मामलों का 28% हिस्सा है। भारत ने 2025 तक टीबी समाप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, लेकिन दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों का उभरना और स्वास्थ्य सेवा वितरण में खामियाँ इस लक्ष्य की राह में बाधा हैं।
समाचार से संबंधित जानकारी
- टीबी का उच्च बोझ: भारत में टीबी के मामले अभी भी अधिक हैं, हालाँकि इसमें धीरे-धीरे गिरावट आ रही है।
- दवा-प्रतिरोधी संक्रमण बढ़ रहे हैं: मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (MDR) और एक्स्टेंसिवली ड्रग-रेसिस्टेंट (XDR) टीबी से इलाज और नियंत्रण में जटिलता आती है।
- नई उपचार प्रणाली लागू: BPaL रेजीम को दवा-प्रतिरोधी टीबी के प्रबंधन के लिए अपनाया जा रहा है।
- भारत का उन्मूलन लक्ष्य: भारत ने 2025 तक टीबी समाप्त करने का लक्ष्य रखा है, जो वैश्विक लक्ष्य 2030 से पहले है।
टीबी (तपेदिक) को समझना
- तपेदिक एक बैक्टीरियल रोग है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु से होता है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यह पेट, हड्डियों, लिम्फ नोड्स, और यहां तक कि तंत्रिका तंत्र में भी फैल सकता है।
- यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है, खासकर जब संक्रमित व्यक्ति खाँसता, छींके या बोलता है, और उसके द्वारा छोड़े गए सूक्ष्म कणों को कोई अन्य व्यक्ति साँस के साथ अंदर लेता है।
टीबी के विभिन्न प्रकार
प्रकार
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स्वभाव
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संक्रामक?
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लक्षण मौजूद?
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पल्मोनरी टीबी
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फेफड़ों को प्रभावित करता है, सबसे सामान्य और अत्यधिक संक्रामक प्रकार।
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हाँ
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हाँ
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लेटेंट टीबी
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जीवाणु शरीर में निष्क्रिय रूप में रहते हैं; कोई लक्षण नहीं दिखते।
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नहीं
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नहीं
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एक्टिव टीबी
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बैक्टीरिया गुणा करते हैं; रोग प्रतिरोधक तंत्र संक्रमण को रोकने में असफल रहता है।
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हाँ
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हाँ
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सरकारी पहल
- BPaL रेजीम लागू: बे़डाक्विलिन, प्रीटोमैनिड और लाइनेज़ोलिड को मिलाकर उपचार को 24 से घटाकर 6 महीने कर दिया गया है।
- लक्षित अभियान शुरू: "टीबी हारेगा देश जीतेगा" और निश्चय ईकोसिस्टम जैसे अभियान जागरूकता और सहयोग को बढ़ाते हैं।
- पोषण सहायता: निक्षय पोषण योजना के तहत मरीजों को ₹500 प्रति माह की सहायता दी जाती है।
- नि:शुल्क जांच व दवा: राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत मरीजों को मुफ्त जांच और दवाइयाँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
- समुदाय की भागीदारी: टीबी चैंपियंस, पूर्व रोगी, और आशा कार्यकर्ता जल्द पहचान और उपचार में सहयोग करते हैं।
- वैश्विक समन्वय: WHO द्वारा 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है और वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है।
प्रमुख चुनौतियाँ
- सह-रुग्णताओं की पहचान नहीं: टीबी के साथ मधुमेह, रक्ताल्पता, शराब की लत जैसे रोग मौत का खतरा बढ़ाते हैं।
- स्वास्थ्य ढांचे की कमी: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में प्रशिक्षित स्टाफ और प्रयोगशालाओं की कमी है।
- कलंक और जागरूकता की कमी: सामाजिक भय और जानकारी के अभाव के कारण मरीज इलाज में देरी करते हैं।
- MDR/XDR टीबी का कठिन इलाज: दवा-प्रतिरोधी टीबी के लिए उपचार लंबा, महंगा और विषैला होता है, जिससे सफलता दर घटती है।
आगे की राह
- जांच तंत्र को मजबूत करें: CB-NAAT जैसी आणविक जांचों को प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बढ़ाना चाहिए।
- संवेदनशील आबादी को लक्षित करें: आदिवासी, शहरी झुग्गी और प्रवासी वर्गों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
- निजी क्षेत्र से सहयोग: निजी डॉक्टरों को NTEP से जोड़ना ताकि मानकीकृत जांच और रिपोर्टिंग सुनिश्चित हो सके।
- रोगी-केंद्रित देखभाल को बढ़ावा दें: निक्षय मित्र, टेली-कंसल्टेशन जैसे डिजिटल साधनों से उपचार में निरंतरता सुनिश्चित करें।
निष्कर्ष
भारत की टीबी से लड़ाई में प्रगति तो हुई है, लेकिन जांच, दवा-प्रतिरोध, और जनजागरूकता के क्षेत्र में अभी भी गंभीर खामियाँ हैं। केवल चिकित्सकीय नवाचार, नीति प्रतिबद्धता, और स्थानीय भागीदारी के संयुक्त प्रयास से ही भारत 2025 तक टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल कर सकता है।