बिहार में “विशेष राज्य का दर्जा” की मांग

बिहार में “विशेष राज्य का दर्जा” की मांग

प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

विशेष श्रेणी का दर्जा (एससीएस), बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण-2022, पांचवां वित्त आयोग (एफसी), गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूला, राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी), रघुराम राजन समिति, बहु-आयामी सूचकांक।

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

विशेष श्रेणी का दर्जा क्या है, एससीएस के लाभ।

28 नवंबर,2023

ख़बरों में क्यों:

हाल ही में, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल ने बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा (Special Category Status) देने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।

  • यह मांग "बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण, 2022" के निष्कर्षों की पृष्ठभूमि में आई है, जिसमें पता चला है कि बिहार की लगभग एक-तिहाई आबादी गरीबी में जी रही है।

विशेष श्रेणी का दर्जा क्या है:

  • यह भौगोलिक या सामाजिक-आर्थिक नुकसान का सामना करने वाले राज्यों के विकास में सहायता के लिए केंद्र द्वारा दिया गया एक वर्गीकरण है।
  • विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) को 1969 में पांचवें वित्त आयोग (Finance Comission) की सिफारिश पर पेश किया गया था।
  • किसी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) देने से पहले निम्नांकित पांच कारकों पर विचार किया जाता है: (i) पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र (ii) कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा (iii) अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के साथ रणनीतिक स्थान (iv) आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन और (v) राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति
  • 1969 में, तीन राज्यों - जम्मू और कश्मीर, असम और नागालैंड - को विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) प्रदान किया गया।
  • इसके बाद, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सहित आठ और राज्यों को पूर्ववर्ती राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा एससीएस दिया गया।

एससीएस के क्या लाभ हैं:

  • एससीएस(Special Category Status) राज्यों को गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूले के आधार पर अनुदान प्राप्त होता था, जिसमें राज्यों के लिए कुल केंद्रीय सहायता का लगभग 30% एससीएस के लिए निर्धारित किया गया था।
  • हालाँकि, योजना आयोग के उन्मूलन और 14वें और 15वें एफसी की सिफारिशों के बाद, एससीएस राज्यों को यह सहायता सभी राज्यों के लिए विभाज्य पूल फंड के बढ़े हुए हस्तांतरण में शामिल कर दी गई है, जो वर्तमान में 41% है
  • 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के बाद, एससीएस राज्यों को आवंटित धनराशि 32% से बढ़कर 41% कर दी गयी थी।
  • इसके अतिरिक्त, एससीएस राज्यों में, केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए केंद्र-राज्य वित्त पोषण को 90:10 के अनुपात में विभाजित किया जाता है, जो सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिए 60:40 या 80:20 के अनुपात से कहीं अधिक अनुकूल है।
  • इसके अलावा, नए उद्योग स्थापित करने के लिए निवेश आकर्षित करने के लिए सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क, आयकर दरों और कॉर्पोरेट कर दरों में रियायत के रूप में एससीएस राज्यों को कई अन्य प्रोत्साहन उपलब्ध हैं।

बिहार एससीएस की मांग क्यों कर रहा है:

  • बिहार के लिए एससीएस की मांग राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बार-बार की जाती रही है। राज्य की गरीबी और पिछड़ेपन का कारण प्राकृतिक संसाधनों की कमी, सिंचाई के लिए पानी की निरंतर आपूर्ति, उत्तरी क्षेत्र में नियमित बाढ़ और राज्य के दक्षिणी हिस्से में गंभीर सूखा बताया जाता है।
  • इसके साथ ही, राज्य के विभाजन के कारण उद्योगों को झारखंड में स्थानांतरित कर दिया गया और रोजगार और निवेश के अवसरों की कमी पैदा हो गई। लगभग 54,000 प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के साथ, बिहार लगातार सबसे गरीब राज्यों में से एक रहा है।
  • "बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण, 2022" के अनुसार, बिहार राज्य लगभग 94 लाख गरीब परिवारों का घर है इसलिए एससीएस अनुदान से सरकार को अगले पांच वर्षों में विभिन्न कल्याण उपायों के लिए आवश्यक लगभग ₹2.5 लाख करोड़ प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

एससीएस के संदर्भ में अन्य राज्यों की मांगे क्या हैं:

  • 2014 में अपने विभाजन के बाद से, आंध्र प्रदेश ने हैदराबाद के तेलंगाना में जाने के कारण राजस्व हानि के आधार पर एससीएस अनुदान मांगा है।
  • इसके अतिरिक्त, ओडिशा भी चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं और एक बड़ी जनजातीय आबादी (लगभग 22%) के प्रति अपनी संवेदनशीलता को उजागर करते हुए एससीएस के लिए अनुरोध कर रहा है।
  • हालाँकि, केंद्र सरकार ने 14वीं एफसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए, जिसमें केंद्र को सिफारिश की थी कि किसी भी राज्य को एससीएस नहीं दिया जाएगा, बार-बार उनकी मांगों को अस्वीकार कर दिया है।

क्या बिहार की मांग जायज है:

  • यद्यपि बिहार एससीएस के अनुदान के लिए अधिकांश मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन यह पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से कठिन क्षेत्रों की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है, जिसे बुनियादी ढांचे के विकास में कठिनाई का प्राथमिक कारण माना जाता है।

निष्कर्ष:

2013 में, केंद्र सरकार द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने बिहार को "अल्प विकसित श्रेणी" में रखा था और इस समिति ने एससीएस के बजाय धन हस्तांतरित करने के लिए 'बहु-आयामी सूचकांक' पर आधारित एक नई पद्धति का सुझाव दिया था। यह पद्धति राज्य के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

विशेष श्रेणी का दर्जा क्या है? बिहार के मामले में एससीएस की प्रासंगिकता पर चर्चा करें।