पिघलते हिमनद, बढ़ते खतरे

पिघलते हिमनद, बढ़ते खतरे

GS-3: पर्यावरण संरक्षण

(IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

जलवायु परिवर्तन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), अंटार्कटिका, टाटेन हिमखंड, ग्रीनलैंड।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

अंटार्कटिका में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम, निष्कर्ष।

29/04/2024

प्रसंग:

पिछले कुछ वर्षों से दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव देखा जा रहा है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन का बड़ा संकेत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में दिखा है। बीते पचहत्तर वर्षों में यूएई में सबसे अधिक और गंभीर बारिश दर्ज की गई है। चौबीस घंटे में दस इंच से ज्यादा हुई इस बारिश ने रेगिस्तान के बड़े भू-भाग को जलाशय में बदल दिया। दुनिया का सबसे व्यस्त दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जलाशय बन गया।

  • नवीनतम शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से अंटार्कटिका से हिमनद टूट रहे हैं, तापमान बढ़ने से बर्फ भी तेजी से पिघल रही है।

अंटार्कटिका से टूटे हिमखंड के बारे में:

  • शोध के मुताबिक टाटेन नामक यह हिमखंड वर्ष 1986 में अंटार्कटिका से अलग होकर वर्तमान में समुद्री सतह पर बहने लगा है।
  • वजन: उपग्रह से लिए गए चित्रों के मुताबिक़ लगभग एक लाख करोड़ टन वजनी यह हिमखंड वर्तमान में तेज हवाओं और जल धाराओं के चलते अंटार्कटिका के उत्तरी सिरे की ओर गातिमान है।
  • क्षेत्रफल: यह हिमखंड लगभग चार हजार वर्ग किमी में फैला हुआ है, आकार में यह मुंबई के क्षेत्रफल 603 वर्ग किमी से करीब छह गुना बड़ा है। इसकी ऊंचाई 400 मीटर है। यह जिस महानगर की सीमा से टकराएगा, वहां प्रलय आ जाएगा।

आर्कटिक पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से संबंधित शोध अध्ययन:

शोध:

  • उत्तरी ध्रुव यानी आर्कटिक पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अध्ययन।
  • ये अध्ययन विशाल आकार के हिमखंडों के पिघलने, टूटने, दरारें पड़ने, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के खिसकने, ध्रुवीय भालुओं के मानव आबादियों में घुसने और सील मछलियों में कमी, ऐसे प्राकृतिक संकेत हैं, जिनसे पृथ्वी के बढ़ते तापमान का आर्कटिक पर प्रभाव स्पष्ट होता है।

प्रभाव:

  • अमेरिका के ‘नेशनल स्नो एंड साइंस डाटा सेंटर’ के अध्ययन के अनुसार वर्ष 2014 में उत्तरी ध्रुव के 32.90 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में बर्फ की परत पिघली है।
  • पर्यावरण विज्ञानी इस बदलाव को समुद्री जीवों, जहाजों, पेंगुइन, छोटे द्वीपों और महानगरों के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देख रहे हैं।
  • यह क्षेत्रफल लगभग भारत-भूमि के बराबर है। इस संस्थान के अनुसार 1979 में उत्तरी ध्रुव पर बर्फ जितनी कठोर थी, अब नहीं रह गई है। इसके ठोस हिमतल में चालीस फीसद की कमी आई है।

अंटार्कटिका महाद्वीप के बारे में:

  • उपनाम: बर्फ से ढके इस क्षेत्र को आर्कटिक महासागर भी कहा जाता है। आमतौर पर आर्कटिक का उल्लेख उस भाग के परिप्रेक्ष्य में होता है, जो उत्तरी ध्रुव को घेरे हुए है।
  • उत्तरी ध्रुव हमारे पृथ्वी ग्रह का सबसे सुंदर उत्तरी बिंदु है। मान्यता है कि यहीं पर पृथ्वी की धुरी घूमती है। यह स्थल आर्कटिक महासागर में स्थित है।
  • यहां अत्यधिक ठंड पड़ती है, क्योंकि छह माह तक सूर्य लुप्त रहता है। यहां हमेशा सफेद बर्फीली चादर बिछी रहती है। इस भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के निकट ही, चुंबकीय उत्तरी ध्रुव है।
  • इसी चुंबकीय शक्ति से आकर्षित होकर कंपास की सुई दिशा-संकेत देती है। उत्तरी तारा या ‘ध्रुवतारा’ उत्तरी ध्रुव के आकाश पर निरंतर चमकता दिखाई देता है।
  • दुनिया की नब्बे फीसद बर्फ इसी अंटार्कटिका में जमी हुई है। इसलिए इसे पृथ्वी का शीतालय (फ्रिज) भी कहा जाता है।
  • शताब्दियों से नाविक इसी तारे को देखकर यह अनुमान लगाते रहे हैं कि वे उत्तर से कितनी दूर हैं। यह क्षेत्र आर्कटिक परिधि भी कहलाता है। क्योंकि यहां अर्धरात्रि के सूर्य (मिडनाइट सन) और ध्रुवीय रात (पोलर नाइट) का अद्वितीय दृश्य देखने को मिलता है।

अवस्थिति:

  • यह दक्षिणी गोलार्ध में करीब बीस फीसद हिस्से को अपनी बर्फीली चादर से ढके हुए है। इसमें दक्षिणी ध्रुव भी समाहित है।
  • आर्कटिक का भू-क्षेत्र रूस के साइबेरिया के किनारों, आइसलैंड, ग्रीनलैंड, उत्तरी डेनमार्क, नार्वे, फिनलैंड, स्वीडन, अमेरिका, अलास्का, कनाडा का अधिकांश उत्तरी महाद्वीपीय भाग और आर्कटिक टापुओं के समुदाय तथा अन्य अनेक द्वीपों तक फैला है।

क्षेत्रफल:

  • क्षेत्रफल के अनुसार, अंटार्कटिका विश्व में पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है। उत्तरी ध्रुव का कुल क्षेत्रफल 2.1 करोड़ वर्ग किमी है। इसमें से 1.30 करोड़ वर्ग किमी क्षेत्र की सतह बर्फ की मोटी परत से ढकी हुई है।

तापमान:

  • बर्फ से आच्छादित होने के कारण यहां का औसत तापमान ऋणात्मक 10 डिग्री सेल्सियस है। जाड़ों में यह 68 डिग्री तक ऋणात्मक हो जाता है।

खनिज भंडार:

  • इस क्षेत्र में तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला के समृद्ध भंडार हैं।

मानवीय हस्तक्षेप:

  • औद्योगिक विकास के लिए खनिज संपदा की लूट के लिए यहां व्यापारिक गतिविधियां तेज हुई हैं।
  • इस कारण यहां पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ाने लगा है। नतीजतन, यहां पाए जाने वाले जलीय और थलीय जीव ध्रुवीय भालू, सील, बैल्गा वेल, नर वेल, नीली वेल और वेलर्स के अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।
  • यहां की बर्फीली परतों में धरती को मिलने वाला सबसे अधिक मात्रा में पानी संग्रहित है। लेकिन अब बढ़ते तापमान और बढ़ती मानवीय गतिविधियों के चलते आर्कटिक और ग्रीनलैंड में निरंतर बर्फ पिघल रही है। शोध बताते हैं कि इस प्रायद्वीप में चारों ओर तैरने वाली बर्फ में दस फीसद की कमी आई है। बर्फीली बारिश होने के बाद भी बर्फ न्यूनतम मात्रा में जम रही है। 2022 की तुलना में 2023 में बर्फ बहुत कम जमी है।

जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम:

बढ़ता तापमान:

  • जलवायु परिवर्तन बढ़ते हुए तापमान का परिणाम है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव क्षेत्रों में पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के कारण बर्फ तेजी से पिघल रही है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, अत्यधिक गर्मी या सर्दी के कारण अंटार्कटिका में पिघल रहे हिमनदों से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।
  • एक अध्ययन के मुताबिक, टाटेन हिमखंड की बर्फ स्थिर है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से इसकी स्थिरता में बदलाव आ रहा है और तेजी से पिघल रहा है। यह सबसे तेज गति से चलायमान हिमखंड है। इसके पिघलने के खतरे ज्यादा हैं, क्योंकि यह अगर अधिक तापमान वाले क्षेत्र में पहुंच गया तो और ज्यादा तीव्रता से पिघलेगा।
  • अगर अंटार्कटिका की बर्फ इसी तरह पिघलती रही तो दक्षिणी महासागर के चारों ओर समुद्री जल स्तर बढ़ेगा, इस कारण अन्य समुद्रों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। इन समुद्रों का जल स्तर बढ़ा, तो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर भी इसका असर दिखाई देगा। बर्फ के पिघलने से वायुमंडलीय परिसंचरण का स्वभाव भी बदल जाता है।

निष्कर्ष:

अंटार्कटिका बर्फ से घिरा एक विशाल क्षेत्र है जो दक्षिणी महासागर के ईद-गिर्द फैला हुआ है। यह महासागर ही धरती पर उत्सर्जित होने वाले कार्बन डाइआक्साइड की सबसे बड़ी मात्रा को सोखने का काम करता है। वर्ष भर में जितना कार्बन उत्सर्जित होता है, उसका लगभग बारह फीसद यह सागर सोख लेता है। लेकिन ऐसा तभी संभव हो पाता है, जब अंटार्कटिका की बर्फ बनी रहे। अब वह समय आ गया है कि धरती के बढ़ते तापमान को युद्ध स्तर पर नियंत्रित करने के कारगर उपाय हों।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

जलवायु परिवर्तन से अंटार्कटिका महाद्वीप पर पड़ने वाले दुष्परिणामों पर चर्चा कीजिए