सर्वोच्च न्यायालय: चुनाव उम्मीदवार की निजता का अधिकार

सर्वोच्च न्यायालय: चुनाव उम्मीदवार की निजता का अधिकार

GS-2: भारतीय राजव्यवस्था  

(IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

सर्वोच्च न्यायालय, निजता का अधिकार, अनुच्छेद-21, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA)-1951 की धारा 123।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

निजता का अधिकार के बारे में, मामले से संबंधित मुख्य तथ्य, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के निहितार्थ, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 का महत्त्व, निष्कर्ष।

13/04/2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

न्यूज़ में क्यों:

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को उनके पास मौजूद प्रत्येक चल संपत्ति की घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है।

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदाता को चुनाव में उम्मीदवारों की प्रत्येक संपत्ति के बारे में जानने का पूर्ण अधिकार नहीं है और उम्मीदवार को उन मामलों में गोपनीयता का अधिकार है जो उनकी उम्मीदवारी के लिए अप्रासंगिक हैं। कोर्ट के अनुसार, उम्मीदवारों को भी मतदाताओं के समान निजता का अधिकार प्राप्त है।

मामले से संबंधित मुख्य तथ्य:

  • सर्वोच्च न्यायालय, अरुणाचल प्रदेश के एक विधायक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वर्ष 2023 के गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें 1961 के चुनाव संचालन नियमों के साथ संलग्न फॉर्म में दायर अपने हलफनामे में तीन वाहनों को अपनी संपत्ति के रूप में घोषित नहीं करने के कारण उनके चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था।
  • याचिका में कहा गया है कि चुनावी उम्मीदवार ने उक्त वाहनों के स्वामित्व की घोषणा नहीं की जिस कारण उसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 123 के तहत "भ्रष्ट आचरण" का माना गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी उम्मीदवार द्वारा उन मामलों पर अपनी गोपनीयता बनाए रखने का विकल्प जो मतदाताओं के लिये कोई चिंता का विषय नहीं थे अथवा सार्वजनिक पद हेतु उसकी उम्मीदवारी के लिए अप्रासंगिक थे, RRA, 1951 की धारा 123 के तहत "भ्रष्ट आचरण" नहीं है।
  • साथ ही इस तरह का गैर-प्रकटीकरण 1951 अधिनियम की धारा 36(4) के तहत "महत्त्वपूर्ण प्रकृति का दोष" नहीं माना जाएगा।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मतदाताओं को उस जानकारी का खुलासा करने का अधिकार है जो उस उम्मीदवार को चुनने के लिये आवश्यक है जिसके लिए वोट डाला जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के निहितार्थ:

  • प्रकटीकरण दायित्वों को स्पष्ट करना: उच्चतम न्यायालय का निर्णय चुनावी उम्मीदवारों द्वारा चल संपत्तियों की प्रकटीकरण आवश्यकताओं के संबंध में स्पष्टता प्रदान करता है। यह उम्मीदवारों पर अनावश्यक बोझ से बचते हुए पारदर्शिता की आवश्यकता को स्पष्ट करता है।
  • पारदर्शिता और गोपनीयता को संतुलित करना: इस फैसले का उद्देश्य मतदाताओं के सूचना के अधिकार एवं उम्मीदवारों के गोपनीयता के अधिकार के बीच संतुलन बनाना है। यह निष्पक्ष तथा सुविज्ञ चुनावी प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करता है।
  • चुनावी सिद्धांतों की पुनः पुष्टि करना: उच्च न्यायालय के फैसले को पलटकर एवं करिखो क्री की चुनावी जीत को मान्य करके, उच्चतम न्यायालय ने पुनः पुष्टि की कि चुनावी चुनौतियों को उम्मीदवार की योग्यता तथा चुनावी कानूनों के पालन से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आधारित होना चाहिए।

निजता का अधिकार के बारे में:

  • यह भारतीय संविधान के भाग-III के अंतर्गत एक मूल अधिकार है जो अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित है।
  • निजता का अधिकार व्यक्ति को राज्य और गैर-राज्य दोनों तत्त्वों के हस्तक्षेप से बचाता है तथा व्यक्ति को स्वायत्त जीवन विकल्प चुनने की अनुमति देता है।
  • के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में निजता के अधिकार को एक मौलिक व अविभाज्य अधिकार घोषित किया था।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

प्रावधान:

  • यह अधिनियम निर्वाचन के संचालन और निर्वाचित प्रतिनिधियों की योग्यता व अयोग्यता को नियंत्रित करता है।
  • यह संसद के विधायी सदनों की सदस्यता के लिये योग्यता और अयोग्यताएँ निर्दिष्ट करता है।
  • यह भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने का भी प्रावधान करता है।
  • यह निर्वाचन से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • 1951 के अधिनियम की धारा 36(4) में उल्लेख है कि रिटर्निंग अधिकारी किसी भी दोष के आधार पर किसी भी नामांकन पत्र को अस्वीकार नहीं करेगा जो सही चरित्र का नहीं है।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123:

भ्रष्ट आचरण:

  • अधिनियम की धारा 123 'भ्रष्ट आचरण' को परिभाषित करती है जिसमें रिश्वतखोरी, अनुचित प्रभाव, गलत जानकारी और निर्वाचन में अपनी संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिये एक उम्मीदवार द्वारा "धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाओं" को बढ़ावा देना।
  • अभिराम सिंह बनाम सी. डी. कॉमाचेन मामले (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि उम्मीदवारों को न केवल अपने धर्म के आधार पर बल्कि मतदाताओं के धर्म के आधार पर भी वोट की अपील करने से प्रतिबंधित किया गया है।

अवांछित प्रभाव

  • अधिनियम की धारा 123(2) अनुचित प्रभाव को संबोधित करती है, जिसमें उम्मीदवार, एजेंट या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप शामिल है, जो चुनावी अधिकारों के स्वतंत्र अभ्यास में बाधा डालता है।
  • इसमें नुकसान की धमकी, सामाजिक बहिष्कार, किसी जाति या समुदाय से निष्कासन या काल्पनिक परिणामों के आधार पर दबाव शामिल हो सकता है।

अयोग्यता:

  • धारा 123(4) कुछ अपराधों, भ्रष्ट आचरण, चुनावी खर्चों की घोषणा करने में विफलता, या सरकारी अनुबंधों या कार्यों में रुचि रखने के लिये एक निर्वाचित प्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करने की अनुमति देती है।
  • धारा 123(4) चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने के उद्देश्य से झूठे बयानों के जानबूझकर प्रसार को शामिल करने के लिए भ्रष्ट आचरण के दायरे को विस्तृत करती है।

इस अधिनियम का महत्त्व:

  • यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों पर रोक लगाकर भारतीय राजनीति को अपराधमुक्त बनाता है।
  • यह अधिनियम प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करने तथा चुनाव के खर्चों का लेखा-जोखा रखने के लिए बाध्य करता है।
  • यह अधिनियम सार्वजनिक धन के उपयोग में उम्मीदवार की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
  • यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या शत्रुता को बढ़ावा देने आदि जैसी भ्रष्ट प्रथाओं पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता और स्वतंत्र व निष्पक्ष आचरण सुनिश्चित करती हैं।
  • यह अधिनियम चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है क्योंकि इस अधिनियम में उल्लिखित है कि केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र होंगे जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत हैं।

निष्कर्ष:

निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। इस अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनाव उम्मीदवारों को उनके पास मौजूद प्रत्येक चल संपत्ति की घोषणा करने की बाध्यता से मुक्त करने का निर्णय दिया है। यह निर्णय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करेगा।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

संपत्ति के प्रकटीकरण के संबंध में चुनावी उम्मीदवारों की निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के निहितार्थ पर चर्चा कीजिए।