संसद की “विशेष जांच समिति” की भूमिका

संसद की “विशेष जांच समिति” की भूमिका

प्रीलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

आचार समिति(The ethics committee), तृणमूल कांग्रेस पार्टी, सदन की अवमानना(Contempt of the House), अनुच्छेद 101, विशेषाधिकार समिति या विशेष जांच समिति, 'कैश फॉर क्वेरी' घोटाला, राजा राम पाल बनाम माननीय अध्यक्ष (2007) मामला, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:

GS-2: आचार समिति की भूमिका, विशेषाधिकार समिति से जुड़े जांच के मामले, क्या निष्कासन संवैधानिक है

07 दिसंबर, 2023

चर्चा में क्यों:

हाल ही में, लोकसभा की आचार समिति(The ethics committee) ने तृणमूल कांग्रेस सांसद (सांसद) महुआ मोइत्रा को उनके "अनैतिक आचरण (unethical conduct)", "विशेषाधिकारों के उल्लंघन (Breach of privileges)" और "सदन की अवमानना(Contempt of the House)" के लिए लोकसभा से निष्कासित करने की सिफारिश की है।

मामला क्या है:

  • तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा पर 'कैश फॉर क्वेरी' और लॉग-इन क्रेडेंशियल साझा करने के गंभीर आरोप लगे हैं आचार समिति इन सभी गंभीर आरोपों की जांच कर रही है।

'कैश फॉर क्वेरी (Cash for query)'

  • कैश फॉर क्वेरी से अभिप्राय प्रश्न पूछने के बदले में नक़द धन लेने से है।   
  • राजनीतिक शब्दावली में संसद में सवाल पूछने के बदले में नकद लेने के मामले को कैश फॉर क्वेरी स्कैम के नाम से जाना जाता है।

‘लॉग-इन क्रेडेंशियल (Log-in Credentials)’

  • Log-in Credentials का मतलब यूजर आईडी और पासवर्ड से है।

आचार समिति की भूमिका क्या है:

  • सदस्यों के नैतिक आचरण की निगरानी करने और इसमें संदर्भित 'अनैतिक आचरण' के मामलों की जांच करने के लिए वर्ष 2000 में आचार समिति का गठन किया गया था।
  • यह समिति सदन के सदस्यों के खिलाफ अन्य सदस्यों, किसी सदस्य के माध्यम से बाहरी लोगों या अध्यक्ष द्वारा संदर्भित शिकायतों की जांच करती है।
  • यह समिति किसी शिकायत की जांच करने का निर्णय लेने से पहले प्रथम दृष्टया जांच करती है और अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है, जो इसे विचार के लिए सदन के समक्ष रखती है।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 'अनैतिक' शब्द परिभाषित नहीं है। कोई कार्य अनैतिक है या नहीं, इसका निर्णय समिति पर छोड़ दिया गया है।
  • 2007 में, एक सांसद द्वारा अपनी करीबी महिला साथी को अपनी पत्नी बताकर उसके साथ जाने को समिति ने 'अनैतिक' माना था। इसने सांसद को सदन की 30 बैठकों से निलंबित करने की सिफारिश की।

विशेषाधिकार समिति के बारे में:

  • विशेषाधिकार समिति या विशेष जांच समिति किसी सदस्य के खिलाफ अधिक गंभीर आरोपों (यानी सदन के विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों) की जांच करती है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है।
  • इसमें लोकसभा के 15 सदस्य और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल होते हैं। इसकी कार्यप्रणाली अर्द्ध न्यायिक है।
  • विशेषाधिकार समिति (लोकसभा) की वर्तमान अध्यक्ष मीनाक्षी लेखी हैं।
  • 1951 में, एक विशेष समिति ने एक सदस्य को वित्तीय लाभ के बदले में प्रश्न पूछकर व्यावसायिक हित को बढ़ावा देने का दोषी पाया था।
  • वर्ष 2005 में एक विशेष संसदीय समिति द्वारा 'कैश फॉर क्वेरी' घोटाले की जांच की थी, जहां लोकसभा के 10 सांसदों को निष्कासन की सिफारिश की गई थी।

महत्त्व:

  • यह विशेषाधिकार समितियां संसद सदस्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करती हैं और उनके द्वारा संसद में किये जाने वाले कृत्यों के बदले न्यायालयी कार्यवाहियों से रक्षा करती हैं, ताकि संसदीय प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहे।
  • साथ ही ये समितियां  संसद की गरिमा, अधिकार और सम्मान की रक्षा बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

क्या निष्कासन संवैधानिक है:

  • संविधान के अनुच्छेद 101 के तहत एक सांसद द्वारा सीट खाली करने के आधारों को सूचीबद्ध किया गया है। इस अनुच्छेद में स्वैच्छिक इस्तीफा, अयोग्यता और 60 बैठकों तक सदन से लगातार अनुपस्थिति शामिल है। संविधान में किसी भी सांसद के निष्कासन का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
  • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में परस्पर विरोधी निर्णय दिए हैं।
  • राजा राम पाल बनाम माननीय अध्यक्ष (2007) मामले में, इसने निष्कासन को एक आधार के रूप में शामिल करने के लिए अनुच्छेद 101 की व्याख्या करके विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिए अपने सदस्यों को निष्कासित करने की संसद की शक्ति को बरकरार रखा।
  • लेकिन अमरिन्दर सिंह बनाम विशेष समिति, पंजाब विधानसभा (2010) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभा द्वारा निष्कासन को असंवैधानिक ठहराया। यह माना गया कि ऐसे परिदृश्य संसदीय लोकतंत्र के उद्देश्यों को विफल कर देंगे।

आगे की राह:

  • महुआ मोइत्रा पर लगे 'कैश फॉर क्वेरी' के आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। हालाँकि, क्या ऐसी कार्रवाई के लिए निष्कासन को असंगत सज़ा के रूप में देखा जा सकता है?
  • इसके अलावा, निर्वाचन क्षेत्र के नागरिकों को अगले चुनाव या उप-चुनाव तक प्रतिनिधि के बिना छोड़ दिया जाएगा। सदन के विशेषाधिकार मध्ययुगीन ब्रिटेन में एक सत्तावादी राजा से हाउस ऑफ कॉमन्स की रक्षा के लिए विकसित हुए।
  • सदन की गरिमा और विशेषाधिकार को बरकरार रखना जरूरी है इसलिए आधुनिक लोकतंत्र में यह सुनिश्चित किया जाए कि लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व राजनीतिक कारणों से पूर्वाग्रहग्रस्त न हो।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संसदीय समिति की जाँच कार्यवाही न्यायिक मामले जितनी विस्तृत न हो और मामले का त्वरित समाधान होना चाहिए।
  • ऐसे मामलों की जाँच के लिए सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों के दुरूपयोग से बचने की आवश्यकता है।
  • ऐसे मामलों की सुनवाई 60 दिनों की समयसीमा में करने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें स्थापित करनी चाहिए।
  • ऐसे मामलों में दोष सिद्ध प्रतिनिधियों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। अन्यथा, उन्हें सदन का सदस्य बने रहना चाहिए।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

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