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भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR)

08.07.2025

 

भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR)

 

प्रसंग:
 भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) वर्तमान में प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर 93 है (2019–21 के आंकड़ों के अनुसार), जो मातृ स्वास्थ्य परिणामों में धीरे-धीरे हो रही प्रगति को दर्शाता है।

  • WHO की परिभाषा:
     मातृ मृत्यु उस महिला की मृत्यु को कहा जाता है जो गर्भावस्था के दौरान या गर्भावस्था समाप्त होने के 42 दिनों के भीतर हो, और यह मृत्यु गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं या ऐसी स्थितियों से हो जो गर्भावस्था के कारण और अधिक गंभीर हो गई हों।
  • मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) की गणना प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या के आधार पर की जाती है, जो सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) के आंकड़ों पर आधारित होती है।

नवीनतम आंकड़े (2019–21):

  • राष्ट्रीय MMR: 93
  • केरल ने सबसे कम MMR (20) दर्ज किया, जबकि असम में सबसे अधिक (167) रहा।
  • दक्षिणी राज्य प्रदर्शन में अग्रणी हैं, जबकि ईएजी (Empowered Action Group) राज्यों में मातृ स्वास्थ्य अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
     

मातृ मृत्यु दर को कम करना क्यों महत्वपूर्ण है

  • स्वास्थ्य प्रणाली का संकेतक: MMR स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, महिलाओं के अधिकारों और शासन की दक्षता का एक महत्वपूर्ण मानक है।
  • रोकथाम योग्य हानि: अधिकांश मातृ मृत्यु समय पर देखभाल और सामान्य प्रसूति हस्तक्षेपों के माध्यम से रोकी जा सकती हैं।
  • वैश्विक लक्ष्य: सतत विकास लक्ष्य (SDG) 3.1 के तहत, देशों का उद्देश्य 2030 तक MMR को 70 से नीचे लाना है। भारत को इस मानक तक पहुँचने के लिए अपनी प्रगति को तेज करना होगा।
     

मातृ मृत्यु में योगदान देने वाली प्रमुख चुनौतियाँ

1. देखभाल में देरी – 'तीन प्रकार की देरी' मॉडल:

  • खतरे के संकेतों को पहचानने और देखभाल लेने का निर्णय लेने में देरी — जागरूकता की कमी या सामाजिक मानदंडों के कारण।
  • स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने में देरी — विशेषकर आदिवासी और दूरदराज के क्षेत्रों में।
  • अस्पतालों में उपयुक्त उपचार मिलने में देरी — विशेषज्ञों की कमी, सर्जरी की तैयारी या आवश्यक वस्तुओं जैसे रक्त की अनुपलब्धता के कारण।
     

2. बुनियादी ढांचे की कमी:

  • 5,491 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) में से केवल 2,856 पहले रेफरल इकाई (FRU) के रूप में कार्यरत हैं।
  • विशेषज्ञ डॉक्टरों के 66% से अधिक पद रिक्त हैं।
     

3. चिकित्सा और स्वास्थ्य-संबंधी जोखिम:

  • प्रमुख चिकित्सीय कारण: प्रसवोत्तर रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप विकार, लंबे या अवरुद्ध प्रसव, संक्रमण, और असुरक्षित गर्भपात।
  • एनीमिया, कुपोषण और तपेदिक या मूत्र मार्ग संक्रमण जैसे अंतर्निहित रोग — विशेषकर ईएजी राज्यों में — जोखिम को और बढ़ा देते हैं।
     

सरकारी कार्यक्रम एवं हस्तक्षेप

  • जननी सुरक्षा योजना (JSY): संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने हेतु माताओं और आशा कार्यकर्ताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): गर्भवती महिलाओं को नि:शुल्क परिवहन, जांच और प्रसव संबंधी सेवाएं प्रदान करता है।
  • FRU को सुदृढ़ करना: सरकार का लक्ष्य प्रत्येक जिले में कम से कम 4 एफआरयू को कार्यशील बनाना है, जिनमें प्रशिक्षित कर्मचारी और रक्त भंडारण की सुविधा हो।
  • मातृ मृत्यु समीक्षा (MDR): राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत, प्रत्येक मातृ मृत्यु की अनिवार्य समीक्षा की जाती है, ताकि सेवा वितरण में हुई चूक को समझा जा सके।
  • केरल मॉडल: केरल की गोपनीय मातृ मृत्यु ऑडिट प्रणाली, स्टाफ प्रशिक्षण, और आपातकालीन तैयारी (जैसे यूटेरिन बलून टैम्पोनैड, एम्बोलिज्म किट) की मदद से भारत में सबसे कम MMR बनाए रखने में मदद मिली है।
     

आगे की राह

  • ईएजी राज्यों को प्राथमिकता: विशेषज्ञों की नियुक्ति, ग्रामीण FRUs को उन्नत बनाने और समुदायों में जागरूकता बढ़ाने हेतु अधिक फंडिंग और प्रयास की आवश्यकता है।
  • आपातकालीन प्रसूति प्रतिक्रिया को मजबूत करना: रक्त बैंक, सर्जरी सुविधाएं और एम्बुलेंस की 24×7 उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।
  • फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को समर्थन: ASHA और ANM के बीच समन्वय बढ़ाकर उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं की पहचान और परामर्श को सुदृढ़ किया जा सकता है।
  • गर्भपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल सुधारना: गर्भावस्था का प्रारंभिक पंजीकरण, आयरन-फोलिक एसिड सप्लीमेंटेशन, और नियमित जोखिम स्क्रीनिंग पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • सफल मॉडलों को विस्तारित करना: केरल की गोपनीय समीक्षा पद्धति को तमिलनाडु, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में अपनाया जा सकता है।
     

निष्कर्ष:
 अधिकांश मातृ मृत्यु समय पर हस्तक्षेप और सुदृढ़ स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से रोकी जा सकती हैं। भारत को सेवाओं की पहुंच में अंतर को पाटना होगा, प्रसव के समय कुशल उपस्थिति सुनिश्चित करनी होगी, और फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना होगा। सुरक्षित प्रसव ही नहीं, बल्कि सुरक्षित मातृत्व को भारत की मातृ स्वास्थ्य नीति का मुख्य उद्देश्य बनाना होगा।

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